गांधी की मानें तो युद्ध के दो कारण हैं ! हमारी नफरत और लालच बस ! यही हर युद्ध के मस्तिष्क का आधार है ! गांधी की बात इसलिये भी सही लगती है क्योंकि दुनिया में जो युद्ध हुये वह या तो साम्राज्यवादी लूट के लिये हुये या फिर मजहबी नफरत के कारण !
फ्रांसीसी डच या अंग्रेज़ सारी दुनिया में कच्चे माल या सस्ते मजदूरों या बाज़ारों की तलाश में जाते थे ! वह नए-नए देशों पर कब्ज़ा करते थे, वहां से कपास मसाले रेशम सोना लकड़ी या दूसरी कीमती चीज़ें लूटते थे !
अफ्रीका से दशकों तक आदिवासियों को गुलाम बनाकर इंग्लैंड, अमेरिका और यूरोप ले जाने का सिलसिला चला ! इन देशों के व्यापारियों द्वारा अपने देशों की सेनाओं का इस्तेमाल दूसरे देशों के खिलाफ इस लूट को सफल बनाने के लिये किया गया ! भारत भी ढाई सौ साल इस लूट और गुलामी का शिकार बना रहा !
इसी साम्राज्यवादी लूट में से पहला विश्वयुद्ध निकला ! पहले विश्वयुद्ध के पेट से हिटलर और मुसोलिनी निकले ! युद्ध की हार का बदला लेने और खुद को श्रेष्ठ नस्ल मानने की नफरती सोच में से फासीवाद और नाजीवाद निकला और उसमें से दूसरा विश्वयुद्ध निकला !
अंग्रेजों ने भारत से कच्चा माल लूटने के लिये इसे अपना उपनिवहश बनाकर रखा !भारत को अपना गुलाम बनाकर रखने और अपने साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह को कमज़ोर करने के लिये अंग्रेजों ने भारत के हिंदुओं और मुसलमानों को आपस में बांटकर रखने की चालबाजी की !
इसके लिये अंग्रेजों ने हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काने की चाल चली !
एक तो अंग्रेज़ मुसलमानों के खिलाफ यूरोप में युद्ध लड़ चुके थे, इसलिये वह मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रहों से भरे हुये थे !दूसरा, भारत में मराठों सिखों और राजपूत राजाओं को अपने साथ मिलाने के लिये भी अंग्रेजों ने मुसलमानों को दूर रखने की नीति अपनाई !
अंग्रेजों ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत को बढ़ाने के लिये फ़र्जी इतिहास लिखना शुरू किया !अंग्रेज़ इतिहासकार जॉन स्टुअर्ड मिल ने भारत के इतिहास को तीन भागों में बांटा ! पहला- हिंदू काल, दूसरा- मुस्लिम काल और तीसरा ब्रिटिश काल !जबकि भारत में कोई हिंदू काल नहीं था ! भारत में जैन शासक हुये ! बौद्ध शासक हुये ! ब्राह्मण शासक भी हुये ! सामाजिक तौर पर घोषित किए गए शूद्र शासक भी हुये !
अंग्रेज़ इतिहासकार जॉन स्टुअर्ड मिल अपने शोध साहित्य में लिखते हैं कि ब्राह्मण शासकों द्वारा बौद्धों के विरुद्ध हिंसा का लंबा दौर चला ! इनके बाद मुसलमानों के भारत आने के बाद मुसलमान शासक भी हुये ! उन्हीं के दौर में राजपूत, मराठे, सिख भी शासन करते रहे !
शासक भले ही मुसलमान थे लेकिन भारत में कभी भी इस्लामी शासन नहीं था ! कभी भी शरिया लागू नहीं किया गया, बल्कि मनुस्मृति के आधार पर जाति व्यवस्था चलती रही !लाखों शूद्रों ने बराबरी की तलाश में इस्लाम की शरण ली लेकिन किसी मुस्लिम शासक ने मनुस्मृति आधारित ब्राह्मण व्यवस्था पर कोई रोक नहीं लगाई !
इसीलिये भारत में शहरों और गांवों के नाम मुस्लिम राजाओं ने बदलने का कोई क्रूर अभियान नहीं चलाया ! रामपुर और सीतापुर जैसे नाम ज्यों के त्यों बने रहे ! ब्राह्मणों और अन्य हिंदुओं की आबादी उतनी ही बनी रही ! उन्हें तलवार के जोर पर मुसलमान बनाने का कोई ज़बरदस्ती का अभियान कभी नहीं चलाया ! मुसलमान शासक मंदिर बनाने के लिये ज़मीनें और वजीफे देते रहे ! मुस्लिम शासकों के दौर में ही अयोध्या में रहकर तुलसीदास ने रामचरित मानस लिखी और उसी दौर में वहां सैंकड़ों राम मंदिर बने !
मुगल काल में ही भक्ति काल परवान चढ़ा और कृष्ण का प्रेमी रूप और बाल लीलाओं के काव्य रचे गए ! रसखान तथा मालिक मुहम्मद जायसी जैसे मुस्लिम कृष्ण भक्त भी इसी दौर में हुये !लेकिन अंग्रेजों ने झूठा इतिहास लिखा और मुग़ल शासकों को हिंदुओं के ऊपर अत्याचार करने वाला बताना शुरू किया !
1857 के गदर में अंग्रजों के खिलाफ मुसलमानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया था, इसलिये अंग्रेजों ने हिंदुओं को मुसलमानों से दूर करने की नीति पर काम करना शुरू किया !
अंग्रेजों की शह पर ही हिंदू महासभा और आर.एस.एस. की स्थापना की गई ! इन संगठनों ने भारत में अंग्रेज़ी राज के खिलाफ चलने वाले स्वाधीनता आंदोलन का विरोध किया और अंग्रेजों की मदद की ! इन संगठनों की मदद से ही अंग्रेजों ने भारत और पाकिस्तान को दो देशों में बंटवा दिया !
अंग्रेजों के जाने के बाद भारत का शासन उन्हीं परंपरागत शासक वर्गों के हाथों में रहा जो अपनी जाति और पैसों के कारण हमेशा से अमीर थे और शासन करने में शामिल थे !भारत में मेहनतकश तबके को शूद्र और गरीब भी बनाकर रखा गया था और उसे शासन से दूर रखा गया था ! इसे ही ऐतिहासिक अन्याय कहा गया !
आज़ादी के बाद इस ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने तथा सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय स्थापित करने का तय किया गया ! लेकिन अन्याय की वजह से बड़े और अमीर बने हुये तबके ऐसा कैसे होने देते हैं !
इसलिये इन्होंने बराबरी के विचार को विदेशी कहा, उसे वामपंथी विचार बताया और भारत में चल रहे शोषण को धर्म संस्कृति और परंपरा कहा ! शोषण को बनाए रखने के लिये शोषित लोगों को नकली लड़ाई में उलझाने की चाल रचाई गई !
दलितों और शूद्र जातियों से कहा गया कि तुम्हारे दुश्मन मुसलमान हैं इनसे लड़ो, जात-पात के खिलाफ मत लड़ो ! मजदूर से कहा गया कि मजदूरी बढ़ाने के लिये मत लड़, मुसलमानों के खिलाफ लड़ !
इस तरह न्याय और बराबरी के लिये चलने वाली पूरी की पूरी बदलाव की लड़ाई को सांप्रदायिक नफरत की तरफ मोड़ दिया गया ! इससे फायदा उनका हुआ जो शोषण कर रहे थे ! और नुकसान उनका हुआ जो बराबरी आने के बाद फायदे में रहते !बराबरी और न्याय को रोकने वाले लोगों ने मुसलमानों के खिलाफ नफरत भड़काने के लिये तमाम तरह की नकली अफवाहों का निर्माण किया, जिससे गैर मुसलमानों को लगातार भड़काया जा सके !
हमने इन अफवाहों की खूब जांच की है और हमेशा इन्हें फर्ज़ी पाया है ! मसलन, मुसलमान अपनी आबादी बढ़ा रहे हैं और कुछ सालों में यह हिंदुओं से ज्यादा हो जाएंगे ! जबकि सच्चाई यह है कि मुसलमानों की आबादी बढ़ने की वार्षिक दर लगातार कम हो रही है !
दूसरी अफवाह कि मुसलमान हथियार रखते
हैं, दंगा करते हैं और आतंकवादी होते हैं !
जबकि सच्चाई यह है कि भारत में ज्यादातर दंगे मुसलमानों के औद्योगिक ठिकानों पर जानबूझकर उनकी अर्थव्यवस्था को नष्ट करने के लिये किए गए हैं चाहे वो मुरादाबाद हो फिरोजाबाद, बनारस हो या भागलपुर, भिवंडी या मालेगांव !
यह सब वह जगहें हैं जहां कपड़े, पीतल, कालीन या साड़ियों का काम मुसलमान करते थे ! इन हमलों में बड़ी तादाद में मुसलमान ही मारे गए हैं ! इसलिये यह ही साफ़ समझ में आता है कि यह दंगे असल में मुसलमानों द्वारा नहीं बल्कि उनके खिलाफ किए गए हैं !
इसी तरह मुसलमानों पर ‘लव जिहाद’ का इल्ज़ाम लगाया गया जिसके अस्तित्व में ही न होने के बारे में अदालत का फैसला भी आ चुका है ! आज इस नफरत आधारित चलाई जाने वाली राजनीति का नतीजा यह है कि लोग महंगाई, रोज़गार, महंगी शिक्षा की बात करना भूल गए हैं !
आज भारत की ज्यादातर आबादी हर राजनीतिक आंदोलन का विरोध करने वाली बना दी गई है ! विद्यार्थियों, महिलाओं, मजदूरों, किसानों या आदिवासियों के आंदोलन का विरोध अब सरकार नहीं करती बल्कि यह काम भारत की यह तैयार की गई मुस्लिम विरोधी आबादी करती है !
सांप्रदायिकता के झूठे प्रचार के सहारे तैयार की गई यह आबादी अपने अधिकार समाप्त करने के लिये तैयार है, देश के साथी नागरिकों के मानवाधिकार छीनने का समर्थन करने के लिये तैयार है ! नागरिकों को सोचने-समझने वाला नागरिक न बनाकर उसे एक दंगाई भीड़ में बदल देना ही इन साम्राज्यवादी राजनीति की सोची-समझी चाल है ! जिसमें यह काफी हद तक वह लोग हर बार मनोविज्ञान का खेल खेल कर सफल हो जाते हैं !!