धर्म का निर्माण समाज को व्यवस्थित तरीके से चलाने के लिए हुआ था, किन्तु कालांतर में धर्म के मुखिया लोगों की विलासिता को देखकर लोगों ने धर्म की ओट में धन कमाने के निर्णय लिया ! धीरे धीरे समाज का चालाक व्यक्ति किसी न किसी महापुरुष के नाम पर धर्म …
Read More »अवधूत सन्यासियों का रहस्यमय जगत : Yogesh Mishra
अवधूत ऐसा इंसान होता है, जो मन के भाग दौड़ को त्याग कर शिशु जैसी अवस्था में पहुंच गया हो ! अब उसे संसार और समाज के नियमों का कुछ भी पता नहीं होता है ! वह अपने आपको संसार से इतना अलग कर लेते हैं कि अब यदि आपको …
Read More »कृतिम परकाया प्रवेश की तैय्यारी : Yogesh Mishra
किसी व्यक्ति की आत्मा का किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करना या करवाना ही ‘पर-काया प्रवेश’ कहलाता है ! इस संबंध में नाथ सम्प्रदाय के आदि गुरु मुनिराज ‘मछन्दरनाथ’ के विषय में कहा जाता है कि उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि प्राप्त थी, सूक्ष्म शरीर से वह अपनी …
Read More »सभी धर्मग्रन्थ व्यर्थ हैं : Yogesh Mishra
धर्मशास्त्र शब्द पर आधारित सूचना के संग्रह से अधिक और कुछ नहीं हैं ! क्योंकि शब्दों में विराट ईश्वर नहीं समा सकता वह विशुद्ध अनुभूति का विषय है और शास्त्रों के शब्द मात्र हमारे मार्गदर्शक हैं, लेकिन साधना और अनुभूति हमें स्वयं करनी होगी ! बिना साधना और अनुभूति के …
Read More »हिमालय का रहस्य भोटिया कुत्ता : Yogesh Mishra
भगवान शिव का नाम लेते ही शिव के विश्वसनीय गण भैरव जी महाराज का नाम स्वत: ही जवान पर आ जाता है ! भैरव का पर्याय एक विशेष नस्ल का हिमालय का भोटिया कुत्ता माना जाता है ! जो कैलाश मानसरोवर क्षेत्र से लेकर तिब्बत, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश आदि पर्वतीय …
Read More »आखिर भारत विश्व गुरु कैसे बनेगा ? : Yogesh Mishra
हमारे बहुत से साथी आज भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना चाहते हैं, लेकिन अपने अपने तरीके से ! कोई गोबर और गोमूत्र बेचकर भारत को विश्वगुरु बनाना चाहता है, तो कोई वेद, पुराण, उपनिषद आदि का ज्ञान देकर भारत को विश्वगुरु बनाना चाहता है ! जो पढ़ा लिखा वर्ग है, …
Read More »समाधि का सूक्ष्म विज्ञान : Yogesh Mishra
मनुष्य में आकर्षण और अभिव्यक्ति के कई तल हैं ! जो मनुष्य के कर्मेंद्रियों और ज्ञानेंद्रियों को नियंत्रित करते हैं ! इन्हीं आकर्षण और अभिव्यक्ति को मनुष्य अज्ञानता में जन्म से मृत्यु तक अज्ञात कामना और वासना की संतुष्टि के लिये ढ़ोता रहता है ! संस्कार, स्वभाव, पूर्वाग्रह, विचार, कामना, …
Read More »द्रष्टा संन्यास आज की आवश्यकता है : Yogesh Mishra
शैव जीवन शैली में संन्यास का सीधा सा तात्पर्य जो भगवान के बनाये हुये संसार को में एक न्यासी के रूप में अपना जीवन यापन करता हो ! अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि ईश्वर की सृष्टि ईश्वर ही चला रहा है, हम तो मात्र उस सृष्टि में अपना …
Read More »काल से सभी पराजित हैं : Yogesh Mishra
इस सृष्टि में शिव के अतिरिक्त काल से अधिक सामर्थवान कोई भी नहीं है ! काल को जीतना मनुष्य के पुरुषार्थ का विषय ही नहीं है ! फिर वह चाहे भगवान राम, कृष्ण, बुद्ध, सिकंदर, चाणक्य, सुकरात आदि कोई भी हों ! इसी में एक और नाम जोड़ा जा सकता …
Read More »ओशो की मृत्यु या हत्या : Yogesh Mishra
बीसवीं सदी के सबसे बड़े दार्शनिक, विचारक, चिंतक, बुद्धत्व को प्राप्त, गहन मनोचिकित्सक चंद्र मोहन जैन उर्फ़ भगवान रजनीश उर्फ़ ओशो के पुणे स्थित रजनीशपुरम आश्रम एवं उनकी सभी बौद्धिक संपदा के ऊपर अधिकार जमाने हेतु एक बहुत बड़ा विवाद मुंबई उच्च न्यायालय में विचाराधीन है ! यह विवाद यह …
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