जानिए ! सृष्टि की उत्पत्ति का रचना क्रम ज्ञानवर्धक लेख ।Yogesh Mishra

आदि में जब एकमात्र परमात्मा ही थे, तब तो केवल प्रभाव ही प्रभाव था। उसके बाद परमात्मा ने अपने में से ही ‘आत्म’ शब्द को ज्योति रूपा शक्ति तथा उसको प्रभाव से युक्त करते हुये प्रकट करते हुए पृथक कर दिया। जिससे ज्योति रूपा शक्ति ने पृथक होकर अपने सूक्ष्म विषय ‘प्रभाव’ के माध्यम से आकाश की उत्पत्ति की। परमप्रभु से प्रकट ‘आत्म’ शब्द का ही अंश रूप ‘हूँ’ प्रकट हुआ, जिससे ‘ ह ॐ ‘ हुआ। आदि शक्ति ‘प्रभा’ परमप्रभु से उत्पन्न तथा उन्ही से प्रभावित रहीं। इस आदि शक्ति ‘प्रभा’ से अपने सहज ‘भाव’ से ‘हूँ’ कार उत्पन्न हुआ। यह इतना ज्यादा मात्रा में उत्पन्न हुआ कि उसे आसानी से काबू में नहीं किया जा सकता था। तब तुरंत आदि शक्ति ‘प्रभा’ ने ‘हूँ’ को दो भागों में विभाजित कर दिया जिससे ‘ह ॐ’ दो रूपों में पृथक-पृथक हो गए।

‘ह’ ने प्रभा से तेज प्राप्त करते ही और ॐ के अलग होते हुए ‘ह’ सूक्ष्म रूप से स्थूल रूप आकाश का रूप ले लिया। जिससे ‘ह’ प्रेरित होकर व्यापक रूप आकाशवत हो गया और उससे शक्ति के प्रभाव से सृष्टि उत्पन्न हुई तथा ॐ ने प्रेरित होकर देवत्व को उत्पन्न किया और शक्ति की प्रेरणा व सहयोग से ही सृष्टि रचना क्रम से वायु-अग्नि-जल रूपों को अपने अधीन करता हुआ
आगे बड़ता रहा।

सृष्टि के आदि में केवल परमेश्वर ही थे। वह परमसत्ता रूप परमात्मा अपने प्रभाव को अपने अंतर्गत ही समाहित करके परम आकाश रूप परमधाम में रहते थे और हमेशा रहते भी है। जब सृष्टि रचना की बात उनके अन्दर उठी तब उन्होने अपने संकल्प से आदि शक्ति रूपी अपनी प्रभा को प्रकट किया। तब परमेश्वर ने आदि शक्ति को एश्वर्य के रूप में चेतन-जड़ दो रूपों तथा गुण-दोष दो प्रवृतियों से युक्त करते हुये सृष्टि रचना का आदेश दिया। तब उस आदि शक्ति ने सृष्टि रचना का कार्य प्रारम्भ किया, जिसे आप देखते आ रहे हैं क्रमशः- शक्ति-आकाश-वायु-अग्नि-जल तत्व रूप में आप के सामने मौजूद हैं ।

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …