आज इतिहास में यह बहुत बड़ा प्रश्न है कि जब रावण राक्षस था और उस जैसा विद्वान व्यक्ति यह जानता था कि राम उससे लड़ने आने के लिये रावण के साले बाली को छल से मार कर सुग्रीव की मदद से बहुत बड़ी सेना बना रहे हैं और राम ने उस अपनी सेना के अति विध्वंसक हथियारों को लंका लाने के लिये रावण के ही वास्तु शिष्य नल और नील की मदद से लंका आने के पुल की मरम्मत करवा रहे हैं ! जिससे वह अति विनाशकारी बड़े-बड़े अति आधुनिक हथियारों के साथ लंका क्षेत्र में पहुंच सकें ! तब भी रावण ने राम के विरुद्ध प्रथम प्रहार क्यों नहीं किया !
इसके मूल चार कारण थे !
पहला कारण यह था कि जब परम तपस्वी विदेही राजा जनक की पुत्री सीता विवाह के उपरांत अवध आयी ! तब उसने देखा कि अवध के निवासी मांसाहारी हैं ! वह शिकारी और जीव-जंतुओं के हत्यारे हैं ! जिससे सीता माता का मन व्यथित हो गया और उसने अन्न जल त्याग दिया ! जब इस विषय की जानकारी राजा दशरथ को हुई तो उन्होंने सीता को बहुत समझाने का प्रयास किया !
कहा कि हम क्षत्रिय हैं यदि हम युद्ध नहीं लड़ेंगे तो हम अपनी रक्षा नहीं कर सकेंगे और युद्ध के लिये शिकार द्वारा ही हम अपनी प्रजा को प्रशिक्षित करते हैं ! अतः यह हमारी मजबूरी है कि हम अपने राज्य की रक्षा के लिए अपनी प्रजा को शिकार करने से नहीं रोक सकते हैं !
ऐसी स्थिति में सीता ने राजा दशरथ से एक शर्त रखी जिसमें माता सीता ने कहा कि मैं आपके राज्य का अन्न जल तभी ग्रहण करूंगी ! जब आप किसी ऐसे ब्राह्मणों को अपने अतिथि के रूप में भोजन कराएं जिसने कभी किसी दूसरे के यहां जाकर अपने जीवकोपार्जन के लिये याचना न की हो !
ऐसा ब्राह्मण मिलना समस्त भूमंडल पर असंभव था ! तब राजा दशरथ ने गुरु वशिष्ट से परामर्श लिया ! वशिष्ठ ने कहा ज्ञान में श्रेष्ठतम ब्राह्मण रावण ही इस पृथ्वी पर एक मात्र ब्राह्मण हैं ! जिसने कभी अपने जीविकोपार्जन के लिए किसी दूसरे के यहां जाकर याचना नहीं की है !
तब राजा दशरथ ने रावण को आमंत्रण भेजा और रावण ने स्वयं आकर माता सीता के हांथ का बना भोजन ग्रहण किया और माता सीता को भोजन करवाने के बदले रावण ने यह आशीर्वाद दिया कि तुम मेरी पुत्री के समान हो और मैं जीवन में कभी भी तुम्हारे कुल खानदान के विरुद्ध अपनी तरफ से प्रथम प्रहार नहीं कहूंगा ! जिसके उपरांत माता सीता अयोध्या में अन्न जल ग्रहण करने लगी !
दूसरा राजा दशरथ उत्तर कौशल राज्य के राजा थे जिसकी राजधानी अवध थी और सुकौशल दक्षिण कौशल राज्य के राजा थे ! जो कि कौशल्या के पिता जी थे ! जो कि अब वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है ! जब रावण ने समस्त पृथ्वी पर अपना शासन जमा लिया ! तब देवताओं के आग्रह पर रावण और देवताओं के मध्य एक समझौता हुआ कि कर्क रेखा के ऊपर रावण अपना अधिकार छोड़ देगा पर सभी देवताओं को उस क्षेत्र में जाकर निवास करना पड़ेगा ! जिसकी वजह से रावण का भाई कुबेर जो कि देवताओं का कोष संरक्षक था ! वह भी तिब्बत चला गया तथा अन्य देवताओं ने भी कर्क रेखा के नीचे के स्थान को छोड़कर ऊपर की तरफ चले गये !
किंतु कौशल्या के पिता सुकौशल दक्षिण कौशल राज्य छोड़ने को तैयार न थे ! ऐसी स्थिति में रावण कौशल नरेश से युद्ध करने के लिए सेना तैयार करने लगा ! तभी राजा दशरथ ने अपने ससुर सुकौशल को समझाया और उन्हें रावण के हित में वह क्षेत्र छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया ! जिस वजह से दशरथ और रावण में मित्रता हो गई और रावण ने राजा दशरथ को यह वचन दिया कि मैं कभी भी अपनी तरफ से तुम और तुम्हारे आने वाली पीढ़ियों के विरुद्ध युद्ध की शुरुआत नहीं करूंगा ! जिसे रावण ने अंतिम क्षण तक निभाया ! जब तक कि राम ने प्रथम प्रहार नहीं किया ! तब तक रावण ने अपनी तरफ से कभी राम पर प्रहार नहीं किया !
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि जब भगवान श्रीराम ने जब रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की थी ! तब उस समय राम को शिव लिंग में प्राण प्रतिष्ठा हेतु योग्य पंडित की आवश्यकता थी ! जिसके लिये राम ने रावण के पिता के बड़े भाई अर्थात रावण के ताऊ जामवंत जी के माध्यम से रावण को पुरोहित कर्म करने के लिये बुलाने हेतु सीता सहित आमंत्रित किया ! जिसको रावण ने स्वीकार किया ! उसने सीता सहित जाकर शिवलिंग की स्थापना करवाई और इसके बाद सीता को वापस लंका ले आया !
क्योंकि यह सिद्धांत की लड़ाई थी ! जिस लड़ाई की पृष्ठभूमि इंद्र ने अपने पराजय के बाद तैयार की थी ! लेकिन इस पुरोहित कर्म को करने के कारण रावण राम को अपना जजमान मानता था और ब्राम्हण कर्म में जजमान के हितों की रक्षा करना आचार्य ब्राह्मण का कर्तव्य है ! इसलिए राम का रावण का जजमान होने के कारण रावण ने कभी भी राम पर प्रथम प्रहार नहीं किया !
इसी वजह से रावण हजार बार यह बात जानता था कि इन्द्र से अपनी पत्नी की माता हेमा के अस्तित्व की रक्षा के लिये मेघनाथ ने जो युद्ध में इंद्र को हराया था ! उसी का रावण से बदला लेने के लिये इंद्रा ने विश्वामित्र के माध्यम से राम को रावण के विरुद्ध प्रयोग किया था !
विश्वामित्र ने ही बलपूर्वक राम का विवाह उस समय के सबसे तपस्वी विदेही शैव संत राजा जनक के यहां करवाया था ! जिनका सभी शैव संस्कृति के उपासक और ऋषिगण गुणगाना करते थे ! यह सब मात्र इसलिए करवाया था जिससे कि शैव संस्कृत के साधकों को सीता के माध्यम से राम से जोड़ा जा सके और राम की वैष्णव संस्कृत में निष्ठा की परीक्षा लेने के लिये विश्वामित्र ने राम से भगवान शंकर का प्राचीन धनुष पिनाक जनकपुरी में ही जुड़वा दिया था ! जो राजा जनक के पूर्वजों को भगवान शिव ने स्वयं दिया था ! जो पृथ्वी के सभी वैष्णव अस्त्र शास्त्रों से अधिक शक्तिशाली था ! विश्वामित्र को शक था कि राम रावण युद्ध के समय राजा जनक जो कि रावण के गुरु भाई थे ! वह यह पिनाक अस्त्र रावण को दे सकते हैं !!
राम रावण के गुरु भाई के दामाद थे ! यह भी वह कारण था ! जिससे रावण ने कभी राम के विरुद्ध युद्ध की शुरुआत स्वयं अपनी ओर से नहीं की ! यह चौथा कारण था !!