पाप और पुण्य दोनों ही मोक्ष में बाधक हैं !! YogeshMishra

मानव शरीर एक भोग योनि है अर्थात व्यक्ति अपने पूर्व में किये गये कर्मों के अनुसार ही मानव शरीर धारण करता है ! व्यक्ति का जन्म कब, कहां, किस परिवेश में, किस धर्म-जाति में, विश्व के किस हिस्से में, किस आहार-विहार विचार के व्यक्तियों के समूह के साथ होगा ! इन सारी चीजों का निर्धारण व्यक्ति के पूर्व में किये गये कर्मों के अनुसार ही होता है !

व्यक्ति के जन्म के बाद परिवेश बस उसमें 10% ही अंतर करवाया जा सकता है ! शेष सभी कुछ भोग पूर्व के कर्मों के अनुसार ही होते हैं !

उदाहरण के लिये भगवान श्री राम स्वयं एक राजा के लाडले पुत्र थे और उनका विवाह भी उस समय के एक श्रेष्ठ त्यागी राजकुल में हुआ था ! उनकी पत्नी भी एक राजकुमारी ही थी ! किंतु इसके बाद भी काल के प्रवाह में उन्हें 14 वर्ष जंगल में रहना पड़ा और विश्व के सबसे शक्तिशाली “रक्ष” संस्कृति के स्वामी रावण से अपने स्वाभिमान और पत्नी की रक्षा के लिये युद्ध करना पड़ा ! युद्ध उपरांत जब अयोध्या वापस लौट कर आये, तो वहां भी उनका जीवन तनावपूर्ण रहा ! राजघराने की पत्नी को गर्भ अवस्था में त्यागना पड़ा ! अंततः मानसिक तनाव से अनिद्रा रोग के कारण उन्हें सरजू नदी में जल समाधि लेनी पड़ी !

यह सभी कुछ निर्धारित करता है कि व्यक्ति पूर्व के कर्मों के प्रभाव के परिणामों से कभी भी मुक्त नहीं होता है ! वह चाहे कितने भी संपन्न परिवार में पैदा हुआ हो या कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो ! विष्णु के पूर्व बावन अवतार में बाली को छलकर उनके संपूर्ण राज्य पाठ को छीन लेने का प्रारब्ध दोष उन्हें श्री राम के रूप में समस्त राज्य संपत्ति होने के बाद भी कष्ट में जंगलों में भटकता रहा !

इसी तरह श्री राम के रूप में इंद्र और विश्वामित्र द्वारा अलग-अलग मौकों पर भड़कये जाने पर राक्षसों का बिना किसी कारण हत्या करने वाले राम ने जब श्री कृष्ण के रूप में जन्म लिया तो उन्हें पुनः उसी कर्म के प्रभाव से जन्म से ही विभिन्न राक्षसों का सामना करना पड़ा और पूरा जीवन बिना किसी कारण के विभिन्न राक्षसों के साथ संघर्ष करते-करते ही बीत गया !

अतः यह सिद्ध होता है कि व्यक्ति सांसारिक माया के प्रभाव में आकर जब किसी भी कार्य को करता है और उस कार्य में रसास्वादन करता है ! तब उसके कर्म ही कर्म भोग के प्रवाह में आकर आगे के जन्मों में उनके परिणामों को भोगने का लिये बाध्य करते हैं ! इस बंधन से भगवान भी मुक्त नहीं है फिर मनुष्य यह कैसे कल्पना कर सकता है कि वह कर्म प्रभाव से कुछ दान करके या कथा सुन कर मुक्त हो जायेगा !

तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय के व्यक्ति को यह बतलाया जाता है कि धार्मिक कार्य करने से या दान दक्षिणा देने से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं ! लेकिन सनातन शास्त्र यह बतलाते हैं कि दान दक्षिणा देने या धार्मिक अनुष्ठान करने से व्यक्ति के पास कभी नष्ट नहीं होते हैं ! व्यक्ति को पापों को तो भोगना ही पड़ता है और दान दक्षिणा या धार्मिक अनुष्ठान के कारण जो वह पुण्य का संग्रह करता है ! उसको भी उसे शुभ फल के रूप में भोगना पड़ता है ! जब कोई व्यक्ति पाप और पुण्य दोनों ही भोगों से मुक्त हो जाता है ! तब कर्म भोग में वह न तो कोई पाप कर्म करता है और न ही कोई पुण्य कर्म करता है ! तब उसे तटस्थ रहने के कारण संपूर्ण भोग समाप्त हो जाने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है !

यही प्रकृति की व्यवस्था है और इस व्यवस्था को जो व्यक्ति जितना जल्दी समझ लेगा ! वह संसार के बंधन से उतनी जल्दी मुक्त हो जायेगा ! इसलिये किसी भी पाप को न करने के साथ-साथ मोक्ष के लिये यह भी आवश्यक है कि किसी भी पुण्य कर्म में अनावश्यक रसास्वादन भी न किया जाये !

व्यक्ति तटस्थ हो और बिना किसी रसास्वादन के अपना भोग योनि का जीवन यापन कर रहा हो ! वही मोक्ष का एकमात्र मार्ग है ! अत्यधिक धर्म साहित्य को पढ़कर पुण्य के संग्रह की इच्छा भी व्यक्ति के पुनर्जन्म के बंधन में बंधने का कारण हो सकती है ! पाप कर्म तो व्यक्ति को पुनर्जन्म के बंधन में बांधते ही हैं !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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