ध्यान कोई जबरदस्ती लगाने की चीज बिल्कुल भी नही है ! आप जान बुझ कर जोर जबरदस्ती से ध्यान बिल्कुल भी नही लगा सकते हैं बल्कि व्यक्ति के एक विशेष मानसिक स्थिती में आने पर यह ध्यान तो एकाएक स्वत: लग जाता है !
ध्यान मन की एक अवस्था है, जो विचारों के गति प्रवाह के कम होने पर स्वत: प्राप्त होता है ! सीधे भृकुटी मध्य में याने आज्ञा चक्र पर ध्यान केंद्रीत करना तो बस सिर्फ एक पागलपन है ! ऐसा करने की सलाह कोई अनाड़ी ही दे सकता है ! यह प्रक्रिया आपके मस्तिष्क मे बहुत सारी समस्यायें पैदा कर सकता है ! आपको विक्षिप्त भी बना सकता है !
मात्र भृकुटी मध्य मे कुछ समय ध्यान करने से कोई ईश्वर कृपा प्राप्त नहीं होती है, और न ही आप अपने आप में केंद्रीत हो सकते हैं ! यह सब ध्यान की दुकानदारी चलाने वालों के चोंचले हैं !
ध्यान विशुद्ध रूप से मानसिक उथल-पुथल को शांत करने के बाद प्राप्त होने की एक स्वाभाविक अवस्था है ! जैसे व्यक्ति को स्वाद अनुसार भोजन प्राप्त करने के बाद स्वत: संतुष्टि प्राप्त होती है ! इसके लिए कोई अतिरिक्त प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होती है !
ध्यान करने की पहली शर्त है कि अपने आप को संसार से समेट कर अपने आप में स्थित कर लेना, क्योंकि संसार ही मस्तिष्क के विचारों के गति का आधार है और जब व्यक्ति संसार से अपने आप को समेट लेता है तो मस्तिष्क के विचारहीन होते ही व्यक्ति स्वत: ध्यान को प्राप्त हो जाता है !
क्योंकि ध्यान मनुष्य की स्वाभाविक अवस्था है ! मस्तिष्क के गतिशील विचार इसमें अवरोध उत्पन्न करते हैं ! अतः यदि आप सफलतापूर्वक ध्यान करना चाहते हैं तो मात्र आपको मस्तिष्क को विचारों से मुक्त होना होगा !
इसके लिए नेति नेति का सिद्धांत ही सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत है अर्थात हर वह चीज जो आपके मस्तिष्क के विचारों को गतिशील करती हो, उसको अस्वीकार करते जाइये और सब कुछ प्रकृति की व्यवस्था पर छोड़ दीजिये ! आप स्वत: ध्यान को प्राप्त हो जाएंगे !
यही ध्यान का सबसे मूल सिद्धांत है ! शेष सभी प्रयास हठयोग पर आधारित हैं ! हठयोग से प्राप्त ध्यान सदैव मनुष्य को बड़ी समस्या में डालते हैं और इससे प्राप्त कुछ भी नहीं होता है !!