कल रात्रि में मेरे एक शिष्य का फोन आया और वह अनुरोध करने लगा कि गुरु जी कोरोना वायरस के कारण पूरे विश्व में जो महामारी का प्रकोप है ! उसकी शान्ति के लिये मैं अक्षय तृतीया से समस्त प्राणी के रक्षार्थ एक बृहद अनुष्ठान हिमाचल में करने जा रहा हूं ! आप आशीर्वाद दीजिये कि मेरा अनुष्ठान सफल हो !
मैंने उसे अनुष्ठान आरंभ करने के पहले कुछ बिंदुओं पर विचार करने के लिये कहा ! जिसे मैं इस लेख में आपके समक्ष रख रहा हूं ! मैंने उससे कहा कि प्रकृति अपने कुछ निश्चित सिद्धांतों से चलती है ! जिसे कार्य कारण की व्यवस्था कहते हैं ! इस व्यवस्था के अंतर्गत जो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है ! उसे अगले जन्मों में सुख की प्राप्ति होती है और जो व्यक्ति बुरे कर्म करता है उसे अगले जन्मों में दुख की प्राप्ति होती है ! यह कर्म बंधन का सिद्धांत प्रकृति का बेसिक सिद्धांत है ! जिससे ईश्वर भी मुक्त नहीं है !
आज जो पूरी पृथ्वी पर कोरोना वायरस महामारी के रूप में अपना प्रभाव दिखा रहा है ! निसंदेह हो सकता है कि यह मानव निर्मित एक महा विनाशकारी षड्यंत्र हो लेकिन इस षड्यंत्र के कारण जो व्यक्ति इसकी चपेट में आकर दंडित हो रहे हैं ! वह ईश्वर के दंड देने के विधान का अंग है ! प्रशासन और चिकित्सक अपना कार्य कर रहे हैं ! जिसके प्रारब्ध में जितना कष्ट होगा ! वह उतना ही कष्ट भोगेगा !
ऐसी स्थिति में यदि कोई है तंत्र या ईश्वरी अनुष्ठान का जानकार हो तो उसे अनावश्यक बस सिर्फ करुणा या दया के आधार पर प्रकृति की व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये ! क्योंकि सृष्टि के संचालन के लिये एवं प्राणी को दीक्षित करने के लिये प्रकृति की यही व्यवस्था है !
कल्पना कीजिये कि किसी व्यक्ति ने किसी को भूख से मार डाला हो और यदि राजा उस अपराधी व्यक्ति को 10 दिन तक भोजन न देने का दंड देता है ! आप चुपचाप चोरी से उस अपराधी व्यक्ति को भोजन उपलब्ध करवाते हैं तो क्या यह राजा के अनुशासन व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं है और यदि राजा के संज्ञान में यह विषय आयेगा तो क्या वह राजा आपको भी दंडित नहीं करेगा !
ठीक इसी तरह हर व्यक्ति इस पृथ्वी पर अपने अपने पूर्व के किये हुये कर्मों का दंड या पुरस्कार भोग रहा है ! ऐसी स्थिति में अनावश्यक ईश्वर की व्यवस्था में हस्तक्षेप करना मेरी निगाह से उचित नहीं है !
अगर ईश्वर द्वारा दंड देने की यह व्यवस्था ठीक न होती तो इस पृथ्वी पर अभी तक 14 विश्वयुद्ध न हुये होते ! राम को रावण को न मारना पड़ता और कृष्ण को महाभारत न करवानी पड़ती ! इसका मतलब जो साक्षात भगवान के अवतार हैं ! वह भी प्रकृति की सामान्य व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं करते हैं ! तो हमारे आप जैसे सामान्य मनुष्य को यह अधिकार किसने दिया है कि वह प्रकृति की सामान्य व्यवस्था में हस्तक्षेप करे !
हां अगर कोई व्यक्ति प्रायश्चित करके आपके समक्ष आता है और वह अपने पापों से मुक्ति चाहता है ! तब आपका यह कर्तव्य अवश्य हो जाता है कि आप उसे पूजा, अनुष्ठान, रत्न, रुद्राक्ष आदि का मार्ग बतलाये लेकिन बिना प्रायश्चित के यदि कोई व्यक्ति अपने दैनिक संस्कारों में उलझा हुआ है ! तो उस स्थिति में अनावश्यक रूप से आप उसके कष्ट को कम करने के लिये यदि कोई विधान करते हैं ! तो मेरी समझ में यह सीधे सीधे प्रकृति की व्यवस्था में हस्तक्षेप है ! जिसकी आज्ञा शास्त्र नहीं देते हैं !!