मात्र मनुष्य को ही नहीं ! प्रकृति ने हर जीव-जंतु, पेड़-पौधे आदि की संरचना इस तरह बनाई है ! यह सभी देश, काल, वातावरण और परिस्थिति के अनुसार धीरे-धीरे अपने आपको प्रकृति के अनुरूप बना सकें !
इसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि ईश्वर ने जीव को यह क्षमता दी है कि वह दृढ़ इच्छाशक्ति के द्वारा अपने शरीर में कुछ ऐसे अप्रत्याशित परिवर्तन कर सकता है ! जिसकी वह निरंतर एक लंबे समय से पीढ़ी दर पीढ़ी आवश्यकता महसूस करता चला आ रहा था !
इसके अनेकों उदाहरण हमारे प्राणी जगत के इतिहास में मौजूद हैं ! न जाने कितने जीव ऐसे हैं जिनके पंख नहीं हुआ करते थे ! जैसे बाज लेकिन मात्र प्रबल इच्छाशक्ति के कारण प्रकृति ने उनको पंख प्रदान कर दिये ! न जाने कितने जीव ऐसे थे जो बस जल में ही रह सकते थे लेकिन थल पर आने की प्रबल इच्छा के कारण ईश्वर ने उन्हें जल और थल दोनों स्थान पर सांस लेने की क्षमता प्रदान की ! जैसे कछुआ !
ठीक इसी तरह न जाने कितने हिंसक मांसाहारी पशु जो शाकाहारी हो गये और उनके पंजे में नाखून के स्थान पर खुरो की उत्पत्ति हो गई ! जैसे घोडा और न जाने कितने पशु ऐसे भी हैं जिनके अंदर मांसाहारी होने की प्रबल इच्छा होने के कारण उन पशुओं ने खुर के स्थान पर नाखूनदार पंजा को प्रकृति से प्राप्त कर लिये ! जैसे चूहा !
यूनिवर्सिटी ऑफ केपटाउन (यूसीटी) के शोधकर्ताओं ने दक्षिण अफ्रीका के वेस्टविले में पामिएट नदी के पास पाई जाने वाली माउंटेन वैजेट नामक पक्षी के आकार पर अध्ययन किया और पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण जानवरों के शरीर का आकार छोटा हो रहा है ! शोधकर्ताओं द्वारा 1976 से 1999 के बीच 23 सालों की अवधि तक जुटाये गये सुबूतों के आधार पर यह दावा किया गया है !
कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य है कि जीव आत्मा जिस पिंड के अंदर रहती है ! वह पिंड चाहे मनुष्य का हो या किसी जीव जंतु का हो या फिर पेड़ पौधे का हो ! प्रकृति ने उसे यह शक्ति प्रदान की है कि वह अपनी आवश्यकता और दृढ़ इच्छाशक्ति के द्वारा अपने अंदर कोई भी परिवर्तन कर सकता है !
इसीलिए देखा जाता है कि प्रायः किसी विशेष क्षेत्र के अंदर रहने वाले पक्षी के चौच की बनावट अलग तरह की होती है और उसी प्रजाति का पक्षी जब किसी दूसरे देश, काल, परिस्थिति में रहता है तो उसके चौच की बनावट अलग तरह की हो जाती है !
मतलब कहने का तात्पर्य यह है कि जीव के अंदर जो जीवनी उर्जा है ! उसे अपनी इच्छा और आवश्यकता के अनुरूप अपने भौतिक शरीर रूपी पिंड को बदलने का अधिकार उसे प्रकृति ने प्रदान किया है ! यही प्रकृति का वह नयाब पुरस्कार है ! जिसके कारण आज करोड़ों वर्षों से इस पृथ्वी पर अलग अलग परिस्थितियों में भी जीवन निर्बाध गति से चला रहा है !