शुद्ध रक्त की शक्ति थी हिटलर की सफलता का रहस्य ! : Yogesh Mishra

शुद्ध रक्त की शक्ति थी हिटलर की सफलता का रहस्य !

शान्ति प्रिय मानव का इतिहास सदैव से युद्ध और खून-खराबे का रहा है ! सुनने में यह थोड़ा भले ही अजीब सा लगता है ! पर साम्राज्यवादी और पूंजीवादी शासन व्यवस्था ने हर दौर में ऐसे खलनायक पैदा किये हैं ! जिनकी वजह से हुये युद्ध की सनक और रक्त पिपासा ने ज्यादातर इतिहासकारों को अपनी ओर आकर्षित किया है !

पर आश्चर्य तो यह है कि कइयों ने जो युद्ध अपने स्वाभिमान के लिये लड़े उनको भी इन साम्राज्यवादी खलनायकों ने सनकी तानाशाह कह कर उनका नाम इतिहास में दर्ज कर दिया है ! हिटलर भी इतिहास का एक ऐसा ही नायक था ! जिसने जर्मन के स्वाभिमान की रक्षा के लिये बिना किसी भय के विश्व की महाशक्तियों के खिलाफ 1941 से 1945 के बीच महायुद्ध किया !

हिटलर का यह प्रयास भले ही इतिहास में सबसे बड़े जातीय नरसंहार के रूप में दर्ज हो ! लेकिन यह सत्य है कि अंग्रेजों ने उस समय जिस तरह से पूरे विश्व में आर्यों का स्वाभिमान को कुचल दिया था ! उसका सही जवाब हिटलर ने ही इन दुष्ट अंग्रेजों को दिया था ! क्योंकि हिटलर खुद को आर्य मानता था और जर्मनी को एक आदर्श आर्यों का देश मानता था !

उसका मानना था कि जर्मनी की ज्यादातर समस्याओं का कारण जर्मनी में रह रही गैर आर्य जातियां हैं ! जिनमें यहूदी सबसे ज्यादा दोषी हैं ! हिटलर के नरसंहार के शिकार यहूदियों के अलावा जिप्सी गुलाम, कम्युनिस्ट और वह लोग भी हुये ! जो मानसिक और शारीरिक रूप से विपत्ति की घड़ी में जर्मन के साथ खड़े नहीं थे ! हिटलर के आत्मस्वभिमान के इस युद्ध में लगभग 1 करोड़ लोग मारे गये थे ! जबकि उस समय जर्मन की आबादी मात्र 7 करोड़ हुआ करती थी ! इस युद्ध में यूरोप में तकरीबन 90 लाख यहूदी जो रहते थे ! उनमें से लगभग 60 लाख यहूदी हिटलर के क्रोध का शिकार हुये थे !

अब विचार यह है कि हिटलर में यह साहस आखिरकार आया कहाँ से कि उसने उस समय विश्व की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी ताकत ब्रिटेन को लड़ कर ख़त्म कर दिया ! यही नहीं हिटलर से युद्ध में जितना अकेले ब्रिटेन की औकात नहीं थी ! तब उसके सहयोगी पूंजीवादी अमेरिका को भी हिटलर से ब्रिटेन की रक्षा के लिये साथ आना पड़ा और दोनों ने मुंह की खाई ! तब हताश निराश परेशान अमेरिका और ब्रिटेन को अपने कट्टर दुश्मन रूस से अपनी आत्मरक्षा के लिये गिडगिडाना पड़ा तब रूस के सहयोग से उस समय विश्व की तीनों महाशक्तियों ने मिलकर जर्मन पर हमला किया तब जा कर हिटलर को हरा पाये !

हिटलर की इस अद्भूत शक्ति का रहस्य था उसका अपने जाति और नश्ल की शुद्धता में अटूट विश्वास ! उसके अपने आर्य अर्थात सर्वश्रेष्ठ होने का एहसास ! तभी तो आज पूरी दुनियां के पूंजीपति और साम्राज्यवादी पूरे विश्व में रक्त की शुद्धता को ख़त्म करके इस दुनिया को वर्णसंकर बना देना चाहते हैं ! क्योंकि शुद्ध रक्त के स्वाभिमान की ऊर्जा ही अलग होती है ! जो आपमें एक अलग ही साहस और जोश पैदा करता है ! जिसका रक्त जितना शुद्ध होगा वह उतना ही साहसी और बुद्धिमान होगा ! यह रहस्य हिटलर जानता था !

इसीलिये उसने उन्नत नश्ल के संतानों की उत्पत्ति के लिये अलग ही व्यवस्था की थी ! जिसमें मात्र शुद्ध आर्य रक्त के लोग ही संतान पैदा कर सकते थे ! जिन्होंने पिछली तीन पीड़ियों में अंतरजातीय या अंतरधर्म में विवाह किये थे ! उन्हें संतान पैदा करने का अधिकार नहीं था ! क्योंकि हिटलर का यह मानना था कि यही वर्णसंकर लोग देश, जाति और व्यवस्था के लिये सदैव खतरा बनते हैं ! जिसका रक्त शुद्ध है वह लोग कभी भी गद्दार नहीं हो सकते हैं !

शुद्ध रक्त के लोग साहसी, बुद्धिमान, व्यावहारिक, राष्ट्रभक्त, धर्मपरायण, आत्मस्वभिमानी, दयावान, त्यागी और धर्मनिष्ठ होते हैं ! अर्थात उनमें एक अच्छे नागरिक के सारे गुण होते हैं ! इसीलिये हिटलर जाति और नश्ल की शुद्धता पर सबसे अधिक जोर देता था ! जोकि भारतीय सनातन जीवन शैली के मूल सन्तति व्यवस्था का अंग है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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