जानिए भगवान शिव को भांग क्यों प्रिय थी ? : Yogesh Mishra

विश्व की प्राचीनतम शैव नगरी में आज भी भांग का प्रयोग खुले आम होता है ! महाशिवरात्रि और होली का रंग तभी जमता है जब भांग का भी संग हो ! यकीनन भांग का ज्यादा इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है…
विश्व की प्राचीनतम शैव नगरी में आज भी भांग का प्रयोग खुले आम होता है ! महाशिवरात्रि और होली का रंग तभी जमता है जब भांग का भी संग हो ! यकीनन भांग का ज्यादा इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है…
सूचना का अधिकार कानून संभवत: आम जनता द्वारा सबसे ज्यादा बार प्रयोग किया जाने वाले कानूनों में से एक है ! अगर यहां से भी 45 दिनों के भीतर जवाब नहीं मिलता है तो आवेदक केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य…
महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास.-4 के पृष्ठ- 96,97 पर लिखा है कि वेदाध्ययन के समाप्त होने पर ही व्यक्ति को गृहस्थ में प्रवेश करना चाहिये ! सोलह से चौबीस वर्ष तक कन्या और पच्चीस से अड़तालीस वर्ष तक पुरुष…
सन् 1897 में श्री देवेन्द्र नाथ मुखोपाध्याय ने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम ‘‘दयानन्द चरित’’ था ! यह पुस्तक बंगला भाषा में लिखा था ! इसका अनुवाद सन् 2000 में 103 वर्ष पश्चात् बाबू घासी राम एम.ए., एल.एल.बी. ने हिन्दी…
कहा जाता है कि शैव उपासक रावण पर भगवान राम के विजय के बाद वैष्णवों के धर्म अनुयायियों में एक से एक वैष्णव उपासना पद्धति और वैष्णव साहित्यों का निर्माण किया है जबकि वैष्णव राज सत्ता का समर्थन न मिलने…
जिसे आम लोग तंत्र के नाम से जानते हैं वह है जादू-टोना, जिसका कोई दार्शनिक और वैज्ञानिक आधार नहीं है और जिसकी बुनियाद में सदियों से चले आते अंधविश्वास हैं ! जबकि तंत्र वास्तव में अंधविश्वास को तोड़ता है !…
सत्यता : कोई अगर अपनी श्रध्दा और विश्वास से सुख पूर्वक जी रहा है और वह पत्थर में भी देवता देख रहा है, इससे किसी को क्या आपत्ति हो सकती है ? तुम्हें नहीं मानना मत मानो, कोई कहने भी…
वैदिक दर्शन के परिचय के लिये यह वेदान्गी भूत ज्योतिष दर्शन सूर्य के समान प्रकाश देने का काम करता है,अतएव इसे वेद पुरुष या ब्रह्मपुरुष का चक्षु: (सूर्य) भी कहा गया है ! ज्योतिषामयनं चक्षु: सूर्यो अजायत,इत्यादि आगम वचनों के…
अथर्ववेद संहिता हिन्दू धर्म के पवित्रतम और सर्वोच्च धर्मग्रन्थ वेदों में से चौथे वेद अथर्ववेद की संहिता अर्थात मन्त्र भाग है ! इसमें देवताओं की स्तुति के साथ जादू, चमत्कार, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं ! अथर्ववेद…
सूर्य के उत्तरायण के आरंभ के सम्बन्ध में अनुशासन पर्व के 32वें अध्याय के पांचवें श्लोक को देखें:- उषित्वा शर्वरी श्रीमान पंचाशन्न गरोत्त में ! समयं कौरवा ग्रयस्य संस्कार पुरूषर्षभ: ! ! अर्थात पचास रात्रि बीतने तक उस उत्तम नगर…