सूचना है कि सोशल मीडिया के लिये केंद्र सरकार की नई गाइडलाइन लागू करने के लिये गूगल और फेसबुक जैसी कंपनी तैयार हैं, लेकिन व्हाट्सएप अभी भी पूरी तरह से न मानने के लिये अड़ी हुई है !
दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में व्हाट्सएप ने कहा कि केंद्र सरकार की नई गाइडलाइन लोगों की निजता का हनन है ! हालांकि केंद्र सरकार ने साफ कर दिया के व्हाट्सएप को गंभीर मामलों की जानकारी मांगे जाने पर सरकार को उपलब्ध करवानी होगी और सरकार ने नये नियम लागू करने पर सभी सोशल मीडिया कंपनियों से जवाब मांगा है !
संज्ञान रहेगी केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सभी सोशल मीडिया कंपनियों से 80 नये नियमों के क्रियान्वयन को लेकर जवाब तलब किया है ! इस विषय में सरकार का मुख्य जोर इस बात पर है कि सोशल मीडिया पर यदि कोई भी सूचना दी जाती है तो उस सूचना को देने वाले प्रथम व्यक्ति का स्रोत सोशल मीडिया कंपनी को सरकार को बतलाना होगा !
इस दिशा में तकनीकी कार्रवाई करने के लिये गूगल, फेसबुक, ट्विटर जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों ने अपने यहां कवायद भी शुरू कर दी है ! उम्मीद है कि निकट भविष्य में सरकार की मंशा के अनुरूप यह कंपनियां आवश्यकता पड़ने पर सोशल मीडिया पर किसी भी सूचना के प्रसारण से संबंधित समस्त सूचना सरकार को मात्र एक इशारे पर उपलब्ध करवाएंगी !
मुझे लगता है कि अगले वर्ष भारत के कई महत्वपूर्ण प्रदेशों में चुनाव होने वाले हैं ! बंगाल चुनाव में मिली करारी हार का कारण बीजेपी ने सोशल मीडिया को ही माना है ! इसी के मद्देनजर आगामी राज्य चुनाव में किसी भी प्रकार की राजनीतिक क्षति न हो, इसके लिये सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध बड़ी धरपकड़ की योजना बनाई जा रही है !
मेरी राय में यह लोकतंत्र में विचारों के अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार की हत्या है ! खैर जब सरकार अपनी कार्यवाही आरंभ करेगी तो इस पर विस्तृत निर्णय न्यायालय देगी ! लेकिन विधि के अध्ययन के कारण मैं ऐसा समझ पा रहा यदि किसी राजनीतिक दल के राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति में किसी व्यक्ति के विचार बाधक हैं, तो कोई राजनीतिक डाल मात्र अपने राजनीतिक लाभ के लिये भारत के आम आवाम के विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है !
विचारों की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने के लिये विचारदाता के ऊपर एफ आई आर दर्ज करना, पुलिस द्वारा उसके विरुद्ध सख्त कार्यवाही करना और न्यायालय की लंबी प्रक्रिया के दौरान उस विचारक व्यक्ति को अनावश्यक रूप से मानसिक, आर्थिक और शारीरिक तीनों तरह की प्रताड़ना देना ! यह भारतीय संविधान की मूल भावनाओं के पूरी तरह विपरीत है !
क्योंकि किसी भी व्यक्ति या राजनीतिक दल की कार्य पद्धति को लेकर भारत के प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह अपने बुद्धि, विवेक और अध्ययन के आधार पर अपने विचार समाज में प्रस्तुत करे !
किंतु इसमें दो शर्त है पहला यह कि उसके विचार राष्ट्र में गृह कलह पहुंचाने वाले नहीं होने चाहिए और दूसरा विचारों का आधार झूठ पर नहीं टीका होना चाहिए यदि इन दोनों मर्यादाओं का पालन करते हुए कोई विचारशील व्यक्ति समाज को अपने विचार देता है और उसके विरुद्ध कोई विधिक कार्यवाही की जाती है तो यह स्पष्ट रूप से भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार का हनन होगा !
और इस हनन से राजनीतिक लाभ कम बल्कि राजनीतिक नुकसान अधिक होगा ! क्योंकि इससे जनता में आक्रोश बढ़ेगा और यह आक्रोश सत्ताधारी राजनीतिक दल को नुकसान पहुंचा सकता है ! जैसे श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करने पर उनको इसकी एक बड़ी राजनीतिक क्षति उठानी पड़ी थी !
देखिये अब आगे भारत में वैचारिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का क्या होगा यह भविष्य ही बतलायेगा !!