आप सभी को 8 मार्च से 8 नवम्बर 1917 के रूस की औद्योगिक क्रांति तो याद होगी ही ! जिस विचारधारा के जनक काल मार्क्स हुआ करते थे ! उसको लेनिन के माध्यम से यूरोपियों द्वारा अपहरण करके रूस के पूरे के पूरे सामाजिक और औद्योगिक संरचन को ही नष्ट कर दिया गया था !
हुआ यूं कि उन्नीसवीं सदी के अंत में जब भारत के लूट की दौलत से ब्रिटेन और अमेरिका में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुयी ! तब उस समय तक रूस अपनी स्वाभाविक अवस्था में औद्योगिक रूप से अति संपन्न हो चुका था ! अतः ब्रिटेन और अमेरिका के पूंजी पतियों के आगे सबसे बड़ी समस्या रूस की औद्योगिक सफलता थी !
इसलिये रूस के उद्योग धंधों को नष्ट करने के लिये अंग्रेजों ने एक रणनीति बनायीं ! जिसमे उन्होंने रूस के विधि के छात्र और नवोदित नेता व्लादिमीर इलीइच उल्यानोव, जिन्हें लेनिन के नाम से भी जाना जाता है, को आर्थिक मदद की और उन्हें जर्मन में एक समाचार पत्र “इस्क्रा” (चिनगारी) का संपादक बन दिया ! जो समाचार पत्र छपता तो मध्य यूरोप जर्मन में था ! लेकिन उसका सरकुलेशन उस जमाने में वहां से 10,000 किलोमीटर दूर रूस में हुआ करता था !
इस समाचार पत्र में यूरोप और अमेरिका के पूंजीपतियों ने बहुत बड़ी मात्रा में पैसा लगाया और एक यहूदी व्यवसाई अलेक्जेंडर परवस को लेनिन का बिजनेस पार्टनर बन दिया गया ! फिर समाचार पत्र के माध्यम से रूस के मजदूर वर्ग में असंतोष पैदा किया गया !
उन्हें भड़काया गया कि पूरे यूरोप में मजदूर मात्र 8 घंटे काम करते हैं और तुमसे रूस ने 12 घंटे काम लिया जाता है ! यूरोप में मजदूरों की मजदूरी और सुविधायें रूस के मुकाबले बहुत बेहतर हैं ! इसलिये तुम लोग संगठित होकर रूस के पूंजीपतियों से यूरोप के मजदूरों के बराबर तनख्वाह और सुविधाओं की मांग करो !
नियमित रूप से भड़काने वाला यह कार्यक्रम 15 साल तक चलता रहा और इसमें अमेरिका और योरोप के पूंजीपतियों ने बहुत सा पैसा लगाया ! लेनिन क्योंकि रूस का ही मूल नागरिक थे ! अतः मजदूर वर्ग इस भड़काने वाले कार्यक्रम को नहीं समझ पाये और रूस के मजदूरों ने यूनियन बनकर रूस के उद्योगपतियों के खिलाफ धरना प्रदर्शन आंदोलन आदि शुरू कर दिया !
धीरे-धीरे उद्योगपतियों ने भी अनियंत्रित मजदूरों पर शक्ति वर्ती और रूस के मजदूरों को नौकरी से निकालन शुरू कर दिया ! तब रूस के उद्योगपतियों को यूरोप के पूंजीपतियों द्वारा यह सूचना दी गई कि यूरोप के मजदूर रूस के मुकाबले कम मजदूरी में अच्छा कार्य करने की करते हैं ! अतः रूस में यूरोप से मजदूरों की सप्लाई शुरू हो गई !
देखते ही देखते रूस का मूल निवासी मजदूर उद्योग धंधों से बाहर हो गये और उसके स्थान पर यूरोप के मजदूरों ने रूस की फैक्ट्रियों में काम करन शुरू कर दिया ! जिससे रूस में बहुत बड़े पैमाने पर मजदूरों में असंतोष फैलने लगा !
जिसका लाभ उठाकर यूरोपियों के इशारे पर लेनिन ने 8 मार्च 1917 को पूरे रूस में एक सशस्त्र प्रदर्शन किया और इस प्रदर्शन में रूस के काम किन्तु यूरोप के मजदूरों ने बढ़ चढ़ कर संयुक्त रूप से हिस्सा लिया ! पूरे के पूरे रूस के सभी उद्योगपतियों को ढूंढ ढूंढ कर उनके सर काट कर चौराहों पर सजा दिया गया ! जिससे रूस के मजदूरों की क्रांति का नाम दिया गया ! यह मारकाट नौ माह 8 नवम्बर 1917 तक निरंतर चली !
कमोवेश आज यही स्थिति भारत की भी हो रही है ! पहले भ्रष्टाचार नियंत्रण के नाम पर नोट बंदी करके भारत में गंभीर आर्थिक संकट पैदा किया गया ! जिससे लोगों में क्रय करने की शक्ति ही खत्म हो गयी फिर साल डेढ़ साल बाद जब पुनः उद्योग धंधे पुन: कुछ अपनी गति में आये ! तब जी.एस.टी. लागू करके उसे पुनः नष्ट कर दिया गया ! अभी भारत के व्यापारी और औद्योगिक घराने जीएसटी से लड़ ही थे कि विदेशी निवेश अर्थात एफ.डी.आई. को बढ़ावा देने के लिये पूरे देश में जगह-जगह विदेशी पूंजीपतियों के मेले लगाये जाने लगे और उन्हें भारत में व्यापार करने के लिये आमंत्रित किया जाने लगा !
बहुत बड़ी संख्या में विदेशी पूंजीपतियों ने भारत में अपन पंजीकरण भी करवाया लेकिन इसी दौरान कोरोन वायरस का काल्पनिक भय दिखाकर अचानक पूरे देश में बिना किसी तैयारी के लॉक डाउन की घोषणा कर दी गई ! सभी उद्योग धंधे और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद कर दिये गये ! मजदूर सड़कों पर आ गया और हताश निराश होकर यातायात संसाधनों के आभाव में वह 2-2, 3-3 हजार किलोमीटर पैदल ही अपने पैतृक घर की तरफ चल पड़ा ! मजदूर अभी थका बीमार घर पहुंचा ही था कि फिर बिगड़ती अर्थव्यवस्था का हवाला देकर मात्र 2 माह 10 दिन बाद अचानक लॉक डाउन खोल दिया गया !
अब स्थिति यह है कि फैक्ट्रियों खोलने को तैयार हैं ! उन फैक्ट्रियों का माल खरीदने के लिये बाजार में भयंकर डिमांड कर रहा है और दूसरी तरफ फैक्ट्री मालिकों पर अत्यधिक आर्थिक दबाव भी है ! लेकिन उन में काम करने वाली लेबर नहीं है ! थका हराने निराश बीमार मजदूर अब इतनी जल्दी लौटने को भी तैयार नहीं है ! ऐसी स्थिति में मजबूर होकर वर्तमान फैक्ट्री मालिक नये अकुशल मजदूरों को प्रशिक्षित करने के लिये बाध्य हैं !
लेकिन प्रश्न यह है कि यह नये अकुशल मजदूर मिलेंगे कहां से ! जैसा कि रिकॉर्ड बतलाता है कि हर बड़े महानगर में इस समय बांग्लादेशी और रोहिंगिये मजदूर करोड़ों की तादाद में उपलब्ध हैं ! जो मूलतः भारतीय भी नहीं हैं ! जो आये दिन अपराधिक वारदात करते रहते हैं ! जिनकी कोई मजदूरी की शर्त भी नहीं है ! बहुत संभावना है कि इन विशेष परिस्थितियों में भारत के फैक्ट्री मालिक इन बांग्लादेशी और रोहिंगिये मजदूरों को प्रशिक्षित कर इनसे अपन कार्य चलाने का प्रयास करें !
क्योंकि भारत का मूल निवासी मजदूर काफी पीड़ा में अपने घर गया है ! अतः वह निकट भविष्य में उसके लौटने की संभावना भी नहीं है और रोहिंगिये और बांग्लादेशी मजदूर भारत को अपन देश मानते भी नहीं हैं ! साथ ही यह लोग अन्य विदेशी शक्तियों द्वारा संचालित भी होते हैं ! तो यह बहुत संभावन है कि निकट भविष्य में दो-तीन वर्षों के अंदर ही भारत में भी इन रोहिंगिये और बांग्लादेशी मजदूरों के सहयोग से उद्योगपतियों और फैक्टरी मालिकों के साथ वैसी ही घटनायें घटें जैसा कि रूस की क्रांति के समय रूस में हुआ था !
यह बहुत ही चिंता का विषय है ! इसलिये समाजशास्त्रीयों, अर्थशास्त्रीयों और राजनीतिक व्यक्तियों को इस विषय पर गंभीरता से चिंतन करना चाहिये और यदि भविष्य में कुछ भी इस तरह की घटना घटने की आशंका को तो उसके रोक थाम के लिये भी शीघ्र अति शीघ्र विचार करना चाहिये !!