यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि पंचतत्व का प्रगट स्वरूप ही प्रकृति है !
अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये कि प्रकृति में जो भी प्रगट स्वरूप इंद्रियों से अनुभूत हो रहा है ! वह सब पंच तत्वों से ही निर्मित है !
लेकिन इन पंच तत्वों से निर्मित प्रकृति में समानता नहीं है ! अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि जिस तरह मनुष्य जैसे दिखने वाले सभी व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होते हैं ! ठीक उसी तरह एक जैसे दिखने वाले पशु-पक्षी, जीव-जंतु, वनस्पति आदि सब कुछ एक-दूसरे से भिन्न हैं !
इस भिन्नता का कारण क्या है ? स्पष्ट है कि इस भिन्नता का कारण पंच तत्वों से अलग एक छठी ऊर्जा है ! जिसे हम तरंग कहते हैं !
अर्थात तरंग की भिन्नता के कारण सभी पशु-पक्षी, जीव-जंतु, वनस्पति आदि अपने-अपने विशेष नस्ल के होने के बाद भी अलग-अलग तरह से अपने को प्रकट करते हैं ! जो विभिन्न प्रगटीकरण उनके व्यक्तिगत अलग अलग परिचय की सूचक है !
इन्हीं तरंगों की भिन्नता के कारण व्यक्ति के स्वभाव, संस्कार, व्यवहार, चिंतन और कार्यशैली आदि सभी कुछ अलग अलग हो जाती है ! जिसे मनोवैज्ञानिक परिवेश का असर बतलाते हैं !
लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है ! एक ही जैसे परिवेश में रहने पर एक ही परिवार के दो अलग-अलग बच्चे दो अलग-अलग प्रवृति के हो जाते हैं ! इसका मतलब परिवेश के अतिरिक्त भी मनुष्य के संस्कार प्राकृतिक तरंगों से मिल कर उस व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं !
अर्थात परिवेश और संस्कार के अतिरिक्त प्राकृतिक तरंगे भी मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं ! जो करोड़ों प्रकार की होती हैं ! इसी से करोड़ों तरह के व्यक्तित्व का निर्माण होता है !
इनमें कुछ हमारी सहायक होती हैं और कुछ हमारी विरोधी होती है ! जब सहायक तरंगों का समर्थन होता है तो हमारा अच्छा वक्त होता है और जब हमारी विरोधी तरंगों का दौर होता है तब हमारा बुरा समय होता है !
जब हम प्रकृति के सानिध्य में होते हैं तो हमें क्षति पहुंचाने वाली बुरी तरंगें प्रकृति में उपलब्ध वनस्पति पंचतत्व आदि हम से अवशोषित कर लेती हैं ! जिससे हमारी जीवनी ऊर्जा का बहुत तेजी से विकास होता है और हम अवसाद जैसे मनोरोगों से ही नहीं गंभीर बिमारियों से भी मुक्त हो जाते हैं !
इसीलिए मनुष्य को अपने व्यस्ततम जीवन से समय निकालकर वर्ष में दो बार कम से कम हफ्ते भर के लिए प्रकृति के सानिध्य में किसी पर्वतीय क्षेत्र पर या जंगल में अवश्य जीवन जीना चाहिए !
इससे मनुष्य में नकारात्मक ऊर्जायें समाप्त हो जाती हैं और व्यक्ति नई चेतना ऊर्जा के साथ अपने को ताजगी से भरा हुआ महसूस करता है ! इसीलिए साधक कहते हैं कि प्रकृति के पास हमारी हर समस्या का समाधान है !!
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