इराक का एक पुस्तक है जिसे इराकी सरकार ने खुद छपवाया था ! इस किताब में 622 ई से पहले के अरब जगत का जिक्र है ! आपको बता दें कि इस्लाम धर्म की स्थापना इसी साल हुई थी ! किताब में बताया गया है कि मक्का में पहले शिवजी का एक विशाल मंदिर था ! जिसके अंदर एक शिवलिंग है ! जो आज भी मक्का के काबा में एक काले पत्थर के रूप में जाना जाता है ! पुस्तक में लिखा है कि मंदिर में 622 ई से पहले नियमित कविता पाठ और भजन हुआ करता था ! भगवान शिव की आरती सैकड़ों शिव भक्तों तथा भभूत, डमरू और नगाड़ों के साथ हुआ करती थी !
प्राचीन अरबी काव्य संग्रह गंथ ‘सेअरूल-ओकुल’ के 257वें पृष्ठ पर हजरतमोहम्मद से 2300 वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष पूर्व पैदा हुये “लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा” ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता में भारत भूमि एवं वेदों को जो सम्मान अरबी भाषा में दिया है, वह इस प्रकार है !
“अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे !
व अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन !1 !
वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सहबी अरवे अतुन जिकरा !
वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल हिंदतुन !2 !
यकूलूनल्लाहः या अहलल अरज आलमीन फुल्लहुम !
फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन योनज्वेलतुन !3 !
वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहे तनजीलन !
फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअन योवसीरीयोनजातुन !4 !
जइसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का-अ-खुबातुन !
व असनात अलाऊढ़न व होवा मश-ए-रतुन !5 !”
अर्थात-(1) हे भारत की पुण्य भूमि (मिनार हिंदे) तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना ! (2) वह ईश्वर का ज्ञान प्रकाश, जो चार प्रकाश स्तम्भों के सदृश्य सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है, यह भारतवर्ष (हिंद तुन) में ऋषियों द्वारा चार रूप में प्रकट हुआ ! (3) और परमात्मा समस्त संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता है कि वेद, जो मेरे ज्ञान है, इनकेअनुसार आचरण करो !(4) वह ज्ञान के भण्डार साम और यजुर है, जो ईश्वर ने प्रदान किये ! इसलिए, हे मेरे भाइयों! इनको मानो, क्योंकि ये हमें मोक्ष का मार्ग बताते है !(5) और दो उनमें से रिक्, अतर (ऋग्वेद, अथर्ववेद) जो हमें भ्रातृत्व की शिक्षा देते है, और जो इनकी शरण में आ गया, वह कभी अन्धकार को प्राप्त नहीं होता !
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार में ब्राह्मण हिन्दू के रूप में जन्में थे और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया और मूर्ति पूजा का विरोध शुरू किया ! तब उनका संयुक्त हिन्दू परिवार उनके इस निर्णय से छिन्न-भिन्न हो गया और काबा में स्थित महाकाय शिवलिंग (संगेअस्वद) के रक्षार्थ हुये युद्ध में पैगम्बर मोहम्मद के चाचाउमर-बिन-ए-हश्शाम को तो अपने प्राण तक गंवाने पड़े !
“उमर-बिन-ए-हश्शाम” का अरब में एवं केन्द्र काबा (मक्का) में इतना अधिक सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक थे ! उन्हें “अबुल हाकम” अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे ! बाद में मोहम्मद के नये सम्प्रदाय ने उन्हें “अबुलजिहाल” अर्थात ‘अज्ञान का पिता’ कहकर संबोधित किया !
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया ! उस समय वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनीकुमार, गरूड़, नृसिंह की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी ! साथ ही एक मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की भी थी ! जिनके दानी होने की प्रसिद्धि से उसका एक हाथ सोने का बनाया गया था ! ‘होलुल’ के नाम से अभिहित यह मूर्ति वहां इब्राहम और इस्माइल की मूर्त्तियों के बराबर रखी हुई थी ! मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को तोड़कर वहां बने कुएं में फेंक दिया ! किन्तु तोड़े गये शिवलिंग का एक टुकडा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठित है ! वरन् हज करने जाने वाले मुसलमान उस काले (अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे अस्वद’ को आदर और सम्मान मान देते हुये चूमते भी हैं !
प्राचीन अरबों ने सिन्ध को सिन्ध ही कहा है “हिन्द” नहीं यह एक भ्रान्ति है तथा भारतवर्ष के अन्य प्रदेशों को हिन्द निश्चित किया गया था ! सिन्ध से हिन्द होने की बात बहुत ही अवैज्ञानिक है ! इस्लाम मत के प्रवर्तक मोहम्मद के पैदा होने से 2300 वर्ष पूर्व यानि लगभग 1800 ईश्वी पूर्व भी अरब में हिंद एवं हिंदू शब्द का ही प्रयोग होता था ! यह ज्यों कात्यों आज भी प्रयुक्त होता है !
अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति वैदिक ही थी तथा उस समय ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, धर्म-संस्कृति आदि में हिंद अर्थात भारत के साथ उसके प्रगाढ़ संबंध थे ! हिंद नाम अरबों को इतना प्यारा लगता था कि उन्होंने उस देश के नाम पर अपनी स्त्रियों एवं बच्चों के नाम भी हिंद ही रखा करते थे !
अरबी काव्य संग्रह ग्रंथ ‘ से अरूल-ओकुल’ के 253वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता है ! जिसमें उन्होंने हिन्दे यौमन एवं गबुल हिन्दू का प्रयोग बड़े आदर से किया है ! ‘उमर-बिन-ए-हश्शाम’ की कविता आज भी नई दिल्ली स्थित मन्दिर मार्ग पर श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर (बिड़लामन्दिर) की वाटिका में यज्ञशाला के लाल पत्थर के स्तम्भ (खम्बे) पर कालीस्याही से लिखी हुई है ! जो इस प्रकार है –
” कफविनक जिकरा मिन उलुमिन तब असेक !
कलुवन अमातातुल हवा व तजक्करू !1 !
न तज खेरोहा उड़न एललवदए लिलवरा !
वलुकएने जातल्लाहे औम असेरू !2 !
व अहालोलहा अजहू अरानीमन महादेव ओ !
मनोजेल इलमुद्दीन मीनहुम व सयत्तरू !3 !
व सहबी वे याम फीम कामिल हिन्दे यौमन !
व यकुलून न लातहजन फइन्नक तवज्जरू !4 !
मअस्सयरे अरव्लाकन हसनन कुल्लहूम !
नजुमुन अजा अत सुम्मा गबुल हिन्दू !5 !
अर्थात् –(1) वह मनुष्य, जिसने सारा जीवन पाप व अधर्म में बिताया हो, काम, क्रोध में अपने यौवन को नष्ट किया हो ! (2) यदि अन्त में उसको पश्चाताप हो, और भलाई की ओर लौटना चाहे, तो क्या उसका कल्याण हो सकता है ? (3) एक बार भी सच्चे हृदय से वह महादेव जी की पूजा करे, तो धर्म-मार्ग में उच्च से उच्चपद को पा सकता है ! (4) हे प्रभु ! मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन भारत (हिंद) के निवास का दे दो, क्योंकि वहां पहुंचकर मनुष्य जीवन-मुक्त हो जाता है ! (5) वहां की यात्रा से सारे शुभ कर्मो की प्राप्ति होती है, और आदर्शगुरूजनों (गबुल हिन्दू) का सत्संग मिलता है !
प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार काबा में “पवित्र गंगा” है ! जिसका निर्माण महापंडित रावण ने किया था, रावण शिव भक्त था वह शिव के साथ गंगा और चन्द्रमा के महत्व को समझता था और यह जानता था कि कभी #शिव को गंगा से अलग नहीं किया जा सकता ! जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है ! काबा के पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है ! इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे जम-जम) ही माना जाता था ! जिसका जिक्र श्रीमद्भगवत पुराण में भी आता है ! आज भी मक्का से अलग अलग शैव बीज मन्त्रों की आवाज आती है ! जैसे “ॐ” आदि ।
इस तरह सिद्ध होता है ! कि मक्का और काबा में कभी शिव की ही उपासना भक्ति होती थी ! वास्तव में मक्का शब्द की उत्पत्ति “मख” शब्द अर्थात निस्वार्थ यज्ञ से है ! जिसका मक्का कभी केन्द्र था और “काबा” शव्द का सम्बोधन शुक्राचार्य की बेटी काव्य के निवास स्थल के कारण पड़ा था ! जो प्रबल शिव भक्त एवं तपस्वी थी !