जिस तरह मनुष्य अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न तरह के हथियारों का प्रयोग करता है ! ठीक उसी तरह ईश्वर भी हमें प्रशिक्षित करने के लिए वक्त को एक हथियार के रूप में प्रयोग करता है !
ईश्वर के इसी हथियार “वक्त” के इसी गति को प्रारबध्य, भाग्य, पूर्व जन्म के कर्म फल आदि आदि कहा जाता है !
ज्योतिष में कौन सा वक्त किस व्यक्ति के लिए अनुकूल होगा और किस व्यक्ति के लिए विपरीत होगा ! यह ही देखना ज्योतिषी का कार्य है !
ईश्वरीय व्यवस्था में कोई भी ऐसा कर्म नहीं है ! जिसका परिणाम व्यक्ति को न भोगना पड़े फिर वह चाहे अनुकूल हो या विपरीत ! जब हम प्रकृति की व्यवस्था के विपरीत किसी को क्षति करते हैं, तो वास्तव में हम उसे क्षति नहीं करते बल्कि हम प्रकृति से अपने सर्वनाश की कामना कर लेते हैं !
इसीलिए जब किसी व्यक्ति को कोई बड़ी क्षति हो तो उसे यह निश्चित विश्वास कर देना चाहिए कि पूर्व में उसने किसी दूसरे को इतनी ही बड़ी क्षति की है !
और यदि वर्तमान में कोई व्यक्ति आपको क्षति कर रहा है, तो उस से उलझने से बेहतर है कि पूरी ईमानदारी से आत्म रक्षा करते हुए ईश्वरीय व्यवस्था पर विश्वास कीजिए ! निश्चित रूप से जो व्यक्ति आज आपकी क्षति कर रहा है ! वह कल ईश्वरीय प्रकोप से स्वत: नष्ट हो जायेगा !
इस ईश्वर की कार्य कारण व्यवस्था से भगवान भी मुक्त नहीं है ! भगवान श्रीराम ने इंद्र के बहकावे में आकर रावण का समूह वंश नाश किया था ! वही राम जब कृष्ण के रूप में पुनः पृथ्वी पर आये, तो उनकी निगाह के सामने उनके अपने संपूर्ण वंश का समूल नाश हो गया और वह भगवान होकर भी कुछ न कर पाये !
ऐसे एक दो नहीं सैकड़ों उदाहरण पुराणों में दर्ज हैं ! पूरा का पूरा शाप और आशीर्वाद का दर्शन इसी कार्य कारण व्यवस्था के तहत संचालित होता है !
इसलिए बस अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए ईमानदारी से आत्मरक्षा के लिये संघर्ष कीजिए ! शेष सब कुछ उस ईश्वर के हाथ में सौंप दीजिये ! निश्चित रूप से वह आप के विरुद्ध अपराध करने वाले को दंडित करेगा !
क्योंकि ईश्वरीय व्यवस्था में वक्त ईश्वर का वह हथियार है, जिससे वह किसी भी व्यक्ति को पोषित या नष्ट कर सकता है !!