यत पिंडे-तत ब्रह्माण्डे अर्थात सभी धर्म ग्रंथ कहते हैं कि जो भी कुछ मनुष्य के पिण्ड यानी शरीर में है, बिल्कुल वैसा ही सब कुछ इस ब्राह्मांड में है अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड में जो भी है वही द्रव्य एवं ऊर्जा हमारे शरीर में भी है !
समस्त दृश्य और अदृश्य इन्ही दोनो के संयोग से घटित होते है ! हम और हमारा मस्तिष्क इसके अपवाद नहीं हैं ! सृष्टि के मूलभूत कणों के विभिन्न अनुपात में संयुक्त होने से परमाणु और क्रमशः अणुओं का निर्माण हुआ है ! मस्तिष्क एवं इसके विभिन्न भाग, सूचनाओं के आदान-प्रदान एवं भंडारण के लिए इन्हीं अणुओं पर निर्भर रहते हैं ! यह विशेष अणु न्यूरोकेमिकल कहलाते हैं !
न्यूरॉन भी इसी की एक इकाई है ! यह एक वैद्युत कोशिका होती है जो विद्युतचुंबकीय प्रक्रिया से संदेश प्रवाहित करते हैं ! न्यूरॉन नर्वस सिस्टम के प्रमुख भाग होते हैं जिसमें दिमाग, स्पाइनल कॉर्ड और पेरीफेरल गैंगिला होते हैं ! कई तरह के स्पेशलाइज्ड न्यूरॉन होते हैं जिसमें सेंसरी न्यूरॉन, इंटरन्यूरॉन और मोटर न्यूरॉन होते हैं !
किसी चीज को छूने, साउंड या प्रकाश के दौरान ये न्यूरॉन ही प्रतिक्रिया करते हैं और यह अपने सिग्नल स्पाइनल कार्ड और दिमाग को भेजते हैं ! मोटर न्यूरॉन दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड से सिग्नल ग्रहण करते हैं ! मांसपेशियों की सिकुड़न और ग्रंथियां इससे प्रभावित होती है ! परंपरागत न्यूरॉन में सोमा, डेंड्राइट और एक्सन होता है !
न्यूरॉन का मुख्य हिस्सा सोमा होता है ! न्यूरॉन को उसकी संरचना के आधार पर भी विभाजित किया जाता है ! यह यूनीपोलर, बाईपोलर और मल्टीपोलर होते हैं ! न्यूरॉन में कोशिकीय विभाजन नहीं होतौ जिससे इसके नष्ट होने पर दुबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता ! ज्यादातर मामलों में इसे स्टेम सेल के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है ! ऐसा देखा गया है कि एस्ट्रोसाइट को न्यूरॉन में बदला जा सकता है !
न्यूरॉन शब्द का पहली बार प्रयोग जर्मन एनाटॉमिस्ट हेनरिक विलहेल्म वॉल्डेयर ने किया था ! 20वीं शताब्दी में पहली बार न्यूरॉन प्रकाश में आई जब सेंटिगयो रेमन केजल ने कहा कि यह तंत्रिका तंत्र की प्राथमिक फंक्शनल यूनिट होती है ! केजल ने प्रस्ताव दिया था कि न्यूरॉन अलग कोशिकाएं होती हैं जो कि स्पेशलाइज्ड जंक्शन के द्वारा एक दूसरे से कम्युनिकेशन करती है !
न्यूरॉन की संरचना का अध्ययन करने के लिए केजल ने कैमिलो गोल्गी द्वारा बनाए गए सिल्वर स्टेनिंग मैथड का प्रयोग किया ! दिमाग में न्यूरॉन की संख्या प्रजातियों के आधार पर अलग होती है ! एक आकलन के मुताबिक मानव दिमाग में 100 खरब न्यूरॉन होते हैं !
इन्हीं न्यूरॉन की ऊर्जा के साथ जब प्रकृति की ऊर्जा का सामंजस्य बैठ जाता है ! तब उसे तंत्र का सफल प्रयोग कहते हैं और यदि किसी भी कारण से न्यूरॉन की ऊर्जा और प्रकृति की ऊर्जा का सामंजस्य नहीं बैठ पाता है तो उस स्थिति में किया गया तंत्र पूरी तरह असफल होता है !
क्योंकि न्यूरॉन की ऊर्जा ही वह ऊर्जा है जो प्रकृति के ऊर्जा क्रम में आपके लिए अनुकूलता पैदा करती है सामान्यतया प्रकृति अपने ऊर्जा क्रम में किसी तरह का हस्तक्षेप पसंद नहीं करती है किंतु प्रत्येक जीव को यह विशेषाधिकार दिया गया है कि यदि वह अष्टांग योग द्वारा ध्यान की उस पराकाष्ठा तक चला जाता है ! जहां पर प्रकृति के ऊर्जा क्रम से अपना सामंजस्य स्थापित कर लेता है ! उस स्थिति में वह सामंजस्य स्थापित करने वाला व्यक्ति को तंत्र में सफलता प्राप्त होने लगती है !
इसके लिए किसी श्मशान पूजा, शराब की बोतल, मुर्दे की खोपड़ी, जानवर की हड्डी या पेड़ पौधे वनस्पतियों के डंडी आदि की कोई आवश्यकता नहीं होती है !