शबरी की कथा का वर्णन रामायण, भागवत, रामचरितमानस, सूरसागर, साकेत आदि ग्रंथों में मिलती है । सीता की खोज करते हुए जब सीता की खोज में जब राम और लक्ष्मण वर्तमान छत्तीसगढ़ के डांग जिले में सुबीर गांव के निकट पहुँचे तो उनकी भेंट वहां शबरी नामक भीलनी महिला से हुई थी ! जो कि वहां एक कुटिया बना कर रहती थी ! कथाकार बतलाते हैं कि शबरी ने जूठे बेर खिलाकर उनका आदर-सत्कार किया !
किन्तु बेर जूठे थे इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस में नहीं मिलता है । जूठे बेर की बात 18 वीं सदी के महान कवि “प्रियदास” के काव्य में है । गीता प्रेस से निकलने वाले “कल्याण” पत्रिका के 1952 में आए अंक में यह बात पहली बार प्रकाशित हुई और कथा वाचकों की कृपा से धीरे धीरे लोकप्रिय हो गई । फिर रामलीला का हिस्सा बनी ।
बाद में रामानंद सागर ने अपने “रामायण” सीरियल में शबरी और राम के बेर की घटना को बड़े ही भावुक ढंग से प्रदर्शित किया ! जिससे यह आम जनमानस में प्रचारित प्रसारित हुई जबकि इसका वास्तविक घटना से कोई लेना देना नहीं है !
शबरी का असली नाम श्रमणा था, वह भील सामुदाय के शबर जाति से सम्बन्ध रखती थीं। उनके पिता भीलों के राजा थे। बताया जाता है कि उनका विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था, विवाह से पहले सैकड़ों बकरे-भैंसे बलि के लिए लाये गए जिन्हें देख शबरी को बहुत बुरा लगा कि यह कैसा विवाह जिसके लिए इतने पशुओं की हत्या की जाएगी। शबरी विवाह के एक दिन पहले घर से भाग गई। घर से भागकर वे दंडकारण्य पहुंच गई।
और वहां तप कर रहे ऋषि मतंग के आश्रम में रहने लगीं ! जब मतंग ऋषि की मृत्यु का समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही भगवान राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे मिलने जरूर आएंगे।
मतंग ऋषि की मौत के बाद सीता की खोज में राम और लक्ष्मण जब वहां से गुजरे तो शबरी ने उन राजकुमारों का स्वागत बेर से किया ! मात्र इसी घटना को कथा वाचकों ने भावुकता का पुट देकर रोचक बनाने के चक्कर में बढ़ा चढ़ा दिया !