कितने सलीके से हमारी हत्या हो रही है : Yogesh Mishra

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी दिशा निर्देश के तहत हमें जबरजस्ती मास्क पहना दिया गया ! नहीं पहनने पर जुर्माना लगा दिया गया ! घरों से निकलने पर लाकडाउन के नाम पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया ! जो नहीं माने उन्हें लाठियों से पीट पीट कर तोड़ दिया गया ! कुछ पर तो अपराधिक मुकदमे भी लिखा दिये गये ! पर यह सब क्यों ! इस पर कभी भारत के संसद में चर्चा क्यों नहीं हुई ! विशेषज्ञों की राय क्यों नहीं ली गयी !

जब हम निरंतर 1 वर्ष तक मास्क पहनेगे तो हमारे शरीर के अंदर ऑक्सीजन को स्टोर करने की क्षमता स्वत: कम होती चली गई और हमें इसका पता भी नहीं चला !

फिर जब ऑक्सीजन के स्टोर करने की मात्रा हमारे शरीर में कम हो गई तब बाजार में ऑक्सीजन को नापने के लिये करोड़ों की संख्या ऑक्सीमीटर आम समाज को उपलब्ध करवा दिये गये ! जिससे हम अपने शरीर के ऑक्सीजन की मात्रा बिना विशेषज्ञता के स्वयं नाप सकें और भयभीत होकर मानसिक रूप से कमजोर हो जायें !

इसके बाद अरबों रुपए खर्च करके सभी समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ चैनल के माध्यम से हमें यह बतलाया गया कि देश में अब बहुत बड़ी महामारी का प्रकोप शुरू हो गया है और सामान्य सर्दी जुखाम को महामारी घोषित कर दिया गया ! जिसमें व्यक्ति के लंग्स में कफ होने के कारण जब ऑक्सीजन लेवल स्वत: कम हो गया तो उसे डराया गया कि तुम अब अस्पताल चले जाओ नहीं तो मर जाओगे ! इस तरह जो जुकाम ठीक होने के बाद सब ठीक हो जाता है ! उसको एक गंभीर महामारी बतला कर उसके प्रचार प्रसार पर बिना किसी वैज्ञानिक आधार पर अरबों सरकारी कोष से खर्च किये गये जो आम जनता के मेहनत की कमाई थी !

और जब लोगों ने ऑक्सीमीटर लगाकर अपने शरीर के ऑक्सीजन लेवल को चेक किया तो उन्हें किसी ने नहीं बतलाया कि शरीर को वास्तव में अपना दैनिक कार्य करने के लिये कम से कम कितने प्रतिशत ऑक्सीजन की आवश्यकता है ! अज्ञानी समाज ऑक्सीमीटर में गिरती संख्या को देखकर घबरा गया और ऑक्सीजन के सिलेंडर के लिये दौड़ने लगा !

वहां भी काला बाजारी थी ! ऑक्सीजन सिलेंडर में सामान्य ऑक्सीजन देने वाले लुटेरे व्यवसायियों ने जानबूझकर ऑक्सीजन सिलेंडर का रेट बढ़ाने के लिए मार्केट में ऑक्सीजन सिलेंडर की क्राइसिस कर दी और परिणाम यह हुआ कि 500 रुपय की चीज 50,000 में बिकने लगी और जो ले जा रहा है उसे खुद ही नहीं मालूम कि वह क्यों ले जा रहा है और उसकी आवश्यकता वास्तव में है भी या नहीं !

फिर इसके बाद अस्पताल की भूमिका शुरू हुई ! जिसमें अप्रमाणित ऑक्सीमीटर की संख्या के आधार पर लोगों ने अस्पतालों में दाखिला लेना शुरू किया ! वहां पर जो दवाइयों का कॉन्बिनेशन दिया गया ! उसने आम जनमानस के शरीर में प्लाज्मा की कमी करना शुरू किया ! परिणामत: मनुष्य के शरीर के रक्त में क्लाटिंग शुरू हो गयी और व्यक्ति मरने लगा !

यह गलत दवाइयों से उत्पन्न रक्त का थक्का यदि मस्तिष्क के अंदर ऑक्सीजन की सप्लाई को जाम कर देता है तो व्यक्ति को पैरालिसिस हो जाता है ! यदि हृदय के अंदर जाकर हृदय की धमनियों को जाम कर देता है ! तो व्यक्ति की मृत्यु हृदय गति रुकने से हो जाती है ! यदि यह थक्का पैंक्रियास के अंदर जाकर वहां की गतिविधि को प्रभावित कर देता है तो व्यक्ति डायबिटिक हो जाता है और अगर यही थक्का लंग्स में जाकर लंग्स को बंद करने लगता है तो व्यक्ति ऑक्सीजन के अभाव में घुट घुट कर मर जाता है !

ऐसा नहीं है कि यह सब डॉक्टर वैज्ञानिक जानते नहीं हैं ! लेकिन दुर्भाग्य है जो काम डॉक्टर वैज्ञानिक के नियंत्रण में होने चाहिये वह सब काम आज भारत में राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी नियंत्रित कर रहे हैं और व्यक्ति के मर जाने पर व्यक्ति इसे अपना दुर्भाग्य समझ कर चुपचाप बर्दास्त कर ले रहा है लेकिन कोई कुछ भी कह नहीं रहा है ! पर मैं एक इसे एक व्यवस्थित नरसंघार ही कहूंगा जो पूरे देश में बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है और यदि हम इस षड्यंत्र को नहीं समझ पाये तो यह आगे भी होता रहेगा !

इसलिए हमें अपने विश्वसनीय डॉक्टरों, वैज्ञानिकों, चिंतकों, विशेषज्ञों से इस विषय पर विस्तृत विचार विमर्श करना चाहिये और अपने अस्तित्व की रक्षा करनी चाहिये ! क्योंकि जब हम बचेंगे तो हमारा राष्ट्रीय बचेगा और जब हम ही नहीं होंगे तो राष्ट्र भी खत्म हो जायेगा !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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