युगद्रष्टा वह व्यक्ति होता है जिसकी युग को देखने व परखने वाली अलग तरह की नज़र रखता है ! ऐसा व्यक्ति युग की नब्ज को पहचानकर समस्याओं से लोगों को अवगत करवाता है ! युगद्रष्टा व्यक्ति दूरगामी सोच रखते हैं एवं दूरदर्शी भी होते हैं !
जैसे आज कल परिवार संस्थायों पर पूंजीवादियों द्वारा अपना उत्पाद बेचने के लिये बिखेरी जा रही हैं ! संयुक्त परिवार टूट रहे हैं ! क्योंकि चतुर लोग अपना सारा समय दुनियावी ताम-झाम में लगा देते हैं और कभी नहीं सोचते कि घर पर बूढ़ी अम्मा, जो इंतजार में बाट जोहे बैठी है, वह कैसी होगी ! बच्चे, जो आपके साथ हंसना-खेलना चाहते हैं, वह कभी आपको इस मिजाज में देखते ही नहीं कि कुछ नखरे दिखा सकें ! पत्नी, जिसे दुनिया में सबसे अधिक इस बात की परवाह रहती है कि आप कैसे हैं, पर विचार कीजिये कि आप उसे भूल क्यों जाते हैं !
जितनी खुशी, जितना प्रेम और जितना आनंद आपको अपने परिवार से मिल सकता है, शायद ही कहीं और से मिल सके ! पर इस बात की अहमियत नहीं समझी जाती, अपना थोड़ा-सा समय भी परिवार और समाज के जरूरतमंद लोगों को देकर देखिए, शायद जिंदगी ही बदल जाए ! लोग मायावी और छद्म आनंद की तलाश में न जाने कहां-कहां भटकते रहते हैं और इस मृग-मरीचिका में सारे रिश्ते उदासीन होते जाते हैं ! भला वह गर्मी उन रिश्तों में एकतरफा आए भी तो कहां से, रिश्ते तो हमेशा ही पारस्परिक होते हैं !
बाद में जब जिंदगी के सारे भ्रम टूट जाते हैं, पराए-मतलब परस्त लोग आपके कमजोर पड़ने पर, आपको अकेला छोड़कर दूर चले जाते हैं, तब आप बिल्कुल खाली-खाली से महसूस करते हैं ! उस समय आप बिल्कुल कैसे ही होते हैं, जैसे कोई पेड़, जिससे परदेसी पंछियों का झुंड था पर आज उसे अकेला छोड़ कर उड़ गया हो ! ऐसे में जब आपको परिवार और दोस्तों से भावनात्मक ऊष्मा की जरूरत पड़ती है, तो आप खुद को अकेला पाते हैं ! सब होते हैं आपके आसपास, पर वह अपनापन नहीं होता है और ऐसा नहीं है कि इस तरह का अधूरापन केवल किसी पुरुष की परेशानी है, तथाकथित आधुनिकता की होड़ में सहज मानवीय चेतना से दूर होती जा रही महिलाओं को भी इस तरह का अकेलापन बहुत सालता है !
इन सब स्थितियों से इंसान को निजात कैसे मिले, यह वर्तमान में बड़ी चुनौती है ! कार्ल बार्ड ने कहा कि “हालांकि कोई भी व्यक्ति अतीत में जाकर कोई नई शुरुआत नहीं कर सकता है, लेकिन कोई भी व्यक्ति अभी शुरुआत कर सकता है और एक नया अंत प्राप्त कर सकता है !”