जानिए क्या है चौरासी लाख योनियों के रहस्य : Yogesh Mishra

हिन्दू धर्म में पुराणों में वर्णित 84 लाख योनियों के बारे में आपने कभी ना कभी अवश्य सुना होगा ! हम जिस मनुष्य योनि में जी रहे हैं वो भी उन चौरासी लाख योनियों में से एक है ! अब समस्या यह है कि कई लोग यह नहीं समझ पाते कि वास्तव में इन योनियों का अर्थ क्या है? यह देख कर और भी दुःख होता है कि आज की पढ़ी-लिखी नई पीढ़ी इस बात पर व्यंग करती और हँसती है कि इतनी सारी योनियाँ कैसे हो सकती है ! कदाचित अपने सीमित ज्ञान के कारण वह इसे ठीक से समझ नहीं पाते ! गरुड़ पुराण में योनियों का विस्तार से वर्णन दिया गया है ! तो आइये आज इसे समझने का प्रयत्न करते हैं !

सबसे पहले यह प्रश्न आता है कि क्या एक जीव के लिए यह संभव है कि वो इतने सारे योनियों में जन्म ले सके? तो उत्तर है – हाँ ! एक जीव, जिसे हम आत्मा भी कहते हैं, इन 84 लाख योनियों में भटकती रहती है ! अर्थात मृत्यु के पश्चात वो इन्ही 84 लाख योनियों में से किसी एक में जन्म लेती है ! यह तो हम सब जानते हैं कि आत्मा अजर एवं अमर होती है इसी कारण मृत्यु के पश्चात वो एक दूसरे योनि में दूसरा शरीर धारण करती है ! अब प्रश्न यह है कि यहाँ “योनि” का अर्थ क्या है? अगर आसान भाषा में समझा जायह तो योनि का अर्थ है जाति (नस्ल), जिसे अंग्रेजी में हम स्पीशीज (Species) कहते हैं ! अर्थात इस विश्व में जितने भी प्रकार की जातियाँ है उसे ही योनि कहा जाता है ! इन जातियों में ना केवल मनुष्य और पशु आते हैं, बल्कि पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ, जीवाणु-विषाणु इत्यादि की गणना भी उन्ही 84 लाख योनियों में की जाती है !

आज का विज्ञान बहुत विकसित हो गया है और दुनिया भर के जीव वैज्ञानिक वर्षों की शोधों के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि इस पृथ्वी पर आज लगभग सतासी लाख प्रकार के जीव-जंतु एवं वनस्पतियाँ पाई जाती है ! इन 87 लाख जातियों में लगभग 3 लाख जातियाँ ऐसी हैं जिन्हे आप मुख्य जातियों की उपजातियों के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं ! अर्थात अगर केवल मुख्य जातियों की बात की जायह तो वो लगभग 84 लाख है ! अब आप सिर्फ यह अंदाजा लगाइयह कि हमारे हिन्दू धर्म में ज्ञान-विज्ञान कितना उन्नत रहा होगा कि हमारे ऋषि-मुनियों ने आज से हजारों वर्षों पहले केवल अपने ज्ञान के बल पर यह बता दिया था कि 84 लाख योनियाँ है जो कि आज की उन्नत तकनीक द्वारा की गयी गणना के बहुत निकट है !

हिन्दू धर्म के अनुसार इन 84 लाख योनियों में जन्म लेते रहने को ही जन्म-मरण का चक्र कहा गया है ! जो भी जीव इस जन्म-मरण के चक्र से छूट जाता है, अर्थात जो अपनी 84 लाख योनियों की गणनाओं को पूर्ण कर लेता है और उसे आगे किसी अन्य योनि में जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती है, उसे ही हम “मोक्ष” की प्राप्ति करना कहते है ! मोक्ष का वास्तविक अर्थ जन्म-मरण के चक्र से निकल कर प्रभु में लीन हो जाना है ! यह भी कहा गया है कि सभी अन्य योनियों में जन्म लेने के पश्चात ही मनुष्य योनि प्राप्त होती है ! मनुष्य योनि से पहले आने वाले योनियों की संख्या अस्सी लाख बताई गयी है !

अर्थात हम जिस मनुष्य योनि में जन्मे हैं वो इतनी विरली होती है कि सभी योनियों के कष्टों को भोगने के पश्चात ही यह हमें प्राप्त होती है ! और चूँकि मनुष्य योनि वो अंतिम पड़ाव है जहाँ जीव अपने कई जन्मों के पुण्यों के कारण पहुँचता हैं, मनुष्य योनि ही मोक्ष की प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन माना गया है ! विशेषकर कलियुग में जो भी मनुष्य पापकर्म से दूर रहकर पुण्य करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति की उतनी ही अधिक सम्भावना होती है ! किसी भी अन्य योनि में मोक्ष की प्राप्ति उतनी सरल नहीं है जितनी कि मनुष्य योनि में है ! किन्तु दुर्भाग्य यह है कि लोग इस बात का महत्त्व समझते नहीं हैं कि हम कितने सौभाग्यशाली हैं कि हमने मनुष्य योनि में जन्म लिया है !

एक प्रश्न और भी पूछा जाता है कि क्या मोक्ष पाने के लिए मनुष्य योनि तक पहुँचना या उसमे जन्म लेना अनिवार्य है? इसका उत्तर है – नहीं ! हालाँकि मनुष्य योनि को मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्वाधिक आदर्श योनि माना गया है क्यूंकि मोक्ष के लिए जीव में जिस चेतना की आवश्यकता होती है वो हम मनुष्यों में सबसे अधिक पायी जाती है ! इसके अतिरिक्त कई गुरुजनों ने यह भी कहा है कि मनुष्य योनि मोक्ष का सोपान है और मोक्ष केवल मनुष्य योनि में ही पाया जा सकता है ! हालाँकि यह अनिवार्य नहीं है कि केवल मनुष्यों को ही मोक्ष की प्राप्ति होगी, अन्य जंतुओं अथवा वनस्पतियों को नहीं ! इस बात के कई उदाहरण हमें अपने वहदों और पुराणों में मिलते हैं कि जंतुओं ने भी सीधे अपनी योनि से मोक्ष की प्राप्ति की ! महाभारत में पांडवों के महाप्रयाण के समय एक कुत्ते का जिक्र आया है जिसे उनके साथ ही मोक्ष की प्राप्ति हुई थी, जो वास्तव में धर्मराज थे !

महाभारत में ही अश्वमेघ यज्ञ के समय एक नेवले का वर्णन है जिसे युधिष्ठिर के अश्वमेघ यज्ञ से उतना पुण्य नहीं प्राप्त हुआ जितना एक गरीब के आंटे से और बाद में वो भी मोक्ष को प्राप्त हुआ ! विष्णु एवं गरुड़ पुराण में एक गज और ग्राह का वर्णन आया है जिन्हे भगवान विष्णु के कारण मोक्ष की प्राप्ति हुई थी ! वो ग्राह पूर्व जन्म में गन्धर्व और गज भक्त राजा थे किन्तु कर्मफल के कारण अगले जन्म में पशु योनि में जन्मे ! ऐसे ही एक गज का वर्णन गजानन की कथा में है जिसके सर को श्रीगणेश के सर के स्थान पर लगाया गया था और भगवान शिव की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई ! महाभारत की कृष्ण लीला में श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में खेल-खेल में “यमल” एवं “अर्जुन” नमक दो वृक्षों को उखाड़ दिया था ! वो यमलार्जुन वास्तव में पिछले जन्म में यक्ष थे जिन्हे वृक्ष योनि में जन्म लेने का श्राप मिला था ! अर्थात, जीव चाहे किसी भी योनि में हो, अपने पुण्य कर्मों और सच्ची भक्ति से वो मोक्ष को प्राप्त कर सकता है !

एक और प्रश्न पूछा जाता है कि क्या मनुष्य योनि सबसे अंत में ही मिलती है ! तो इसका उत्तर है – नहीं ! हो सकता है कि आपके पूर्वजन्मों के पुण्यों के कारण आपको मनुष्य योनि प्राप्त हुई हो लेकिन यह भी हो सकता है कि मनुष्य योनि की प्राप्ति के बाद कियह गए आपके पाप कर्म के कारण अगले जन्म में आपको अधम योनि प्राप्त हो ! इसका उदाहरण आपको ऊपर की कथाओं में मिल गया होगा ! कई लोग इस बात पर भी प्रश्न उठाते हैं कि हिन्दू धर्मग्रंथों, विशेषकर गरुड़ पुराण में अगले जन्म का भय दिखा कर लोगों को डराया जाता है ! जबकि वास्तविकता यह है कि कर्मों के अनुसार अगली योनि का वर्णन इस कारण है ताकि मनुष्य यथासंभव पापकर्म करने से बच सके !

हालाँकि एक बात और जानने योग्य है कि मोक्ष की प्राप्ति अत्यंत ही कठिन है ! यहाँ तक कि सतयुग में, जहाँ पाप शून्य भाग था, मोक्ष की प्राप्ति अत्यंत कठिन थी ! कलियुग में जहाँ पाप का भाग 1५ है, इसमें मोक्ष की प्राप्ति तो अत्यंत ही कठिन है ! हालाँकि कहा जाता है कि सतयुग से उलट कलियुग में केवल पाप कर्म को सोचने पर उसका उतना फल नहीं मिलता जितना करने पर मिलता है ! और कलियुग में कियह गए थोड़े से भी पुण्य का फल बहुत अधिक मिलता है ! कई लोग यह समझते हैं कि अगर किसी मनुष्य को बहुत पुण्य करने के कारण स्वर्ग की प्राप्ति होती है तो इसी का अर्थ मोक्ष है, जबकि ऐसा नहीं है ! स्वर्ग की प्राप्ति मोक्ष की प्राप्ति नहीं है ! स्वर्ग की प्राप्ति केवल आपके द्वारा कियह गए पुण्य कर्मों का परिणाम स्वरुप है ! स्वर्ग में अपने पुण्य का फल भोगने के बाद आपको पुनः किसी अन्य योनि में जन्म लेना पड़ता है ! अर्थात आप जन्म और मरण के चक्र से मुक्त नहीं होते ! रामायण और हरिवंश पुराण में कहा गया है कि कलियुग में मोक्ष की प्राप्ति का सबसे सरल साधन “राम-नाम” है !

पुराणों में 84 लाख योनियों का गणनाक्रम दिया गया है कि किस प्रकार के जीवों में कितनी योनियाँ होती है ! पद्मपुराण के 78/5 वें सर्ग में कहा गया है:

जलज नवलक्षाणी,
स्थावर लक्षविंशति
कृमयो: रुद्रसंख्यकः
पक्षिणाम् दशलक्षणं
त्रिंशलक्षाणी पशवः
चतुरलक्षाणी मानव
अर्थात,
जलचर जीव – नौ लाख
वृक्ष – बीस लाख
कीट (क्षुद्रजीव) – ग्यारह लाख
पक्षी – दस लाख
जंगली पशु – तीस लाख
मनुष्य – चार लाख
इस प्रकार 9,00,000 + 20,00,000 + 11,00,000 + 10,00,000 + 30,00,000 + 4,00,000 = कुल 84 लाख योनियाँ होती है !

जैन धर्म में भी जीवों की 84 लाख योनियाँ ही बताई गयी है ! सिर्फ उनमे जीवों के प्रकारों में थोड़ा भेद है !
जैन धर्म के अनुसार:-

पृथ्वीकाय – 7,00,000 (सात लाख)
जलकाय – 7,00,000 (सात लाख)
अग्निकाय – 7,00,000 (सात लाख)
वायुकाय – 7,00,000 (सात लाख)
वनस्पतिकाय – 10,00,000 (दस लाख)
साधारण देहधारी जीव (मनुष्यों को छोड़कर) – 14,00,000 (चौदह लाख)
द्वि इन्द्रियाँ – 2,00,000 (दो लाख)
त्रि इन्द्रियाँ – 2,00,000 (दो लाख)
चतुरिन्द्रियाँ – 2,00,000 (दो लाख)
पञ्च इन्द्रियाँ (त्रियांच) – 4,00,000 (चार लाख)
पञ्च इन्द्रियाँ (देव) – 4,00,000 (चार लाख)
पञ्च इन्द्रियाँ (नारकीय जीव) – 4,00,000 (चार लाख)
पञ्च इन्द्रियाँ (मनुष्य) – 14,00,000 (चौदह लाख)
इस प्रकार 7,00,000 + 7,00,000 + 7,00,000 + 7,00,000 + 1,00,000० + 14,00,000 + 2,00,000 + 2,00,000 + 2,00,000 + 4,00,000 + 4,00,000 + 4,00,000 + 14,00,000 = कुल 84 लाख

अतः अगर आगे से आपको कोई ऐसा मिले जो 84 लाख योनियों के अस्तित्व पर प्रश्न उठायह या उसका मजाक उड़ाए, तो कृपया उसे इस शोध को पढ़ने को कहें ! साथ ही यह भी कहें कि हमें इस बात का गर्व है कि जिस चीज को साबित करने में आधुनिक/पाश्चात्य विज्ञान को हजारों वर्षों का समय लग गया, उसे हमारे विद्वान ऋषि-मुनियों ने सहस्त्रों वर्षों पूर्व ही सिद्ध कर दिखाया था !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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