मनुष्य में आकर्षण और अभिव्यक्ति के कई तल हैं ! जो मनुष्य के कर्मेंद्रियों और ज्ञानेंद्रियों को नियंत्रित करते हैं ! इन्हीं आकर्षण और अभिव्यक्ति को मनुष्य अज्ञानता में जन्म से मृत्यु तक अज्ञात कामना और वासना की संतुष्टि के लिये ढ़ोता रहता है !
संस्कार, स्वभाव, पूर्वाग्रह, विचार, कामना, वासना, चिंतन आदि आदि ! यह सभी मनुष्य के बंधन के कारण है ! अभी नहीं तो भविष्य में यह सभी अपने संतुष्टि को प्राप्त करेंगे ! इसी आशा और अपेक्षा में व्यक्ति जीवन भर संघर्ष करता रहता है और हांथ कुछ भी नहीं आता है !
यही माया का खेल है ! व्यक्ति पूरे जीवन उन चीजों के पीछे लगा रहता है जो उसे कभी प्राप्त नहीं होनी है और जो सहज प्राप्त है, उसकी तरफ मनुष्य का ध्यान ही नहीं जाता है !
ईश्वर ने इस अपूर्ण सृष्टि को मात्र मनुष्य को प्रशिक्षित करने के लिए बनाया है, न कि किसी सुख और आनंद के भोग करने के लिये ! जो व्यक्ति इस संसार में सुख और आनंद की तलाश कर रहे हैं, वह सभी ईश्वर की मनसा को नहीं समझ पा रहे हैं !
ईश्वर हमें निर्मल बनाना चाहता है, इसीलिए वह कहता है कि तुम अपनी कामना और वासना की प्राप्ति के लिए जो जन्म जन्मांतर से भटक रहे हो, वह तुम्हें इस संसार में कभी भी प्राप्ति नहीं होगा !
क्योंकि यह संसार ही अपूर्ण निर्मित किया गया है ! इस रहस्य को जो व्यक्ति जितना जल्दी समझ जाता है और कामना और वासना से परे स्व में स्थित हो जाता है ! वह इस संसार से उतना जल्दी मुक्त हो जाता है !
लेकिन भोग की इच्छा व्यक्ति में आकर्षण बनाए रखती है और व्यक्ति जन्म जन्मांतर तक इसी कृतिम आकर्षण में फंसा रहता है और अंततः हाथ कुछ भी नहीं आता है !
इसलिए इस संसार में सुख और आनंद ढूंढने से बेहतर है कि स्व में स्थित होने का अभ्यास कीजिए ! यह संसार अपूर्ण है ! इसमें कभी भी पूर्णता प्राप्त नहीं होगी और बिना पूर्णता के सुख और आनंद नहीं मिलेगा ! यही प्रकृति का कठोर सत्य है !
इस कठोर सत्य को जान लेने के बाद व्यक्ति संसार में आनंद ढूढ़ने की जगह स्व के अंतःकरण में प्रवेश कर जाता है और मनुष्य के अंतः करण में ईश्वर द्वारा प्रदत्त आनंद पहले से ही विराजमान है ! जिसने यह आनंद संसार की जगह अपने अंतःकरण में प्राप्त कर लिया ! वह फिर इस संसार की निगाह में समाधि को प्राप्त हो जाता है !
यही है समाधि के सुख का सूक्ष्म विज्ञान !!