मानवीय संस्कृति का आधार कैलाश पर्वत है : Yogesh Mishra

मानवता के इतिहास की शुरुआत बन्दर से नहीं बल्कि कैलाश पर्वत से होती है ! जो कि शैवों का पवित्र स्थल है ! कैलाश पर्वत का ग्लेशियर ही एशिया में अनादि काल से सभी महत्वपूर्ण नदियों का स्रोत रहा है ! इसी के किनारे मानवता की कई अनेक सभ्यताएँ फली-फूलीं !

17,000 ईसा पूर्व से पहले सिंधु घाटी सभ्यता भी इसी के जल स्रोत से निकली सिंधु नदी के तट पर पनपी थी ! 12,000 ईसा पूर्व भी हड़प्पा की सभ्यता भी यही पनपी थी ! वहीं पूर्व में भारत की सबसे लम्बी ब्रह्मपुत्र नदी का स्रोत भी इसी कैलाश पर्वत का ग्लेशियर रहा है !

ऋग्वेद में सिंधु की कई सहायक नदियों का भी जिक्र है, जिनके स्रोत मध्य-पूर्वी हिमालय में स्थित शिवालिक की पहाड़ियाँ हैं ! पूर्वी हिमालय से लेकर पश्चिमी नदी घाटी तक यह नदियाँ हैं – व्यास, झेलम, चेनाब, रावी और सतलुज ! पूर्वी साँपो नदी ही वह जगह है, जहाँ एक खास प्रकार के आर्यों द्वारा युद्ध में प्रयोग होने वाले जंगली घोड़े के पाए जाने की बात कही जाती है !

अगर हम सिंधु से और पूर्व की तरफ गंगा-गोमती-घाघरा सभ्यता पनपी ! ऋग्वेद के आठवें मंडल में गोमती नदी का भी जिक्र है ! ऋग्वेद में 1.8.8 संख्या श्लोक को देखिए – ‘ए॒वा ह्य॑स्य सू॒नृता॑ विर॒प्शी गोम॑ती म॒ही ! प॒क्वा शाखा॒ न दा॒शुषे॑॥’, जिसमें गोमती नदी का जिक्र है ! ऋषियों के निवास स्थान के रूप में लोकप्रिय रहा जंगल ‘नैमिषारण्य’ इसी नदी के किनारे बसा हुआ था ! उपनिषदों में इसका जिक्र है ! ऐतिहासिक लक्ष्मणपुर अर्थात लखनऊ) और इसके आसपास यह स्थित रहा था !

अंग्रेजी के अनपढ़ इतिहासकारों ने भारतीय प्राचीन सभ्यता के पूर्वी और पश्चिमी छोर को नज़रअंदाज़ किया ! उन्होंने 2000 ईसा पूर्व से पहले की वैदिक सभ्यता को नीचा दिखाने के लिए एक षडयंत्र रचा ! उन्होंने यूरेशिया के मैदानों से आर्यों के आने की बात कही ! इसका परिणाम यह हुआ कि सिंधु घाटी सभ्यता के पुरातत्व अध्ययन में गड़बड़ी हुई ! उन्होंने यह भी कह दिया कि आर्यों ने बाहर से आकर द्रविड़ों को मारा और यहाँ कब्ज़ा कर लिया !

जैसे स्वयं योरोप के अंग्रेजों ने अमेरिका, कनाडा, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया आदि के मूल निवासियों की हत्या कर उन स्थानों पर कब्ज़ा कर लिया था !

जबकि आर्यों का वैदिक ज्ञान ही मानवता के विज्ञान का मूल है ! हम कहीं बाहर से भारत नहीं आये बल्कि स्वयं पुरुषार्थ कर समय, अंतरिक्ष और उनके सम्बन्धों का पता किया ! जहाँ से ईश्वर की उत्पत्ति हुयी ! कार्य कारण सम्बन्धी सिद्धांत स्थापित हुये !

और समाज में परस्पर निर्भरता का सिद्धांत स्थापित हुआ ! परिवार बने, ग्राम बने, शहर बने, राष्ट्र बने आदि आदि मानवता विभिन्न रूप में विकसित हुई ! हमने लोक हो नहीं परलोक के भी सिधान्त स्थापित किये ! इसी के परिणाम स्वरूप पुनर्जन्म का विज्ञान निकल कर आया ! जिसे ‘जन्मांतरवाद का सिद्धान्त’ कहा गया !

इसी से स्वस्तिक चिह्न का निर्माण हुआ ! जिसके सहारे समय के चक्र और पुनर्जन्म को समझाया गया ! स्वस्तिक का पैटर्न नॉन-लीनियर है और साइक्लिक है ! अर्थात आगे का भविष्य की तरफ इशारा करता है और पीछे का भूतकाल की तरफ का ! ऋग्वेद के 7.1.20 के “नू मे॒ ब्रह्मा॑ण्यग्न॒ उच्छ॑शाधि॒ त्वं दे॑व म॒घव॑द्भ्यः सुषूदः ! रा॒तौ स्या॑मो॒भया॑स॒ आ ते॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥” श्लोक में स्वस्तिक का जिक्र आता है !

इसके लिए ऋग्वेद अग्नि के जीवन सिद्धांत का उदाहरण भी देता है ! भारतीय आध्यात्मिकता ही गुरुवाद और अवतारवाद पर आधारित है ! वहीं पश्चिमी जगह के लिए भारतीय आध्यात्मिक का रहस्य ज्ञान एक अनजान चीज है, जिसमें वह कभी उतरे ही नहीं ! मध्य-पूर्व दुनिया के साहित्य में भी यह चीज गायब है ! इसीलिए, आर्यों के आक्रमण वाली थ्योरी को भारतीय कॉस्मोलॉजी नकारती है ! मार्च महीने के कैलेंडर में स्पेस-टाइम और कार्य के सिद्धांत को समझाया गया है !

सबसे बड़ी बात तो यह है कि सिंधु घाटी सभ्यता के जो सील मिले हैं, वह आर्य ऋषियों द्वारा प्रतिपादित किए गए ‘योग-क्षेम’ के सिद्धांत से मिलता-जुलता है ! ऋग्वेद (10.167.1) में ‘योगक्षेम विषय कर्म’ और फिर 7.36 में ‘योगेभी कर्मभिः’ का जिक्र है ! 5.81.1 में योग को और अच्छे से समझाया गया है ! इसमें बताया गया है कि कैसे योगी अपने मन एवं बुद्धि पर नियंत्रण रखते हैं ! ‘होने और हो रहे (धार्यते आईटीआई धर्मः)’ के जरिए कॉस्मोलॉजी की वास्तविकता का भान कराया गया है !

चिंतन, ध्यान और सारी चीजों से ऊपर उठ जाने को योग समाधि नाम दिया गया है ! इसे प्राप्त करने वाले ही योगी है ! यह ‘कृष्ण (अंधकार)’ है ! योग को सभी वैदिक कर्मकांड का मुख्य लक्ष्य माना गया है ! इसी तरह ‘शुक्ल (उजाला)’ का भी सिद्धांत है ! क्षेम या तंत्र उसे कहा गया है, जहाँ योगी को परम ज्ञान मिल जाता है और वह महायोगी हो जाता है ! सप्तर्षि इसे प्राप्त कर चुके हैं ! यूरोप और यूरेशिया के आक्रांताओं को यह चीजें पता नहीं थीं ! आर्य आक्रमण थ्योरी यहाँ भी गलत साबित होती है !

इसी तरह ‘नॉन-लीनियर फ्लो’ और ‘चेंज’ का जो वैदिक सिद्धांत है, वह भी सिंधु घाटी सभ्यता से मिलता है ! ऋग्वेद और पूरा का पूरा यजुर्वेद ही ‘क्रिया’ को एक साइक्लिक चेंज के रूप में परिभाषित करता है ! व्यक्तिगत स्तर पर यह विकास की प्रक्रिया के रूप में बताए गए हैं और कॉस्मिक स्तर पर यह प्रक्रियाएँ होती हैं ! मौसम के चक्र को भी इससे जोड़ा गया है ! चीन के दर्शन में भी यह सिद्धांत है ! भारतीय ऋषियों ने चतुष्कोणीय बदलावों की व्यवस्था दी !
उन्होंने ऋतु चक्र को 6 भागों में बाँटा ! उन्होंने बाकी 4 ऋतुओं के अलावा शरद ऋतु और मॉनसून को भी परिभाषित किया ! यह मौसम और संस्कृति का भारतीय इकोसिस्टम है ! वेदों में जीवन के सिद्धांत को ‘एक श्रृंग’ से भी जोड़ा गया है, जो बौद्ध धर्म में भी मिलता है और सिंधु घाटी से मिले एक सींग वाले जानवर की सील भी इसी ओर इशारा करता है ! अगर आर्य बाहर से आये होते, तो उन्हें इन चीजों का ज्ञान नहीं होता !

ऋग्वेद का सूक्त 1.164.46 विविधता में एकता के सिद्धांत को आगे बढ़ाता है, ‘यम’ के रूप में मृत्यु के सिद्धांत का भी प्रतिपादन किया गया !

देवी सूक्त (10.145) और रात्रि सूक्तम (10.127) कॉस्मो के निर्माण और विनाश को लेकर शुक्ल-कृष्ण के सिद्धांत को आगे बढ़ाता है ! हमेशा से आर्य ऋषियों ने दिव्य शक्ति को बिना शर्त प्रेम के रूप में देखा ! वेदों में ‘आदित्य’ और ‘इला, सरस्वती और भारती’ के रूप में प्रतिबिम्बों का विवरण भी उस समय दिया गया था !
आचार्य अवनीन्द्रनाथ ठाकुर का ‘भारत माता’ का सिद्धांत इसी प्राचीन क्रम को आगे बढ़ाता है ! जबकि पश्चिम में देशों को पितृसत्तात्मक रूप से देखा जाता रहा है, इसीलिए बाहर से कोई आर्य आया रहता तो उसकी सोच भी यही रहती !

जून महीने के कैलेंडर में वैदिक साहित्य में मिले एक सींग वाले घोड़े और हड़प्पा में एक सींग वाले जानवर की तुलना की गई है ! रामायण में ऋष्यश्रृंगा की चर्चा है, जिनका जन्म हिरन के सींग से हुआ था ! सिंधु घाटी सभ्यता में भी एक सींग वाले जानवर की चर्चा है, जिसे शक्ति, और उसके सींग को ईश्वर के तलवार का प्रतीक माना गया है ! यूनिकॉर्न का सिद्धांत ईसाई और चीन में भी था ! यह भारत से बाकी जगह फैला था, बाहर से यहाँ नहीं आया ! जुलाई महीने के कैलेंडर में बताया गया है कि कैसे पाश्चात्य अध्ययन ने शिव को गैर-आर्य देवता बताने की कोशिश की, जबकि वेदों में उनका जिक्र है !

असल में जो पुर्तगाली और ब्रिटिश आक्रांता थे, वह भारतीय और यूरोपीय भाषा में कई समान शब्दों को लेकर अचंभित थे ! इसीलिए, उन्होंने एक इंडो-यूरोपियन लैंग्वेज सिस्टम के विकास का निर्णय लिया और बुद्ध से पहले आर्य के आक्रमण की सिद्धांत रखी ! उन्होंने लिखा कि भारत पर दूसरी बार 17वीं शताब्दी में उससे एक ‘ऊँची शक्ति’ ने आक्रमण किया ! भारतीय, ग्रीक और लैटिन भाषाओं में समानता को लेकर अंग्रेजी विद्वान थॉमस स्टीफेंस ने भी अपने भाई को गोवा से एक पत्र सन् 1583 में लिखा था !

अक्टूबर महीने के कैलेंडर में बताया गया है कि कैसे पाश्चात्य विद्वान यह साबित करने को बेताब थे कि संस्कृति, और ज्ञान-विज्ञान का फ्लो पश्चिम से पूर्व की तरफ हुआ ! नवंबर के कैलेंडर में मैक्स मुलर, आर्थर दे गोबिनायउ और हॉस्टन स्टीवर्ट चैंबरलेन नामक तीन अंग्रेजी स्कॉलरों के विवरण हैं, जिन्होंने आर्य-द्रविड़ थ्योरी को आगे बढ़ाया ! आर्य शब्द को यूरोप ने जैसे परिभाषित किया, वही आगे चल कर कत्लेआम का कारण बना और पूरी दुनियां में योरोपीय आक्रान्ताओं ने इसी परिभाषा के आधार पर खून बहाया !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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