कैशलैस इकोनामी भारतीय सनातन संस्कृति के विपरीत है : Yogesh Mishra

भारतीय संस्कृति और विश्व की दूसरी संस्कृतियों में बहुत से मूलभूत अंतर हैं ! जिसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि भारतीय संस्कृति का अभ्युदय अति संपन्नता से उत्सव के मध्य हुआ है और विश्व की समस्त दूसरी संस्कृतियों की उत्पत्ति आभाव, घृणा, युद्ध और तिरस्कार से हुयी है !

इसीलिये दूसरी संस्कृतियों में दान और सहयोग का भाव कम देखा जाता है ! जबकि सत्य सनातन भारतीय संस्कृति में सबसे अधिक महत्व दान का ही है ! हमारे यहां गाय बेची नहीं जाती थी, गोदान होता था ! भूमि का मूल्य निर्धारण नहीं होता था, बल्कि भूदान होता था ! इसी तरह भोग विलास के लिये कन्याओं को बेचा खरीदा नहीं जाता था, बल्कि सनातन संस्कार के तहत जीवन में एक बार, मात्र एक ही पुरुष को कन्यादान होता था !

इसी तरह हमारे यहां भगवान को दिया गया “गुप्त दान” ही सर्वश्रेष्ठ दान माना गया है ! इसके पीछे अवधारणा यह है कि यदि कोई वस्तु आपकी आवश्यकता से अधिक है ! तो उसे किसी अन्य व्यक्ति को दे दें ! जिसको उसकी आवश्यकता है क्योंकि वस्तु और धन की बस सिर्फ दो ही गति है जो हमारे शास्त्रों में बतलाई गई है ! पहला भोग, दूसरा नष्ट हो जाना !

अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये कि यदि आपके पास कोई वस्तु आपके भोग की आवश्यकता से अधिक है तो वह नष्ट न हो इस लिये उसे किसी अभावग्रस्त व्यक्ति को उपभोग के लिये दान दे देना चाहिये ! यही हमारी संस्कृति है !

किंतु पश्चिम की संस्कृति जो हत्या, डकैती, लूट, भुखमरी, कंगाली और षड्यंत्र से निकली है ! वहां पर दान की कोई अवधारणा ही नहीं है ! आज जो नई पीढ़ी पश्चिम में दान कर रही है ! वह सत्य सनातन हमारी संस्कृत की प्रेरणा से कर रही है ! क्योंकि उनके यहां संपत्ति का उद्देश्य बस सिर्फ भोग ही है ! फिर वह चाहे सुरा हो, सुंदरी हो या धन हो !

इसीलिये उनकी संस्कृति में धन का आदान-प्रदान डिजिटलाइजेशन के द्वारा हो सकता है ! क्योंकि वहां पर हर वस्तु की कीमत है और हर सुख की कीमत है ! वहां जब किसी भी वस्तु या सुख का भोग किया जाता है ! तो उसकी निर्धारित मूल्य देना वहां की संस्कृति में आवश्यक है ! इसलिये वह संस्कृति जहां पर हर सामाजिक अभिव्यक्ति की कीमत है ! वहां पर तो कैशलैस इकोनामी डिस्टलाइजेशन किया जा सकता है !

लेकिन सत्य सनातन हिंदू संस्कृति में हम धन को भोग की वस्तु नहीं मानते हैं ! हमारे यहां दान ही धन की श्रेष्ठ गति है ! फिर वह चाहे अपने भतीजे-भतीजियों को दिया गया दान हो या किसी गरीब व्यक्ति को दिया गया दान हो ! कन्या को दिया गया दान या फिर किसी भी सुहागिन महिला को दिया गया दान ! हमारे यहां यह सभी पूज्य हैं ! यहां पर इनके माध्यम से किसी भोग या सुख की कामना नहीं की जाती है !

हमारे यहां बहुत समय ऐसा भी दान होता है कि जिसका कोई लेखा-जोखा नहीं होता है ! जैसे मंदिरों की दानपेटी में दिया गया दान ! किसी राह चलते गरीब, बेसहारा को दिया गया दान या किसी कन्या या छात्र को दिया गया दान आदि आदि !

यदि शत प्रतिशत कैशलैस इकोनामी डिस्टलाइजेशन हो जायेगा ! तो व्यक्ति मंदिरों की दान पेटिका में दान कैसे करेगा ! गरीब, बेसहारा व्यक्ति, छोटी कन्या, छात्र या अपने पूज्य भतीजे भतीजी आदि माननीय को भेंट कैसे देगा ! क्या हर आदमी गले में एक स्वैप मशीन डालकर घूमेगा या सबको पेटीएम किया जायेगा !

और उसके बाद गुप्त दान की अवधारणा ही यह कैशलैस डिस्टलाइजेशन इकोनामी को पूरी तरह अस्वीकार कर देती है ! जो हमारे सत्य सनातन संस्कृत की आत्मा है !

इसलिये हमारी इकोनामी का शतप्रतिशत डिस्टलाइजेशन नहीं चाहिये और जो लोग इस तरह की बात करते हैं ! वह लोग भी सनातन संस्कृति से अनभिज्ञ हैं ! इसलिये ऐसे लोगों के वक्तव्यों का कड़ा विरोध और खंडन किया जाना चाहिये ! क्योंकि यह मूर्ख लोग कैशलैस इकोनामी डिस्टलाइजेशन के द्वारा एक षडयंत्र करके भारत की सत्य सनातन संस्कृति को ही नष्ट कर देना चाहते हैं !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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