क्या सनातन और धर्मद्रोही थे गौतम बुद्ध ? जानिए अनकहा सत्य : Yogesh Mishra

गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था ! उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश की थीं, जिनका गौतम बुद्ध के जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया ! उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया था ! इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था ! यह भगवान श्री राम के कुल के सनातन धर्मी जीवन शैली के परिवार के थे !

यह बचपन से ही एकांत प्रिय और निराशावादी सोच के थे ! जिसे आज के अधुनिक विज्ञान में मानसिक रोगी कहते हैं ! इसीलिये इनकी शिक्षा किसी गुरुकुल में नहीं हुई ! जिसके कारण इन्हें सनातन धर्म शास्त्रों का कोई ज्ञान नहीं था और न ही सामाजिक लोकाचार और सनातन वर्ण व्यवस्था या सामाजिक मर्यादाओं का ही बोध था !

जबकि राज कुल का होने के नाते युवा होने पर इनका विवाह संस्कार यशोधरा नाम की कन्या से हो गया ! विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात पुत्र राहुल के जन्म लेते ही यह पुत्र राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर बोध गया बिहार में एक वटवृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यान करने लगे ! 4 सप्ताह तक वहीं वटवृक्ष के नीचे बैठे रहे !

अत्यंत भूख से शरीर जर्जर हो चुका था और अर्ध मूर्छित अवस्था में यह उसी पेड़ के नीचे बैठे रहते थे ! तब इसी बीच सुजाता नाम की एक स्त्री को पुत्र हुआ ! उसने बेटे के लिये एक वटवृक्ष की मनौती मानी थी ! जिसके पूरा होने पर वह मनौती पूरी करने के लिये गाय के दूध की खीर लेकर उसी वटवृक्ष के नीचे पहुंची । जहाँ पर गौतम बुद्ध भूख प्यास से तड़फ के अर्ध मूर्छित अवस्था में पड़े हुये थे !

उसने इनकी यह दुर्दशा देखकर तत्काल दया भाव से इन्हें भगवान की पूजा के लिये ले जाने वाली खीर खिलाई ! तब थोड़ी देर बाद गुलुकोस से ऊर्जा मिलने पर यह चैतन्य हुये ! तब उस महिला ने इनके विषय में पूंछा तो गौतम बुद्ध अपना सारा वृत्तांत रो-रो कर उस महिला को बदलाने लगे ! जिस पर दया करके वह आगे भी इन्हें नियमित रूप से भोजन पहुंचा दिया करती थी !

धीरे धीरे उस क्षेत्र में एक व्यक्ति के तप करने की सूचना फैलने लगी और वहां पर इनके दर्शन के लिये भीड़ इकट्ठी होने लगी ! इसी बीच गौतम बुद्ध को उसी भीड़ के एक व्यक्ति से पता चला कि भारत के ज्ञान का केंद्र काशी है ! अतः यह 35 वर्ष की आयु में यह बोधगया छोड़कर काशी के निकट सारनाथ आ गये ! जबकि दूसरी तरफ इनके परिवार वाले इन्हें ढूंढ ढूंढ कर निराश हो चुके थे !

वहीं पर उन्होंने सबसे पहला धर्मोपदेश दिया ! गौतम बुद्ध को सनातन धर्म की भाषा संस्कृत नहीं आती थी अत: वह सीधी-सरल लोकभाषा में “पाली” में प्रवचन किया करते थे ! गौतम बुद्ध ने सनातन धर्म के कठोर सिद्धांतों को छोड़कर मध्यम मार्ग अपनाने के लिये लोगों से कहा और सनातन शास्त्र विरुद्ध स्वनिर्मित अष्टांगिक मार्ग अपनाने को कहा ! जिसका सनातन धर्म को मानने वालों ने कठोर विरोध किया !

किंतु अधिकांश शुद्र जाति के लोग इनके अनुयायी हो गये ! जिन्हें सनातन धर्म के अनुपालन में परेशानी होती थी ! इन्हों ने सत्यनिष्ठ सनातन धर्मी समाज को कर्मकांड से हटाकर “ध्यान” करने पर अधिक बल दिया और सनातन धर्म के अनुसार आहार-विहार विचार भोजन आदि की शुद्धता के सारे प्रतिबंध समाप्त कर दिये और सन्देश दिया कि ईश्वर मात्र ध्यान से प्राप्त होता है ! किसी यज्ञ, पूजा, अनुष्ठान या कर्मकांड से नहीं !

अतः आप सभी मात्र ध्यान करें ! जोकि सनातन धर्म की व्यवस्था के विपरीत धार्मिक होने का बहुत सरल सा उपाय था ! अतः इनके शिष्यों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ने लगी क्योंकि समाज को सनातन धर्म की व्यवस्था के विपरीत एक अलग ही सरल नियमों वाला वैकल्पिक धर्म मिल गया था !

जब इस बात की जानकारी इनके ममेरे भाई आनंद को हुई तो वह व्यवसायिक समझ का व्यक्ति इनके पास आ गया और इनके विचारों का प्रचार प्रसार उसने व्यवसायिक दृष्टिकोण अपनाते हुये पूरी दुनिया में स्वनिर्मित वैकल्पिक धर्म अर्थात बौद्ध दर्शन के रूप में संपूर्ण एशिया में दूत भेज कर इसका प्रचार करना शुरू कर दिया ! क्योंकि गौतम बुद्ध प्रतिष्ठित ईश्वाकु वंश के राज घराने से संबंध रखते थे ! अतः क्षत्रिय राजाओं ने इस नव निर्मित धर्म को बढ़ाने में खुब सहयोग किया !

जगह-जगह बौद्ध विहार बनने लगे और राजा स्वयं ही गौतम बुद्ध के आदर सत्कार में उपस्थित होने लगे ! राजा को देखकर जनता भी बौद्ध धर्म अनुयाई होने लगी क्योंकि इस नवोदित धर्म में सनातन धर्म जैसी कठोरता नहीं थी ! अतः विकृत समाज को यह नवोदित धर्म खूब रास आया !

क्योंकि उस समय एक मात्र सनातन धर्म ही पूरी पृथ्वी पर था ! इसलिये सनातन धर्म के कठोर नियमों के विपरीत इस नवोदित धर्म की समाज के मध्यम मार्ग की लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ने लगी और धीरे-धीरे संपूर्ण एशिया में जहां तक आर्यावर्त था ! वहां तक सनातन धर्म विरोधी मध्यम मार्ग के नवोदित धर्म को अपनाने वाले लोगों की संख्या करोड़ों में पहुंच गई !

80 वर्ष की उम्र मांसाहार भोजन प्रिय गौतम बुद्ध ने अपना आखिरी मांसाहारी भोजन सड़े मीट से निर्मित भोजन कुन्डा नामक एक लोहार से एक भेंट के रूप में प्राप्त कर किया था ! जिससे उन्हें सेफटिक हो गया ! जिसके कारण वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गये और उनकी मृत्यु गोरखपुर के निकट कुशी नगर नामक स्थान पर हो गई !

गौतम बुद्ध मरने पर 6 दिनों तक लोग दर्शनों के लिये आते रहे ! सातवें दिन शव को जलाया गया ! फिर उस अहिंसा के प्रचारक के अनुयायियों के मध्य गौतम बुद्ध के अवशेषों को लेकर मगध के राजा अजातशत्रु, कपिलवस्तु के शाक्यों और वैशाली के विच्छवियों आदि में भयंकर युद्ध हुआ ! जिसमें हजारों लोग मरे गये !

तब द्रोण मिश्र नामक सनातन धर्मी ब्राह्मण ने झगड़ा शांत करवा कर इनके मध्य समझौता करवाया कि अवशेष आठ भागों में बांट लिये जाये ! सभी को बराबर अधिकार दिया जाये तब ऐसा ही हुआ ! आठ स्तूप आठ राज्यों में बनाकर अवशेष रखे गये ! बताया जाता है कि बाद में सम्राट अशोक ने भारत विजय के बाद उन्हें निकलवा कर 84000 स्तूपों में बांट दिया था !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

बौद्ध धर्म की सत्यता : Yogesh Mishra

जैसा कि मैंने पूर्व के अपने एक लेख में बतलाया कि बौद्ध धर्म को लेकर …