मैं आन्दोलनकारी कैसे बना ! मैं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से कैसे मिला ! : Yogesh Mishra

मैं आन्दोलनकारी कैसे बना !

मैं नेताजी से कैसे मिला !

मुझे खूब अच्छी तरह याद है कि जब मैं छोटा ही था और इलाहाबाद में पत्थर गिरजाघर के निकट रज्जू भैया के भवन में स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ता था ! तब मेरे पिता इलाहाबाद हाईकोर्ट के इनकम टैक्स के एक बहुत ही नामचीन सरकारी अधिवक्ता हुआ करते थे !

उस समय इंदिरा गांधी के चुनाव का मुकदमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहा था ! हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा के यहां मेरे पिताजी मिलने गये थे ! साथ में मैं भी गया था ! तब उन्होंने मेरे पिताजी से बहुत से विषयों के साथ एक विशेष चर्चा की ! उन्होंने पिताजी से कहा कि “डॉक्टर, क्योंकि मेरे पिताजी इनकम टैक्स में ही पी.एच.डी. थे इसलिये उन्हें बहुत से सम्मानित न्यायमूर्ति गण “डॉक्टर मिश्रा” कहकर भी संबोधित किया करते थे ! उन्होंने मेरे पिताजी को एक पत्र दिखाते हुये कहा कि “डॉक्टर, मेरे निर्णय देने के पूर्व एक व्यक्ति आया था ! और वह हाथ से लिखा हुआ यह एक लाइन का पत्र दे गया था ! जिसमें लिखा था अगर हो सके तो गांधी परिवार को माफ कर दीजिये- सुभाष ! तब मैं कुछ समझ नहीं पाया और उस पत्र को पढ़ने के बाद जब मैंने चपरासी से उस व्यक्ति को अंदर बुलवाना चाहा तब तक वह जा चुका था ! मैंने कई नेताजी सुभाष चंद्र बोस के हस्तलिखित दस्तावेजों से जब मिलान किया तो पाया कि यह हैंडराइटिंग नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ही है लेकिन इस बात की चर्चा मैं कुछ अपने विश्वसनीय लोगों से ही कर सकता हूं !

और इसके बाद विषय यही पूरा हो गया ! अन्य विषयों पर चर्चा होने लगी ! यह मेरे जीवन का पहला वास्ता था जब मैंने किसी संवैधानिक पद पर बैठे हुये व्यक्ति से पहली बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जिंदा होने की बात सुनी थी ! क्योंकि मुझे बचपन से ही मुझे सरस्वती शिशु मंदिर में यह पढ़ाया जाता था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु एक विमान दुर्घटना में हो गई थी !

वक्त बिता गया धीरे-धीरे मेरी शिक्षा पूरी हुई और जब मैं विधि की पढाई कर रहा था ! तब तक मेरे पिताजी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हाईकोर्ट के जज हो गये थे ! उसी दौरान डॉक्टर राम गोपाल पाडिया जो कि एल.एल.डी इन कॉन्स्टिट्यूशन थे और हमारे यहां विश्वविद्यालय में कॉन्स्टिट्यूशन पढ़ाया करते थे और साथ ही हाईकोर्ट में भी एक प्रतिष्ठित अधिवक्ता थे ! पिताजी क्योंकि हाईकोर्ट जज थे अतः उनका मेरे घर पर आना जाना बना रहता था !

भारत के संवैधानिक व्यवस्था पर प्राय: मेरी उनके साथ चर्चा हुआ करती थी ! तब जब मैंने उनसे भारत की संप्रभुता को समझना चाहा तो उन्होंने एक लाइन में मेरे अंदर बहुत सा अध्ययन करने के लिये उत्साह भर दिया ! उन्होंने मुझसे कहा कि संविधान की किताब में लिखी हुई “संप्रभुता” और भारत की व्यवहारिक संप्रभुता में बहुत अंतर है ! यह बहुत ही गहरे अध्ययन का विषय है ! इसको किसी भी वक्तव्य से नहीं समझाया जा सकता है !

मैं तब तक परिपक्व हो चुका था ! मेरे अंदर वैचारिक मंथन शुरू हो गया और मैंने निर्णय लिया कि मैं इस विषय पर गहन अध्ययन करूंगा ! मैंने संविधान और संवैधानिक इतिहास पर सैकड़ों किताबें खरीद कर पढ़ना शुरू कर दिया ! जिसमें “ट्रांसफर ऑफ़ पॉवर” “इंडियन कांस्टीट्यूशनल डिबेट” आदि सभी कुछ शामिल था !

मेरा सौभाग्य था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपने मामा के पहले मुकदमे में ही एक मुंसिफ मजिस्ट्रेट के विरुद्ध वारंट जारी करवा देने के कारण मुझे बहुत ही अल्प समय में बहुत बड़ा यश प्राप्त हुआ था ! जिससे बहुत दूर-दूर से मुकदमे मुझे मिलने लगे थे ! हम लोग वैसे भी मूलतः बुंदेलखंड के रहने वाले हैं ! मेरी मौसी का विवाह झांसी के क्रांतिकारी परिवार मंगली प्रसाद रिछारिया के बेटे से हुआ था ! यह मंगली प्रसाद रिछारिया वही क्रांतिकारी थे जो चंद्रशेखर आजाद के झांसी निकट ओरछा के जंगलों में रहने के दौरान उनके भोजन और निवास की व्यवस्था किया करते थे ! मैं जब अपने मौसा जी के पिता मंगली प्रसाद रिछारिया के पास झांसी जाया करता था तब उनके साथ प्राय: उनके जीवन की घटनाओं को लेकर संवाद किया करता था !

उन्होंने ही मुझे बताया कि “भारत आजाद नहीं हुआ है ! उस समय सत्ता के लालच में जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल जैसे लोगों ने अंग्रेजों के साथ समझौता करके इसे प्राप्त कर लिया था और भारत की आजादी के लिये जो लड़ाई लड़ी जा रही थी, वह अधूरी ही छूट गई ! 15 अगस्त 1947 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू ने जो शपथ ली थी वह एक गुप्त समझौते के तहत ब्रिटिश शासन के भारतीय मूल के प्रधानमंत्री के रूप में ली थी ! वास्तव में देश 15 अगस्त 1947 को आजाद नहीं हुआ था !” किंतु इन सब बातों का कहीं कोई सिर पैर पकड़ में नहीं आ रहा था पर मन के किसी कोने में प्राय: यह विचार जरुर चला करता था कि इस विषय की जांच अवश्य होनी चाहिये !

इसी दौरान मेरे एक दूसरे रिश्तेदार जो झांसी में ही अधिवक्ता थे श्री प्रकाश दुवेदी वह मिलिट्री के एक अधिकारी को लेकर हमारे यहां आये ! उनका नाम था मेजर वी.पी. सिंह ! उनके हाईकोर्ट में कई मुकदमे चल रहे थे जो मुकदमे बाद में उन्होंने मुझे दे दिये थे और इस संदर्भ में मेजर वी.पी. सिंह से मेरी धीरे-धीरे मित्रता हो गई और बहुत से गोपनीय रहस्य मुझे मेजर वी.पी. सिंह से प्राप्त हुये !

विभिन्न वार्ता क्रम के दौरान एक बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस की चर्चा में जब वी.पी. सिंह से होने लगी, तब उन्होंने मुझे बताया कि अयोध्या के डॉ. आर.पी. मिश्रा “राम भवन” में “गुमनामी बाबा” के नाम से जो व्यक्ति रहा करते थे ! वही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे ! जिनकी 1984 में मृत्यु हुई और एक पत्रकार द्वारा इसका खुलासा किया गया ! तब मै उनके साथ उस पत्रकार से मिलने अयोध्या गया ! तब मुझे पता चला कि उसी पत्रकार के खुलासा करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने वह सारे दस्तावेज जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कमरे में बरामद हुये थे उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपनी कस्टडी में लेकर सुरक्षित रखवा दिया है और इसके आगे यह भी बताया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने तिब्बत के अंदर रहकर वहां के बौद्ध मठों में परकाया प्रवेश की योगिक क्रिया सीख ली थी और वह आज भी परकाया प्रवेश के कारण हम लोगों के बीच में उपस्थित हैं ! जिनसे आप बाराबंकी के मुज्हेहना जा कर मिल सकते हैं !

स्वाभाविक था कि मैंने मेजर वी.पी. सिंह ऐसे दिव्य व्यक्ति से मिलने की इच्छा प्रगट की ! तब वह मुझे लेकर लखनऊ के डी.ए.वी. इंटर कॉलेज के पीछे रहने वाले अपने साथी विश्व बंधु तिवारी के पास लखनऊ ले आये और मेरा उनसे परिचय करवाया ! मैंने भी विश्व बंधु तिवारी जी से नेता जी से मिलने की इच्छा प्रकट की ! तो विश्व बंधु तिवारी जी ने मुझे आश्वस्त किया कि वह मुझे नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मिलवायेंगे लेकिन इसके लिये यदि मैं उनसे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रूप में मिलना चाहता हूं तो अग्रिम आज्ञा लेनी पड़ेगी और यदि एक संत के रूप में दर्शन करना चाहता हूं तो कभी भी बाराबंकी के थानगांव क्षेत्र में मुज्हेहना नामक स्थान पर जाकर दर्शन कर सकता हूं !

मैंने उनसे नेताजी के रूप में ही मिलने का निर्णय लिया और मैं वापस चला आया ! लगभग एक डेढ़ महीने की अवधि के बाद अचानक एक दिन मेजर वी.पी. सिंह मेरे इलाहाबाद स्थित आवास पर आये और उन्होंने मुझे सूचित किया कि आपके मिलने का कार्यक्रम सुनिश्चित हो गया है ! मैंने तत्काल ही उसी दिन मेजर वीपी सिंह के साथ प्रस्थान किया और रात्रि तक लखनऊ विश्व बंधु तिवारी के आवास पर पहुंच गया !

अगले दिन प्रातः ही एक मोटरसाइकिल का इंतजाम किया गया और मेजर वी.पी. सिंह मुझे उस मोटरसाइकिल से लेकर बाराबंकी जिले के मुज्हेहना की तरफ चल पड़े ! जिसकी दूरी विश्व बंधु तिवारी के आवास से लगभग 120 किलोमीटर थी ! रास्ते में भयंकर पानी बरस रहा था ! कच्चा मार्ग होने के कारण कई जगह मेरी मोटरसाइकिल पानी भरे गड्ढे में गिरकर फिसल जाया करती थी ! मेजर साहब और हम मिलकर उस मोटरसाइकिल को निकालकर आगे बड जाया करते थे !

उसी दिन शाम को लगभग 3:00 बजे मुज्हेहना आश्रम के 10-12 किलोमीटर की दूरी पर एक जामुन के पेड़ के नीचे जब मोटरसाइकिल बुरी तरह गड्ढे के अंदर फंस गई तब हम दोनों सुस्ताने के लिये जामुन के पेड़ के नीचे खड़े हो गये ! पेड़ से बरसात और हवा के प्रभाव से जामुन टूट कर सीधे नीचे कीचड़ के अंदर गिर जा रहा था ! मैंने मेजर साहब से कहा अगर पानी न बरस रहा होता तो स्वाभाविक रूप से टूट कर गिरे हुये जामुन खाने में कितना आनंद आता ! तब मेजर साहब ने मुझसे टोकते हुये कहा कि वकील साहब आप इस तरह की कामना मत कीजिये क्योंकि आपके कामना मात्र से ही स्वामी जी को सूचनायें मिल जाती हैं ! यह मेरा निजी अनुभव है और यदि कोई बहुत सी कामनाओं के साथ स्वामी जी से मिलेता है तो वह व्यक्ति उसी में उलझ कर रह जाता है और स्वामी जी का सत्य स्वरूप आपके सामने प्रगट नहीं होता है !

मैंने मन ही मन क्षमा मांगी और थोड़ी देर बाद मोटरसाइकिल फिर गड्ढे से निकालकर स्टार्ट की और हम लोग अपनी यात्रा में आगे बढ़ गये ! आधे घंटे बाद हम लोग मुज्हेहना आश्रम पहुंच गये ! वहां का दृश्य बहुत ही सामान्य था एक टटर का बना हुआ बिना छत का ही बाड़ा था ! जिसमें एक तख़्त पड़ा हुआ था ! उस टटर के ठीक बाहर एक व्यक्ति लकड़ी की पुरानी सी कुर्सी लेकर उस पर बैठा हुआ था ! बगल में एक छोटा सा कमरा था जिसे भंडार गृह कहा जाता था ! उसके बगल में कुछ गाय पली हुई थी और दूसरी तरफ बीच में एक मैदान था ! मैदान के दूसरी तरफ एक छोटा सा कमरा था ! जिसके बगल से सीढ़ी ऊपर जाती थी !

मैं जब वहां पहुंचा तब तक पानी बरसना रुक चुका था ! स्वामी जी तख़्त पर बैठे हुये थे ! वह मौन व्रत किये हुये थे ! लोग बताते हैं कि जब से वह मुज्हेहना पहुंचे थे ! तब से ही वह मौन में हैं ! उन्होंने कभी एक भी शब्द किसी से नहीं बोला ! उनके द्वारा प्रशिक्षित किया गया एक व्यक्ति अनुवादक के रूप में सदैव उनके साथ में रहता था ! स्वामी जी जो भी कुछ कहना चाहते थे, अभिव्यक्ति के माध्यम से कहते थे और वह व्यक्ति उसको शब्दों में बदल कर बतला देता था !

मैं जब वहां पहुंचा तो मेरे अंतर्मन में प्रेरणा हुई तो मैंने उनको प्रणाम करने की जगह एक सैनिक के रूप में सलूट किया ! स्वामी जी तत्काल तख़्त से खड़े हुये उन्होंने मेरे सलूट का जवाब सलूट से दिया ! वहां सभी लोग स्तब्ध रह गये क्योंकि ऐसा उस मुज्हेहना आश्रम में पूर्व में कभी नहीं हुआ था कि किसी एकदम अनजान व्यक्ति को स्वामी जी ने सलूट का जवाब सलूट से दिया हो !

स्वामी जी ने इशारे में यह निर्देश दिया कि लंबी यात्रा करके आये हो विश्राम करो और अपने सेवक से कहा कि इनके आराम का इंतजाम किया जाये मैदान के दूसरी तरफ जो एक कमरा था उस कमरे की छत पर पुआल डाल दिया गया ! उस पर एक पतली सी दरी डाल दी गई और एक चद्दर दे दिया गया ! पुआल से बना हुआ तकिया सिरहाने लगाने को दे दिया गया ! अभी लेट कर कमर सीधी ही कर रहा था कि अचानक एक बहुत बड़ी डलिया में लगभग दो-तीन किलो जामुन देकर एक व्यक्ति आया और उसने कहा कि “स्वामी जी ने आपको खाने के लिये जामुन भेजा है !” मेजर साहब ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दिये ! मैं स्तब्ध रह गया ! जामुन खाया लेकिन 8-10 जामुन खाने के बाद ही जामुन खाने की इच्छा खत्म हो गई ! अब मेरा वैचारिक चिंतन प्रारंभ हुआ ! करीब घंटे भर तक मैं मौन हो गया !

करीब घंटे भर बाद एक सेवक आया उसने कहा कि आपका भोजन बन गया है चलकर भोजन कर लीजिये ! हम लोग उतरे और बगल के भंडार गृह में जाकर भोजन करने लगे ! वहां पर एक बूढ़ी मां थी जो आश्रम के सभी सेवकों का और स्वामी जी का भोजन बनाया करती थी ! उन्होंने मेरी तरफ बहुत ही रहस्यमय मुस्कन से मुस्कुराया और मेरे रोटियों में देसी घी ज्यादा मात्रा में लगाने लगी ! सामान्यतया वहां पर भोजन में किसी को रोटी में देसी घी लगाकर नहीं दिया जाता था ! लेकिन मैं बचपन से देसी घी लगी हुई रोटी खाने का शौकीन रहा हूं ! यह बात तो मेजर साहब को भी पता नहीं थी ! लेकिन स्वामी जी के निर्देश पर जब मेरी रोटियों में देसी घी लगाया गया ! तब मुझे बहुत आश्चर्य हुआ ! मैंने भोजन किया और वापस अपनी जगह आकर लेट गया ! अब मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि यह नेताजी सुभाष चंद्र बोस हो या ना हो लेकिन एक दिव्य संत जरूर हैं !

मैंने मेजर साहब से कहा कि इतने बड़े दिव्य संत के आश्रम में रहकर संत की कुटिया से इतनी दूर सोने का अवसर मिल रहा है ! मेरे जरूर पूर्व के कुछ पाप होंगे वरना ऐसे संत के निकट यदि सोने का अवसर मिलता तो कुछ आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती ! बस कुछ ही देर में एक सेवक आया और उसने कहा कि स्वामी जी ने आप दोनों के नीचे सोने की व्यवस्था करने के लिये कहा है और यह मेरा सौभाग्य था कि जिस बांस के बने टटर और कुटिया में स्वामी जी रहते थे ! उसी के ठीक बगल में टटर के बाहर ही हमारे लेटने की व्यवस्था की गई ! सब कुछ अचानक और आश्चर्यचकित तरीके से हो रहा था ! मेरे पास कोई शब्द नहीं थे और मुझे बराबर यह आभास हो रहा था कि मुझे गहरे मौन में चला जाना चाहिये !

अगले दिन मैने स्वामी जी को प्रणाम किया और मैं मेजर साहब के साथ मोटरसाइकिल से वापस विश्व बंधु तिवारी के आवास पर लखनऊ आ गया ! अब मेरे पास बोलने के लिये कोई शब्द नहीं थे लेकिन अधिवक्ता की बुद्धि निरंतर कार्य कर रही थी ! मैं यह तो जान चुका था कि वह एक दिव्य संत हैं लेकिन वह ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं यह मानने के लिये अभी भी मेरी बुद्धि स्वीकार नहीं कर रही थी !

अत: मैंने सत्यता को जानने का निर्णय लिया और आजाद हिंद फौज के पूर्व कर्नल ए.बी. सिंह जो कि बरेली में निवास करते थे ! मैं लखनऊ से सीधा उनके पास बरेली गया और मैंने पूरी बात कर्नल ए.बी. सिंह को बतलायी ! कर्नल ए.बी. सिंह मेरी बात सुनकर बहुत जोर से ठहाका मारकर हंसने लगे लेकिन मेरे बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने मेरे साथ चलने का निर्णय लिया और एंबेस्डर गाड़ी से कर्नल एबी सिंह को बरेली से लेकर मैं पुनः मुज्हेहना आश्रम पहुंचा !

जब मैं आश्रम पहुंचा तो पूरे आश्रम को बहुत ही बेहतरीन तरीके से साफ किया जा रहा था ! जगह-जगह चूना डाला जा रहा था ! मुझे लगा कि कोई वी.आई.पी. आज आश्रम आने वाला होगा ! गाड़ी खड़ी की क्योंकि कुछ ही दिन पहले मैं आश्रम से होकर गया था, इसलिये आश्रम के लगभग सभी लोग परिचित हो गये थे ! मैंने गाड़ी से उतरकर एक सेवक से पूछा कि क्या कोई वी.आई.पी. आ रहा है ! उसने कहा कि स्वामी जी ने सुबह-सुबह कहा है कि आज उनका कोई बहुत पुराने साथी उनसे मिलने आ रहे है ! इसी लिये आश्रम में साफ-सफाई का कार्यक्रम चल रहा है !

मैंने स्वामी टटर में बैठे हुये स्वामी जी को प्रणाम किया ! तब तक ड्राइविंग सीट के बगल में दूसरी तरफ बैठे हुये कर्नल ए.बी. सिंह उतर आये ! उन्होंने जैसे ही स्वामी जी की तरफ निगाह डाली ! स्वामी जी ने तुरंत अपने तख़्त से खड़े होकर उनको आजाद हिंद फौज का सुलूट किया ! इस कृत्य को देखते ही कर्नल ए.बी. सिंह वहीं जमीन में बैठकर रोने लगे ! उनके मुंह से एक ही वाक्य निकला कि “कभी इस रूप में भी आप के दर्शन होंगे, ऐसा मैंने सोचा नहीं था !” और वह वहीँ पर जमीन में बैठ गये !

भावुकता के कारण स्वामी जी के निर्देश पर दो-तीन सेवक भागते हुये आये ! आओ उन्होंने कर्नल ए.बी. सिंह को पकड़ कर खड़ा किया ! उनकी मिट्टी झाड़ी और उन्हें स्वामी जी के टटर के निकट ले गये ! जिस कुर्सी पर स्वामी जी का अनुवादक बैठता था ! उस कुर्सी पर कर्नल एबी सिंह को बिठा दिया गया ! कर्नल ए.बी. सिंह स्वामी जी को बस सिर्फ देख रहे थे और रो रहे थे ! दोनों के मध्य कोई भी शब्द संवाद नहीं था !

थोड़ी देर बाद स्वामी जी ने इशारे से उनका हालचाल पूछा फिर अपने पुराने साथी लक्ष्मी सहगल व अन्य बहुत से लोगों के विषय में इशारे से पूछताछ की ! उसमें जितना उनका अनुवादक समझ पा रहा था ! वह स्वामी जी के इशारों को शब्द में बदलता जा रहा था ! कर्नल साहब भाव विभोर होकर सभी प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे और बेतहाशा रो रहे थे !

अब इस पूरे दृश्य को देखने के बाद मेरे पास आश्चर्य के साथ रोने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था ! मेरी सारी बौद्धिक भागदौड़ स्तब्ध हो गई थी और मैं कुछ भी कह सकने की स्थिति में नहीं था ! थोड़ी देर की आपसी चर्चा के बाद जब स्वामी जी ने मेरी तरफ निगाह डाली ! तब मैंने आग्रह किया स्वामी जी जब आजाद हिंद सरकार को विश्व के अनेकों देशों ने जो मान्यता दी थी, जो आज तक वापस नहीं ली गई है तो उसका एक कार्यालय यहां पर भी खुलना चाहिये ! उस पर स्वामी जी ने इशारे से कहा कि इसके लिये स्वतंत्र भारत की मिट्टी मोइरंग से लानी पड़ेगी ! अत: तत्काल ही निर्णय लिया गया कि कर्नल एबी सिंह जो कि आजाद हिंद फौज के पूर्व कर्नल थे और मैं स्वामी जी के निर्देशित पर मोइरंग जाऊं और वहां से आजाद हिंद सरकार के कार्यालय के प्रांगण की मिट्टी लेकर आऊँ ! क्योंकि कर्नल ए.बी. सिंह के पास स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के कारण रेलवे का पास था ! अतः बहुत जल्दी ही विश्व बंधु तिवारी आदि के सहयोग से हम लोग मोइरंग से आजाद भारत की मिट्टी लेने के लिये रवाना हो गये !

क्योंकि मैं अचानक ही लखनऊ से आया था अतः जो पैसे लाया था ! वह खर्च हो चुके थे तब विश्व बंधु तिवारी और कर्नल ए.बी. सिंह ने पैसे की व्यवस्था की ! हम लोगों ने एक लंबी यात्रा कर कर आजाद भारत की मिट्टी एक कलश में लेकर स्वामी जी के पास आये तब स्वामी जी ने उस कलश को दोनों हाथों से स्पर्श किया ! संभावित रूप से अपने आध्यात्मिक ऊर्जा का उसमें प्रवेश किया होगा और कहा कि इसको सुरक्षित रख लो ! बहुत जल्दी ही इसकी जरूरत पड़ेगी ! बात आई गई खत्म हो गई !

इसी बीच में कुछ और लोगों ने मुज्हेहना के स्वामी जी से आशीर्वाद प्राप्त कर सुभाष सेना बनाई और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम लेकर उन्हें मुज्हेहना आश्रम के स्वामी जी को ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस बतला कर बहुत एक राजनीतिक दल का भी निर्माण कर लिया फिर बड़ी मात्रा में धन संग्रह करना शुरू कर दिया ! जिससे स्वामी जी काफी क्षुब्ध थे और उन्होंने बहुत शीघ्र ही मुज्हेहना आश्रम से परकाया प्रवेश विद्या द्वारा प्रस्थान का निर्णय ले लिया !

कुछ समय बाद सीतापुर के स्वामी चैतन्य भारती, मौनी बाबा, पागल बाबा, बाराबंकी के ओमप्रकाश प्रकाश आदि सब को बुला कर उन्होंने कहा कि “मैं आश्रम छोड़कर जा रहा हूं और सही वक्त पर पुनः प्रकट होऊगा ! आप लोग अपना कार्य करते रहिये ! भारत में जब भी क्रांति होगी तब कोई आध्यात्मिक व्यक्ति ही उस क्रांति का नेतृत्व करेगा ! तब मैं पुनः आप सब लोगों को बुलाऊंगा ! फिर मेरी ओर देखते हुये कहा कि तब तक आप लोगों में कुछ लोग शरीर बदल लेंगे ! फिर भी तब तक आपके सामर्थ में जैसा भी है आप लोग अपने अपने स्तर पर अपना अपना कार्य करते रहिये लेकिन यह मेरा वादा है कि हम लोगों की भेंट पुनः जरूर होगी !”

और इसके कुछ ही दिन बाद पता चला कि गोरखपुर के बहुत ही विख्यात चिकित्सक डॉ लोकेश बागची नेता जी से मिलने सपरिवार गये और स्वामी जी ने उनसे कहा कि इस शरीर का कोई निश्चय नहीं है इसलिये मैं चाहता हूं कि मेरी एक संगमरमर की प्रतिमा आप बनाइये ! लोकेश बागची ने स्वामी जी के लिये एक संगमरमर की प्रतिमा बनवा कर आश्रम में स्थापित करवाई और कुछ ही दिन बाद वहां से स्वामी जी के शरीर छोड़ देने की सूचना मिली !

क्योंकि स्वामी जी ने व्यक्तिगत रूप से बुलाकर हम लोगों से कहा था और उसके पूर्व में कई बार उनके शरीर छोड़ने की कई सूचनाएं समाज को मिलती रही हैं इसलिये आज भी यह मेरा दृढ़ मत है कि स्वामी जी निश्चित रूप से परकाया प्रवेश के माध्यम से किसी अन्य शरीर में मौजूद हैं !

विश्व बंधु तिवारी वह व्यक्ति हैं जिनके प्रयास से आज भी लखनऊ के परिवर्तन चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा खड़ी हुई है ! लोकेश बागची आज भी गोरखपुर में चिकित्सक का कार्य कर रहे हैं और स्वामी जी की कृपा से वह एक बहुत बड़े नर्सिंग होम के स्वामी हैं ! स्वामी चैतन्य भारती आज भी नैमिषारण्य के निकट सीतापुर जिले में मिर्जापुर ग्राम में एक आश्रम बनाकर रहते हैं ! सीतापुर रेलवे स्टेशन के ठीक सामने सुभाष वादी मौनी बाबा के रूप में आज भी नेताजी के मूर्ति और चित्र रख कर गहन आध्यात्मिक उपासना में लगे हुये हैं ! ओम प्रकाश जी बाराबंकी में निवास करते हैं ! कर्नल ए.बी. सिंह और विश्व बंधु तिवारी अब हम लोगों के बीच में नहीं हैं ! शायद दूसरे शरीर में स्वामी जी का कार्य कर रहे हैं !

इस उपरोक्त घटना के उपरांत मैंने कुछ साथियों की एक टीम बनाकर आसाम से लेकर पंजाब तक पैदल यात्रा की और लोगों को “भारत की आजादी एक धोखा है !” इस विषय में जागरूक करने के लिये गांव-गांव जाकर बहुत से कार्यक्रम किये ! विभिन्न समाचार पत्रों में मेरे लेख इस विषय पर प्रकाशित होने लगे ! दर्जनों प्रेस कन्सफ्रेंस की !

आज भी सनातन ज्ञान पीठ उसी दिशा में कार्य कर रहा है !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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