कहा जाता है कि वर्ष 1883 में वे जोधपुर नरेश महाराजा जसवन्त सिंह के निमन्त्रण पर जोधपुर आये हुये थे ! वहां पर उन्होंने नन्ही नामक वेश्या का अनावश्यक हस्तक्षेप और महाराजा जसवन्त सिंह पर उसका अत्यधिक प्रभाव देखा ! स्वामी दयानंद को यह बहुत बुरा लगा ! उन्होंने महाराजा को इस बारे में समझाया और नन्ही से सम्बन्ध तोड़ लिये !
इससे नन्ही स्वामी दयानंद से नाराज हो गई और स्वामी दयानंद के रसोइए कलिया उर्फ जगन्नाथ को अपनी तरफ मिला कर उनके दूध में पिसा हुआ कांच डलवा दिया ! इससे बीमार हुये स्वामी कभी उबर नहीं पाए और दीपावली के दिन उन्होंने देह त्याग दी !
जबकि सच यह है कि दयानन्द सरस्वती ने अपने रसोईये से तो क्या किसी से भी नहीं कहा कि उन्हें किसी ने ज़हर दिया है ! स्वामी जी के नाम पर आर्य समाजी प्रचारको ने समाज की सिम्पैथी लेने के लिये इस घटना का प्रचार बरसों कर किया और इतना बड़ा झूठ बोलकर आम लोगों को धोखा क्यों देते रहे !
जब कि दयानन्द सरस्वती की जीवनी लिखने वाले बहुत से आर्य समाजी लेखक इस घटना को प्रकाशित करते हैं ! लेकिन आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट ने दयानन्द सरस्वती का जीवन चरित्र’ नामक ग्रन्थ प्रकाशित किया है ! दयानन्द सरस्वती जीवन की घटनाओं के विषय में वही ग्रन्थ प्रामाणिक है ! उसमें इस घटना का वर्णन नहीं है !
अर्थात उसमें दयानन्द सरस्वती को किसी रसोईये द्वारा विष दिया गया था यह घटना शायद स्वामी जी के चेलों ने दयानन्द सरस्वती को समाज के लोगों की नज़रों में ‘शहीद’ का सम्मानित दर्जा दिलाने के लिये गढ़ा था !
क्योंकि दयानन्द सरस्वती के न रहने के बाद उनके नाम पर चल रहे विद्यालय मन्दिर आदि की संपत्ति कहीं वापस छिन न जाये इस भय से उनके चेलों द्वारा यह झूठ गढ़ा गया !
लेकिन झूठी बात फैलाते समय उन्होंने यह क्यों नहीं सोचा कि जब कभी यह झूठ पकड़ा जाएगा तो लोगों में ‘आर्य समाज’ की विश्वसनीयता ही ख़त्म हो जाएगी? स्वामी जी के नाम पर आर्य समाजी प्रचारक बरसों से इतना बड़ा झूठ बोलकर आम लोगों को धोखा क्यों देते आ रहे हैं ?