अन्तरिक्ष के अज्ञात अनोखे ग्रहों का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ! Yogesh Mishra

पुराणों के अनुसार हमारे जीवन पर 21 ग्रहों का प्रभाव पड़ता है ! जबकि हम ज्योतिष में मात्र 7 पिंड ग्रह और 2 प्रतीक ग्रहों की ही गणना करते हैं ! शेष ग्रह पर भी विचार किया जाना चाहिये ! जबकि आधुनिक विज्ञान द्वारा हमारे सौरमंडल से बाहर अभी तक 400 से अधिक ग्रहों का पता चल चुका है और यह संख्या लगातार बढ़ रही है ! इन ग्रहों में कुछ महापृथ्वियाँ हैं, कुछ गैसीले पिंड हैं और कुछ जल-ग्रह हैं ! ऐसे अनोखे ग्रहों की भरमार के कारण हमारी आकाशगंगा सचमुच किसी अजायबघर से कम नहीं है !

सौरमंडल से बाहर सबसे पहले जो ग्रह खोजा गया, वह था ’51 पेगासी बी’ ! करीब 50 प्रकाश वर्ष दूर यह ग्रह सूरज जैसे तारे का चक्कर काट रहा है ! इस ग्रह को ‘गरम बृहस्पति’ की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि यह एक विशाल गैसीला पिंड है और यह अपने तारे के बहुत नजदीक है ! ’51 पेगासी बी’ की अपने तारे से दूरी बुध और सूरज के बीच की दूरी से भी कम है !

अब तक खोजे जा चुके 429 बाह्य ग्रहों में 89 ग्रहों को ‘गरम बृहस्पति’ की श्रेणी में रखा गया है ! इन ग्रहों का आकार बहुत बड़ा है और ये अपने तारों के बहुत करीब हैं ! बड़े आकार की वजह से इन्हें मौजूदा तकनीकों द्वारा आसानी से देखा जा सकता है ! बाह्य ग्रहों की पहली वास्तविक खोज 1994 में हुई थी, जब रेडियो-खगोलविदों ने करीब 980 प्रकाश पर्व दूर एक पल्सर तारे, ‘पीएसआर बी 1257+12’ के चारों तरफ चक्कर काट रहे ग्रहों का पता लगाया ! पल्सर एक सामान्य तारा न होकर किसी सुपरनोवा विस्फोट का अवशेष है ! यह बेहद घना होता है और चकरी की तरह तेजी से घूमता है !

2007 तक ऐसे तीन बाह्य ग्रहों की पुष्टि हो चुकी है, जो इस पल्सर तारे के इर्दगिर्द चक्कर काट रहे हैं ! इनमें सबसे प्राचीनतम बाह्य ग्रह ‘पीएसआर 81620-26 बी’ है ! इसे मेथुसेला के नाम से भी जाना जाता है ! यह पृथ्वी से करीब 5600 प्रकाश वर्ष दूर है ! इन ग्रहों पर जीने लायक परिस्थितियाँ नहीं हो सकतीं क्योंकि इन्हें पल्सर तारे से उच्च ऊर्जा विकिरण की खुराक मिलती है !

आकाशगंगा के अजायबघर में कुछ महापृथ्वियों अथवा सुपर अर्थ्स की खोज हो चुकी है ! महापृथ्वी एक ऐसा ग्रह है, जिसका द्रव्यमान पृथ्वी से करीब 10 गुना अधिक होता है ! सबसे पहले खोजी गई महापृथ्वियों में वे दो ग्रह शामिल हैं, जो पल्सर तारे, पीएसआर 81257+12 के इर्दगिर्द चक्कर काट रहे हैं ! ये महापृथ्वियाँ हमारे ग्रह की तुलना में भौगोलिक दृष्टि से ज्यादा सक्रिय हैं !

हमारे सौरमंडल के ग्रह एक समान गोलाकार कक्षा में घूमते हैं, लेकिन अब तक खोजे गए बाह्य ग्रह अनियमित कक्षा में घूमते हैं ! ये ग्रह कभी अपने तारे के नजदीक आते हैं और कभी एकदम उससे दूर चले जाते हैं ! खगोल वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि अनियमित कक्षा वाले ग्रहों की मौजूदगी एक असामान्य-सी बात है या हमारा सौरमंडल सबसे अलग है !

अनोखे ग्रहों में एक श्रेणी ‘गरम नेपच्यून’ की भी है ! गरम नेपच्यूनों का द्रव्यमान पृथ्वी से 10से 20गुना अधिक होता है और ये हमारे बुध और सूरज की दूरी के मुकाबले अपने तारे के ज्यादा नजदीक होते हैं ! सबसे पहले खोजा गया गरम नेपच्यून ‘ग्लीस 416 बी’ था, जो कि करीब 33.4 प्रकाश वर्ष दूर है ! उसकी सतह पर ‘गरम बर्फ’ हो सकती है ! यानी गर्मी के बावजूद पानी ठोस रूप में बना हुआ है ! अब तक 25 गरम नेपच्यून खोजे जा चुके हैं !

बाह्य सौरमंडलों में ऐसे ग्रह भी हैं, जो पानी से सराबोर हैं ! खगोलविदों की राय में इस तरह के ग्रह दो प्रकार के हो सकते हैं ! एक वह, जो हमारी पृथ्वी सरीखा हो और उसमें पानी की मात्रा हमारे ग्रह की तुलना में बहुत ज्यादा हो ! दूसरा वह ग्रह, जो पूरी तरह पानी से ही बना हुआ हो ! अपने तारे के बहुत करीब होने के कारण इसका पानी जम नहीं सकता ! ऐसे जल-ग्रह में संभवतः हजारों किलोमीटर की गहराई तक समुद्र है और उसके वायुमंडल में काफी मात्रा में हाइड्रोजन और जल वाष्प मौजूद है !

कभी-कभी गरम बृहस्पति या गरम नेपच्यून जैसे ग्रह अपने तारों के बहुत नजदीक रहने लगते हैं ! तारों की गर्मी और ग्रेविटी के प्रभाव से इन ग्रहों की गैस उड़ सकती है ! गैस उड़ने के बाद इन ग्रहों का मध्य चट्टानी भाग रह जाता है ! कुछ ग्रह इसी तरह के चट्टानी अवशेष की श्रेणी में आते हैं !

आमतौर पर यह माना जाता है कि कोई भी ग्रह अपने तारे का चक्कर काटता है ! लेकिन खगोल वैज्ञानिकों को ऐसे गैसीले पिंडों का भी पता चला है, जो स्वतंत्र रूप से विचरण कर रहे हैं ! या तो ये पिंड अपने-अपने सूर्यों के चंगुल से भाग निकले हैं अथवा उनके पास शुरू से ही कोई सूर्य नहीं था ! करीब छः-सात पिंड ऐसे हैं, जिन्हें स्वतंत्र रूप से विचरने वाले ग्रहों की श्रेणी में रखा जा सकता है !

अब तक खोजे गए 429 बाह्य ग्रहों में ज्यादातर ग्रह गैसीले या बर्फीले पिंड हैं, लेकिन खगोलविदों को उम्मीद है कि पृथ्वी सरीखे बाह्य ग्रहों की संख्या गैसीले अथवा बर्फीले ग्रहों की संख्या से बहुत ज्यादा है ! अंतरिक्ष में भावी मिशनों से जल्दी ही हम पृथ्वी जितने चट्टानी ग्रहों का पता लगाने में कामयाब हो जाएँगे ! शायद इसी दशक में बाह्य-पृथ्वी की मौजूदगी की पक्की खबर मिल सकती है !

कुछ साल पहले छोड़ा गया केपलर मिशन हमारी आकाश गंगा में छिपे अनोखे ग्रहों की तलाश कर रहा है ! भविष्य में छोड़े जाने वाले जेम्स वेव स्पेस टेलिस्कोप के जरिए खगोल वैज्ञानिक कुछ महापृथ्वियों के वायुमंडलों की संरचना का पता लगाने में कामयाब हो सकते हैं ! उनका असली मकसद ऐसे ग्रहों का पता लगाना है, जो जीवन पर प्रभाव डालते हों !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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