कहीं भी अप्रत्याशित सफलता का आधार तन्त्र ही है ! : Yogesh Mishra

ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय संस्कृति का विचार करने पर प्रतीत होता है कि प्राचीन काल से ही वैदिक तथा तान्त्रिक साधन धाराओं में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है ! यह बात जैसे सत्य है ! वैसे ही यह भी सत्य है कि दोनों में अंशतः वैलक्षण्य भी हैं !

अति प्राचीन काल से ही शिष्ट जनों द्वारा तन्त्रों के प्रयोग के असंख्य प्रमाण उपलब्ध है ! ऐसी प्रसिद्धि है कि बहुसंख्यक देवी-देवता भी तान्त्रिक साधना के द्वारा सिद्धि-लाभ प्राप्त किया करते थे ! तान्त्रिक साधना का परम आदर्श था शैव साधना ! जिसका लक्ष्य था “शिव उपासना” !

ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, चन्द्र, स्कन्द, वीरभद्र, लक्ष्मीश्वर, महाकाल, काम, मन्मथ, राम, कृष्ण आदि यह सभी तंत्र के उपासक थे ! प्रसिद्ध ऋषियों में भी लगभग सभी कोई-कोई तान्त्रिक मार्ग के उपासक थे ! इसमें कई तो तान्त्रिक उपासना के प्रवर्तक भी रहे हैं !

ब्रह्मयामल में बहुसंख्यक ऋषियों का उल्लेख है ! जो शिव तंत्र ज्ञान के प्रवर्तक थे ! उनमें उशना, बृहस्पति, दधीचि, सनत्कुमार, नमुलीश आदि का मुख्य उल्लेख पाया जाता है ! जयद्रथयामल के मंगलाष्टक प्रकरण में तन्त्र प्रवर्तक बहुत से ऋषियों के नाम हैं, जैसे दुर्वासा, सनक, विष्णु, कस्प्य, संवर्त, विश्वामित्र, गालव, गौतम, याज्ञवल्क्य, शातातप, आपस्तम्ब, कात्यायन, भृगु, आदि गुरु शंकराचार्य, गौतम बुद्ध, महावीर जैन आदि हैं !

महाभारत प्राचीन काल का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है ! इस युद्ध में अनेक शक्तिशाली योद्धाओं ने भी भाग लिया ! जिसमें अर्जुन, द्रोणाचार्य, कर्ण, भीष्म, अश्वत्थामा, घटोत्कच, नकुल, सहदेव, आदि तंत्र साधक थे ! श्रीकृष्ण तो मायावी थे ही !

आधुनिक भक्तिकाल में कबीरदास, संत शिरोमणि रविदास,तुलसीदास, सूरदास, नंददास, कृष्णदास, परमानंद दास, कुंभनदास, चतुर्भुजदास, छीतस्वामी, गोविन्दस्वामी, हितहरिवंश, गदाधर भट्ट, मीराबाई, स्वामी हरिदास, सूरदास मदनमोहन, श्रीभट्ट, व्यास जी, रसखान, ध्रुवदास, चैतन्य महाप्रभु आदि भी तंत्र साधक रहे हैं !

आधुनिक काल में भी तंत्र का राजनीति में छद्म प्रयोग हो रहा है ! कोई ऐसा राजनैतिज्ञ नहीं है जो किसी न किसी तंत्र पीठ से जुड़ा न हो और जो नहीं जुड़े हैं वह भटक ही रहे हैं ! शैव सम्प्रदाय में तंत्र के छ: स्वरूप हैं ! मारण, मोहन, वशीकरण, स्तंभन, उच्चाटन, विद्वेषण यह छहों षट्कर्म ही तंत्र के अंग हैं ! इसका विस्तृत वर्णन अग्नि पुराण में मिलता है ! जिसका राजनीति में अनादि काल से प्रयोग होता रहा है !

चाणक्य, पुष्यमित्र, सिकंदर, पोरस, विक्रमादित्य, छत्रपति शिवाजी, बाजीराव पेशवा आदि भी तंत्र साधक थे ! इनके असाधारण सफलता का यही रहस्य था ! मुझे आज तक कोई ऐसा सफल व्यक्ति नहीं मिला जो किसी न किसी साधक गुरु के सम्पर्क में न हो ! समाज में कहता चाहे कोई कुछ भी रहे !

आज भारत में तंत्र का ज्ञान लगभग विलुप्त हो गया है ! कुछ लोग तंत्र के विकृत स्वरूप को समाज में प्रस्तुत कर तंत्र को बदनाम कर रहे हैं ! किंतु फिर भी मेरा यह मत है कि यदि किसी व्यक्ति को अप्रत्याशित सफलता प्राप्त करनी हो तो उसे किसी भी योग्य गुरु के सानिध्य में तंत्र की साधना अवश्य करनी चाहिये ! क्योंकि तंत्र के माध्यम से पुरुषार्थ शीघ्र ही प्रभावशाली तरीके से फलित होता है ! तंत्र की दिशा यदि सही है तो व्यक्ति को कभी भी असफलता का सामना नहीं करना पड़ता है ! तंत्र में काल के प्रवाह को मोड़ने का समर्थ होता है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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