हरिवंश पुराण में लिखा है की द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने भाद्रपद की अष्टमी बुधवार रोहिणी नक्षत्र में अवतार लिया। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराते हुए अर्जुन को दिव्य ज्ञान देते हुए संदेश दिया कि शांति का मार्ग ही प्रगति एवं समृद्धि का मार्ग है जबकि युद्ध का मार्ग सीधे श्मशान ले जाता है।
श्रीमद्भागवत की अन्वितार्थ प्रकाशिका टीका में दशम स्कन्ध के तृतीय अध्याय की व्याख्या में पंडित गंगासहाय जी ने ख्माणिक्य ज्योतिष ग्रंथ के आधार पर लिखा है कि…
“उच्चास्था: शशिभौमचान्द्रिशनयो लग्नं वृषो लाभगो जीव: सिंहतुलालिषु क्रमवशात्पूषोशनोराहव:।
नैशीथ: समयोष्टमी बुधदिनं ब्रह्मर्क्षमत्र क्षणे श्रीकृष्णाभिधमम्बुजेक्षणमभूदावि: परं ब्रह्म तत्।।”
भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली में पूर्ण पुरुष अर्थात पंचम भाव में स्थित उच्च के बुद्ध ने जहां उन्हें वाकचातुर्य, विविध, कलाविद् बनाया, वहीं बिना हथियार के मात्र वाकचातुर्य से कठिन से कठिन कार्य भी सिद्ध करने का समर्थ दिया तथा स्वगृही बृहस्पति ने आय भाव में, नवम भाव में स्थित उच्च के मंगल ने और शत्रु भाव में स्थित उच्च के शनि ने उन्हें वीराग्रणी और परम पराक्रमी बनाया था ।
माता के स्थान में स्थित स्वगृही सूर्य ने माता-पिता से दूर रखा और सप्तमेश मंगल तथा लग्र में स्थित उच्च के चन्द्र ने और स्वगृही शुक्र ने उन्हें विपरीत लिंग में लोक प्रिय बनाते हुये गोपी गण, सेवित रसिक शिरोमणि और कलाप्रेमी सौन्दर्य-उपासक बनाया ।
लाभ घर के बृहस्पति, नवम भाव में उच्च के मंगल, छठे भाव में स्थित उच्च के शनि, पंचम भाव में स्थित उच्च के बुध और चतुर्थ भाव में स्थित उच्च के सूर्य ने महान पुरुष, शत्रुहन्ता, तत्वज्ञ, विजयी, जननायक और अमर र्कीतकारक बनाया। इन्हीं ग्रहों के विराजमान होने के कारण तथा लग्र में उच्च के सूर्य के कारण चंचल नेत्र, समृद्धशाली, ऐश्वर्यवान एवं वैभवशाली चक्रवर्ती राज योग का निर्माण किया। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में अधर्म पर धर्म की विजय की पताका फहराई पांडव रूपी धर्म की रक्षा की एवं कौरव रूपी अधर्मियों का नाश किया।
श्रीकृष्ण की इस पत्रिका में एकादशेश गुरु का तीसरे भाव में होना उनके सबसे छोटे होने का पता बताता है क्योंकि यह गुरु शनि और मंगल से दृष्ट है उन से पहले जन्मे सभी भाई बहनों की हत्या कंस के द्वारा कर दी गई थी | शनि राहु का छठे भाव में बारहवें भाव को देखना तथा चतुर्थेश को बारहवें भाव के स्वामी मंगल के द्वारा देखना जन्म के समय उनके मां-बाप का कारावास में होना निश्चित करता है | कुंडली में सप्तमेश अष्टमेश का संबंध अध्यात्म साधना हेतु बढ़िया होता है जोकि ध्यान समाधि आदि के अतिरिक्त विवाह बंधन का टूटना भी दर्शाता है ध्यान दें यह संबंध मंगल और शुक्र का बन रहा है जो एक से अधिक विवाह की पुष्टि करते हैं | पंचमेश का पंचम भाव में उच्च राशि का होना श्री कृष्ण भगवान के अत्याधिक बुद्धिमान व अच्छे विद्वान होने की पुष्टि करता है |
तीसरे भाव में उच्च का गुरु उपदेश देने के लिए उनकी पुष्टि करता है सभी जानते हैं उन्होंने गीता का उपदेश दिया था | छठे भाव के स्वामी शुक्र का सूर्य सिंह चतुर्थ भाव में होना उनकी दो माताओं की पुष्टि करता है | दशमेश का छठे भाव में राहु संग होना जादू करिश्मा आदि करना बताता है | सप्तमेश का ग्यारहवें भाव में होना एक से अधिक विवाह की पुष्टि करता है तथा उनके कई सारी अनुयाई होने का पता बताता है | लग्न में उच्च का चंद्रमा तथा उस पर किसी भी ग्रह का प्रभाव ना होना उनकी चंचल प्रवृति को दर्शाता है तृतीयेश का लग्न में होना गायन अथवा वादन कला से संबंधित बताता है |