विक्रमादित्य को इतिहास से काट देने के पीछे एक बहुत बड़ा षड़यंत्र था ! पहला षड़यंत्र यह कि अकबर से महान कोई नहीं हो सकता इस बात को स्थापित करने के लिए कुछ इतिहास पुरुषों को इतिहास से काटना जरूरी था ! जबकि अकबर ने अशोक महान और विक्रमादित्य की हर बातों का अनुसाण किया था ! भारतीय इतिहास में विक्रमादित्य के इतिहास को नहीं पढ़ाया जाता है !
विक्रम संवत अनुसार विक्रमादित्य आज से (12 फरवरी 2020) 2291 वर्ष पूर्व हुये थे ! विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था ! नाबोवाहन के पुत्र राजा गंधर्वसेन भी चक्रवर्ती सम्राट थे ! गंधर्वसेन के पुत्र विक्रमादित्य और भर्तृहरी थे ! कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ ! उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया ! -(गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245) !
महाराजा विक्रमादित्य का सविस्तार वर्णन भविष्य पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है ! विक्रमादित्य ईसा मसीह के समकालीन थे और उस वक्त उनका शासन अरब तक फैला था ! विक्रमादित्य के बारे में प्राचीन अरब साहित्य में भी वर्णन मिलता है ! नौ रत्नों की परंपरा उन्हीं से शुरू होती है !
विक्रमादित्य उस काल में महान व्यक्तित्व और शक्ति का प्रतीक थे, जबकि मुगलों और अंग्रेजों को यह सिद्ध करना जरूरी था कि उस काल में दुनिया अज्ञानता में जी रही थी ! दरअसल, विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र तक फैला था और संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित थे ! विक्रमादित्य भारत की प्राचीन नगरी उज्जयिनी के राजसिंहासन पर बैठे ! विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे ! कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था !
देश में अनेक विद्वान ऐसे हुये हैं, जो विक्रम संवत को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा ही प्रवर्तित मानते हैं ! इस संवत के प्रवर्तन की पुष्टि ज्योतिर्विदाभरण ग्रंथ से होती है, जो कि 3068 कलि अर्थात 34 ईसा पूर्व में लिखा गया था ! इसके अनुसार विक्रमादित्य ने 3044 कलि अर्थात 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत चलाया ! नेपाली राजवंशावली अनुसार नेपाल के राजा अंशुवर्मन के समय (ईसापूर्व पहली शताब्दी) में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नेपाल आने का उल्लेख मिलता है !
कालांतर में अन्य बहुत से ऐसे सम्राट हुये जिन्होंने विक्रमादित्य को आदर्श मानते हुये ! अपने नाम के आगे विक्रमादित्य लगा लिया था ! यथा श्रीहर्ष, शूद्रक, हल, चंद्रगुप्त द्वितीय, शिलादित्य, यशोवर्धन आदि ! दरअसल, आदित्य शब्द देवताओं से प्रयुक्त है ! बाद में विक्रमादित्य की प्रसिद्धि के बाद राजाओं को ‘विक्रमादित्य उपाधि’ दी जाने लगी ! विक्रमादित्य के पहले और बाद में और भी विक्रमादित्य हुये हैं जिसके चलते भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है ! उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद 300 ईस्वी में समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय अथवा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य हुये !
एक विक्रमादित्य द्वितीय 7वीं सदी में हुये, जो विजयादित्य (विक्रमादित्य प्रथम) के पुत्र थे ! विक्रमादित्य द्वितीय ने भी अपने समय में चालुक्य साम्राज्य की शक्ति को अक्षुण्ण बनाए रखा ! विक्रमादित्य द्वितीय के काल में ही लाट देश (दक्षिणी गुजरात) पर अरबों ने आक्रमण किया ! विक्रमादित्य द्वितीय के शौर्य के कारण अरबों को अपने प्रयत्न में सफलता नहीं मिली और यह प्रतापी चालुक्य राजा अरब आक्रमण से अपने साम्राज्य की रक्षा करने में समर्थ रहा !
पल्लव राजा ने पुलकेसन को परास्त कर मार डाला ! उसका पुत्र विक्रमादित्य, जो कि अपने पिता के समान महान शासक था, गद्दी पर बैठा ! उसने दक्षिण के अपने शत्रुओं के विरुद्ध पुन: संघर्ष प्रारंभ किया ! उसने चालुक्यों के पुराने वैभव को काफी हद तक पुन: प्राप्त किया ! यहां तक कि उसका परपोता विक्रमादित्य द्वितीय भी महान योद्धा था ! 753 ईस्वी में विक्रमादित्य व उसके पुत्र का दंती दुर्गा नाम के एक सरदार ने तख्ता पलट दिया ! उसने महाराष्ट्र व कर्नाटक में एक और महान साम्राज्य की स्थापना की, जो राष्ट्र कूट कहलाया !
विक्रमादित्य द्वितीय के बाद 15वीं सदी में सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य ‘हेमू’ हुये ! सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के बाद ‘विक्रमादित्य पंचम’ सत्याश्रय के बाद कल्याणी के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुये ! उन्होंने लगभग 1008 ई. में चालुक्य राज्य की गद्दी को संभाला ! भोपाल के राजा भोज के काल में यही विक्रमादित्य थे !
विक्रमादित्य पंचम ने अपने पूर्वजों की नीतियों का अनुसरण करते हुये कई युद्ध लड़े ! उसके समय में मालवा के परमारों के साथ चालुक्यों का पुनः संघर्ष हुआ और वाकपतिराज मुञ्ज की पराजय व हत्या का प्रतिशोध करने के लिए परमार राजा भोज ने चालुक्य राज्य पर आक्रमण कर उसे परास्त किया, लेकिन एक युद्ध में विक्रमादित्य पंचम ने राजा भोज को भी हरा दिया था !