जानिए हिन्दुओं का रात्रि में विवाह शास्त्र विरुद्ध है ! : Yogesh Mishra

सनातन हिंदू धर्म में विवाह सोलह संस्कारों में से एक संस्कार है ! जिसे मुहूर्त के अनुसार दिन के उजाले में करना चाहिये ! किन्तु आपने प्राय: देखा होगा कि अब हिंदुओं के विवाह रात्रि के तमस निशा काल में हुआ करते हैं ! यह रात्रि के विवाह शास्त्र विरुद्ध हैं और उसी का परिणाम है कि अब दांपत्य जीवन के निर्वाह में तमस काल के अंतर्गत किया गया संस्कार जो पराया मुहूर्त विहीन होता है एक बाधा के रूप में आ रहा है !

वैसे सनातन शास्त्रों में विवाह की 8 पद्धतियां बताई गई है !

1. ब्रह्म विवाह
दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना ‘ब्रह्म विवाह’ कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज का ‘ब्रह्म विवाह’ का ही रूप है।

2. दैव विवाह
किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना ‘दैव विवाह’ कहलाता है।

3. आर्श विवाह
कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना “आर्श विवाह” कहलाता है|

4. प्रजापत्य विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना ‘प्रजापत्य विवाह’ कहलाता है।

5. गंधर्व विवाह
परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना ‘गंधर्व विवाह’ कहलाता है। दुष्यंत ने शकुन्तला से ‘गंधर्व विवाह’ किया था। उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम “भारतवर्ष” बना।

6. असुर विवाह
कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना ‘असुर विवाह’ कहलाता है।

7. राक्षस विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना ‘राक्षस विवाह’ कहलाता है।

8. पैशाच विवाह
कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना ‘पैशाच विवाह’ कहलाता है।

क्या कभी आपने सोचा है कि हिन्दुओं में रात्रि को विवाह क्यों होने लगे हैं, जबकि हिन्दुओं में रात में शुभकार्य करना अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि यह निशाचरी समय होता है ? रात को देर तक जागना और सुबह को देर तक सोने को राक्षसी प्रवृति बताया जाता है ! रात में जागने वाले को निशाचर कहते हैं ! केवल तंत्र सिद्धि करने वालों को ही रात्रि में हवन व यज्ञ की अनुमति है !

वैसे भी प्राचीन समय से ही सनातन धर्मी हिन्दू दिन के प्रकाश में ही शुभ कार्य करने के समर्थक रहे हैं ! तब हिन्दुओं में रात की विवाह की परम्परा कैसे पड़ी ?

दरअसल भारत में सभी उत्सव, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं संस्कार दिन में ही कियह जाते थे चूंकि यह सनातनी परम्परा है ! सीता और द्रौपदी का स्वयंवर भी दिन में ही हुआ था ! शिव विवाह से लेकर संयोगिता स्वयंवर (बाद में पृथ्वीराज चौहान जी द्वारा संयोगिता जी की इच्छा से उनका अपहरण) आदि सभी शुभ कार्यक्रम दिन में ही होते थे !

प्राचीन काल से लेकर मुगलों के आने तक भारत में विवाह दिन में ही हुआ करते थे ! मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत पर हमले करने के बाद ही, हिन्दुओं को अपनी कई प्राचीन परम्पराएं तोड़ने को विवश होना पड़ा था !

मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा भारत पर अतिक्रमण करने के बाद भारतीयों पर बहुत अत्याचार किये गये ! यह आक्रमणकारी हिन्दुओं के विवाह के समय वहां पहुंचकर लूटपाट मचाते थे ! अकबर के शासन काल में, जब अत्याचार चरमसीमा पर थे ! मुग़ल सैनिक हिन्दू लड़कियों को बलपूर्वक उठा लेते थे और उन्हें अपने आकाओं को सौंप देते थे !

भारतीय ज्ञात इतिहास में सबसे पहली बार रात्रि में विवाह सुन्दरी और मुंदरी नाम की दो ब्राह्मण बहनों का हुआ था, जिनकी विवाह दुल्ला भट्टी ने अपने संरक्षण में ब्राह्मण युवकों से कराया था !

उस समय दुल्ला भट्टी ने मुग़ल अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाये थे ! दुल्ला भट्टी ने ऐसी अनेकों लड़कियों को मुगलों से छुड़ाकर, उनका हिन्दू लड़कों से विवाह कराया था !

उसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों के आतंक से बचने के लिए हिन्दू रात के अँधेरे में विवाह करने पर मजबूर होने लगे ! लेकिन रात्रि में विवाह करते समय भी यह ध्यान रखा जाता है कि नाचना-गाना, दावत, जयमाला, आदि भले ही रात्रि में हो जाए लेकिन वैदिक मन्त्रों के साथ फेरे प्रातः पौ फटने के बाद ही हों !

पंजाब से प्रारम्भ हुई परंपरा को पंजाब में ही समाप्त किया गया !
फिल्लौर से लेकर काबुल तक महाराजा रंजीत सिंह का राज हो जाने के बाद उनके सेनापति हरीसिंह नलवा ने सनातन वैदिक परम्परा अनुसार दिन में खुले आम विवाह करने और उनको सुरक्षा देने की घोषणा की थी !
हरीसिंह नलवा के संरक्षण में हिन्दुओं ने दिनदहाड़े – बैंडबाजे के साथ विवाह शुरू किये !

तब से पंजाब में फिर से दिन में विवाह का प्रचालन शुरू हुआ ! पंजाब में अधिकांश विवाह आज भी दिन में ही होते हैं !

महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र, कर्नाटक, केरल, असम, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा एवम् अन्य राज्य भी धीरे धीरे अपनी जड़ों की ओर लोटने लगे हैं ! अतः इन प्रदेशों में दिन में विवाह होते हैं !

हरीसिंह नलवा ने मुसलमान बने हिन्दुओं की घर वापसी कराई, मुसलमानों पर जजिया कर लगाया, हिन्दू धर्म की परम्पराओं को फिर से स्थापित किया, इसीलिए उनको “पुष्यमित्र शुंग” का अवतार कहा जाता है !

सभी विवाह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त ब्रह्ममुहूर्त में ही संपादित कियह जाते हैं ! ध्रुवतारा को स्थिरता के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो ब्रह्ममुहूर्त में ही सबसे अच्छा दृष्टिगोचर होता है !

लेकिन साक्षी सूर्य के प्रतीक स्वरूप अग्नि को ही माना जाता है ! इसीलिए अग्नि के ही चारों ओर फेरे लिए जाने की विधि है !

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में रात्रि विवाह का पूर्ण खण्डन किया है ! पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार भी हिन्दू गायत्री परिवार में विवाह दिन में ही सम्पन्न कियह जाते हैं !

आज भी, हम भारत के लोग खासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बिहार के लोग जबकि 400 साल हो गये मुगल यहां से चले गये किन्तु आज भी उसे परंपरा मानकर उसे चला रहे हैं ! असल में हम गुलामी की मानसिकता से उबरना ही नहीं चाहते हैं !

आप सभी से विनम्र निवेदन है कि इस प्रथा पर आप सब एक बार अवश्य विचार करें एवं अपनी पुरानी धुरी पर अवश्य वापस लौटें !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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