संघर्ष की उत्पत्ति इस पृथ्वी पर मनुष्य के जन्म के साथ ही शुरू हुई है ! प्राचीन काल में व्यक्ति अपने विचारों को मनवाने के लिये शारीरिक शक्ति का प्रयोग करते थे ! कालांतर में जब व्यक्ति का ज्ञान विकसित हुआ तो उसने ईट पत्थर के हथियार बनाकर उनका प्रयोग आरंभ कर दिया ! धीरे-धीरे धातु की खोज हुई और युद्ध में धातु के हथियार तीर, भाला, तलवार, आदि प्रयोग किये जाने लगा !
300 ईसापूर्व बारूद की खोज हुई और बंदूक और तोपों का निर्माण शुरू हो गया ! द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, जैसे विकसित हथियार बनाये जाने लगे ! किन्तु यह समस्या सदैव रहती थी कि हथियारों से युद्ध जीतने के बाद भी एक देश दूसरे देश को जीत लेता है तो जीते हुये देशों में प्रयोग किये गये हथियारों के कारण संपत्ति का इतने बड़े स्तर पर नुकसान होता है कि उस संपत्ति के पुनर्निर्माण के लिये बहुत बड़ी मात्रा में धन व्यय करना पड़ता है !
इसीलिये द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत यह विचार किया जाने लगा कि युद्ध का वह कौन सा नया स्वरूप हो जिसके कारण जीते हुए देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाये बिना किसी भी देश को अपना गुलाम बनाया जा सके ! तब दुनिया को चलाने वाले महा शक्तिशाली देशों ने धन अर्थात रुपये को हथियार के तौर पर प्रयोग करने का निर्णय लिया !
इन रास्तों ने एक ऐसी छद्म युद्ध नीति बनाई जिसके द्वारा किसी भी देश के ऊपर हथियारों से आक्रमण न किये जाने के बाद भी उसे अपना गुलाम बनाया जा सके ! इसी व्यवस्था के तहत बैंकों के नये स्वरूप की उत्पत्ति हुई और बैंकों के इस नये स्वरूप संचालन के लिये भारत में भारतीय बैंकिग कंपनी अधिनियम 1949 आ गया !
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिन रुपयों को आप खर्च करते हैं ! वह न तो भारत सरकार की संपत्ति है और न ही भारत सरकार द्वारा इसे मुद्रित ही किया जाता है बल्कि इन सभी रुपयों का मुद्रण, नियंत्रण और संचालन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा किया जाता है !
तथा जिन बैंकों में आप अपना पैसा रखते हैं यह एक व्यवस्थित साहूकारी व्यवस्था है ! जिस तरह प्राचीन काल में साहूकार के यहां गरीब मजदूर अपना पैसा रखता था और साहूकार बेईमानी से उसे हड़प लिया करता था ! ठीक उसी तरह व्यवस्थित साहूकार के रूप में आपको ब्याज देने का आकर्षण देकर आज बैंक आपका पैसा लेते हैं और आपके पैसे को बड़े-बड़े व्यवसायियों को व्यवसाय करने के लिये लोन के तौर पर दे देते हैं !
यह बड़े-बड़े व्यवसाई अलग-अलग नामों से बड़ी-बड़ी कंपनियां बनाकर व्यवसाय करते हैं और आप और हम जैसे लोग जो इन व्यवसायियों के यहां नौकरी करते हैं ! वह वेतन से बचा हुआ पैसा वापस इन्हीं बैंक को दे देते हैं और बैंक हमारे आपके बचत के पैसे को पुनः एक पूंजी बना कर इन्हीं व्यवसायियों को दे देता है ! जिनके अधीन हम और आप नौकरी करते हैं !
यह क्रम सफलतापूर्वक चलता रहता है ! हमें भी परेशानी नहीं होती है, बैंक को भी नहीं होती है और व्यवसाई को भी नहीं होती है ! लेकिन जब नोटबंदी या आर्थिक मंदी के कारण यह क्रम किसी भी स्थिति में टूट जाता है तो उस स्थिति में व्यवसायी तो घाटा लगने के कारण अपनी कंपनी बंद कर देता है ! जिस कंपनी में उस व्यवसायी का निजी तौर पर कोई पैसा नहीं लगा होता है ! क्योंकि वह कंपनी जिस लोन के पैसे से चलती है वह लोन का पैसा जो बैंक उस कंपनी के मालिक को देता है वह हमारा आपका ही पैसा होता है !
जब कंपनी बंद होती है तो बैंक के लोन का पैसा बैंक को वापस प्राप्त नहीं होता है और उस स्थिति में वह बैंक भी बंद हो जाता है और हम लोग ब्याज के लालच में जिस पैसे को बैंक के पास पूंजी के तौर पर जमा करते हैं वह सारा का सारा हमारे मेहनत का पैसा डूब जाता है !
हमारे आसपास के समाज में हजारों ऐसे उदाहरण मिलते हैं किन लोगों ने सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली क्योंकि जिस बैंक में उनका पैसा जमा था ! वह बैंक आर्थिक मंदी में आकर खत्म हो गया ! यह एक बहुत ही खतरनाक दुष्चक्र है ! इससे यदि निकलना है तो बैंकों के अलावा भी अन्य स्थानों पर अपनी पूंजी को रखने की व्यवस्था पर विचार करिये अन्यथा यह बैंक आपको कभी भी कंगाल कर सकते हैं !