भ्रम दूर करें । कुवारी कन्या भी कर सकती है शिवलिंग की पुजा । जरूर पढ़ें । ज्ञानवर्धक लेख ।

समाज में प्रचलित धारणा अनुसार शिवलिंग की पूजा सिर्फ पुरुष के द्वारा संपन्न होनी चाहिए न कि नारी के द्वारा। साथ ही विशेष रूप से यह भी मत है कि अविवाहित स्त्री को शिवलिंग पूजा से पूरी तरह से वर्जित है। जबकि शास्त्रों में ऐसे कुछ नहीं लिखा है। फिर ऐसा क्यों है कि कुछ लोग शिवलिंग की पूजा करने व उसे छूने से कुंवारी नारियों को रोकते हैं ।

शिवपुराण अनुसार शिवलिंग एक ज्योति का प्रतीक है। देवों के देव महादेव देवताओं में सबसे श्रेष्ठ देव हैं
 
शिव जिनको श्रावण का देवता कहा जाता हैं उन्हें श्रावण मास में भिन्न- भिन्न तरीकों से पूजा जाता हैं। पूरे माह शिव के धार्मिक उत्सव होते हैं शिव उपासना, व्रत, पवित्र नदियों में स्नान एवम शिव अभिषेक होते हैं । विशेष तौर पर सावन सोमवार को पूजा जाता हैं । कई महिलायें पूरा सावन महीना सूर्योदय के पूर्व स्नान कर उपवास रखती हैं। कुवारी कन्या अच्छे वर के लिए इस माह में उपवास एवम शिव की पूजा करती हैं । विवाहित स्त्री पति के लिए मंगल कामना करती हैं। भारत देश में पुरे उत्साह के साथ सावन महोत्सव मनाया जाता हैं।
हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीय को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती महिला गौरी शंकर की पूजा करती है।
श्रावण में पाँच अथवा चार सोमवार आते हैं जिनमे पूर्ण व्रत रखा जाता हैं । संध्या काल में पूजा के बाद भोजन ग्रहण किया जाता हैं। शिव जी की पूजा का समय प्रदोषकाल में की जाती हैं।
 
श्रावण का यह महीना स्त्री एवम पुरुषों दोनों के द्वारा अपने- अपने तरीकों द्वारा मनाया जाता हैं। भगवान शिव के भक्त कावड़ ले जाकर गंगा का पानी शिव की प्रतिमा पर अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। इसके अलावा सावन माह के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव पर जल चढ़ाना शुभ और फलदायी माना जाता है।
 
ऎसे में स्त्री को शिवलिंग की पूजा से वंचित करना न धर्म सम्मत है, न शास्त्र सम्मत। स्त्री को भी शिव उपासना का पूरा अधिकार है। जब भी हम उपासना करते हैं तब हम जीवात्मा होते हैं न कि स्त्री-पुरुष।
 
शिवपुराण में उल्लेख मिलता है कि देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व ही नहीं, अपितु ब्रह्मा-विष्णु तक इन महादेव की उपासना करते हैं। इस पुराण के अनुसार यह पुराण परम उत्तम शास्त्र है। इसे इस भूतल पर भगवान शिव का वाङ्मय स्वरूप समझना चाहिये और सब प्रकार से इसका सेवन करना चाहिये। इसका पठन और श्रवण सर्वसाधनरूप है। इससे शिव भक्ति पाकर श्रेष्ठतम स्थिति में पहुँचा हुआ मनुष्य शीघ्र ही शिवपद को प्राप्त कर लेता है।

 
इसलिये सम्पूर्ण यत्न करके मनुष्यों ने इस पुराण को पढ़ने की इच्छा की है- अथवा इसके अध्ययन को अभीष्ट साधन माना है। इसी तरह इसका प्रेमपूर्वक श्रवण भी सम्पूर्ण मनोवंछित फलों के देनेवाला है। भगवान शिव के इस पुराण को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है तथा इस जीवन में बड़े-बड़े उत्कृष्ट भोगों का उपभोग करके अन्त में शिवलोक को प्राप्त कर लेता है। यह शिवपुराण नामक ग्रन्थ चौबीस हजार श्लोकों से युक्त है।
 
परमपिता और जगदम्बा के समक्ष पहुंचने पर न हम स्त्री होते हैं न पुरुष। वहाँ देह का कोई संबंध नहीं होता सिवाय साधन के, यहाँ आत्मा से सीधा संबंध होता है यदि वास्तव में साधना कर रहे हों तब, अन्यथा जगत को दिखाने भर के लिए उपासना कर रहे होते हैं तब हम साधक की बजाय स्त्री और पुरुष के शरीर को ही देखते हैं।
 
स्त्री को आदिकाल से पुरुष से भी कहीं अधिक महत्त्व और सम्मान दिया गया है। यहाँ तक कि पुरुष के नाम की शुरूआत ही स्त्री वाचक नाम से होती थी। दुर्भाग्य से बीच का कालखण्ड ऎसा आ गया जिसने पौरुषी मानसिकता को आकार दे डाला और स्ति्रयों को दोयम दर्जा। जबकि स्त्री प्रथम है, उसके बाद पुरुष की अवधारणा।
 
जिस माँ के गर्भ में हम पल-बढ़कर बाहर निकले और आज मुकाम पाया है, वह अछूत या अस्पृश्य कैसे हो सकती है। हमारी बहन, पत्नी, सास, नानी-दादी, भुआ, मौसी, काकी, बिटिया, पौती, बहू, नातिन आदि हों या सभी प्रकार की स्ति्रयाँ, इन्हें भगवान की पूजा के मामले में अस्पृश्य कैसे माना जा सकता है।
स्त्री शक्ति का साक्षात प्रतीक है और इसकी अवहेलना कहीं भी नहीं की जानी चाहिए । जो लोग स्त्री को पूजा-पाठ से दूर रखना चाहते हैं उन्हें पण्डित नहीं धूर्त और पाखण्डियमानना चाहिये ऐसे लोगों को एक बार तसल्ली से धर्मग्रंथों का अध्ययन कर लेना चाहिए, जिससे अपने आप आँखें खुल जाएंगी।
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आद्यशंकराचार्य विरचित सौन्दर्य लहरी में तो पहला श्लोक ही भगवती को समर्पित है जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा है कि शक्ति से युक्त होने पर ही शिव शिव हैं, शक्ति के बिना कोई भी हिल-डुल तक नहीं सकता। यह भी कहा गया है – शक्ति विना महेशानि सदाहं शवरूपकः। अर्थात शक्ति के बिना शिव शव ही है। शिव में से ई कार को हटा दिया जाए तो शव ही शेष बचा रहता है।
 
श्रीविद्यासाधना में शिव और शक्ति को कामेश्वर-कामेश्वरी के युगल और आलिंगनबद्ध स्वरूप में प्रकटाया गया है। हमारे यहाँ अद्र्धनारीश्वर की उपासना का भी विधान रहा है। जहाँ शिव पूजा होती है, लघु रूद्र होता है वहाँ देवी की आराधना भी अनिवार्य है। इसी प्रकार जहाँ कहीं भगवती की पूजा होती है वहाँ शिवार्चन का होना भी अनिवार्य है।
 
शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पूजन में जलधारा से अभिषेक का विशेष महत्व है। अभिषेक का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना या कराना। शास्त्रों में अलग –अलग उद्धेश्य से अलग –अलग शिववास पर अलग –अलग शिवलिंग के पूजन प्रक्रिया का विधान है
 
मिश्री(चीनी) से बने शिव लिंग कि पूजा से रोगो का नाश होकर सभी प्रकार से सुखप्रद होती हैं।
मिर्च, पीपल के चूर्ण में नमक मिलाकर बने शिवलिंग कि पूजा से वशीकरण और अभिचार कर्म के लिए किया जाता हैं।
फूलों से बने शिव लिंग कि पूजा से भूमि-भवन कि प्राप्ति होती हैं।
जौं, गेहुं, चावल तीनो का एक समान भाग में मिश्रण कर आटे के बने शिवलिंग कि पूजा से परिवार में सुख समृद्धि एवं संतान का लाभ होकर रोग से रक्षा होती हैं।
 
किसी भी फल को शिवलिंग के समान रखकर उसकी पूजा करने से फलवाटिका में अधिक उत्तम फल होता हैं।
यज्ञ कि भस्म से बने शिव लिंग कि पूजा से अभीष्ट सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
यदि बांस के अंकुर को शिवलिंग के समान काटकर पूजा करने से वंश वृद्धि होती है।
दही को कपडे में बांधकर निचोड़ देने के पश्चात उससे जो शिवलिंग बनता हैं उसका पूजन करने से समस्त सुख एवं धन कि प्राप्ति होती हैं।
गुड़ से बने शिवलिंग में अन्न चिपकाकर शिवलिंग बनाकर पूजा करने से कृषि उत्पादन में वृद्धि होती हैं।
आंवले से बने शिवलिंग का रुद्राभिषेक करने से मुक्ति प्राप्त होती हैं।
कपूर से बने शिवलिंग का पूजन करने से आध्यात्मिक उन्नती प्रदत एवं मुक्ति प्रदत होता हैं।
 
यदि दुर्वा को शिवलिंग के आकार में गूंथकर उसकी पूजा करने से अकाल-मृत्यु का भय दूर हो जाता हैं। स्फटिक के शिवलिंग का पूजन करने से व्यक्ति कि सभी अभीष्ट कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं।
 
मोती के बने शिवलिंग का पूजन स्त्री के सौभाग्य में वृद्धि करता हैं।
स्वर्ण निर्मित शिवलिंग का पूजन करने से समस्त सुख-समृद्धि कि वृद्धि होती हैं।
चांदी के बने शिवलिंग का पूजन करने से धन-धान्य बढ़ाता हैं।
पीपल कि लकडी से बना शिवलिंग दरिद्रता का निवारण करता हैं।
लहसुनिया से बना शिवलिंग शत्रुओं का नाश कर विजय प्रदत होता हैं।
बिबर के मिट्टी के बने शिवलिंग का पूजन विषैले प्राणियों से रक्षा करता है।
पारद शिवलिंग का अभिषेक सर्वोत्कृष्ट माना गया है।
 
घर में पारद शिवलिंग सौभाग्य, शान्ति, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिए अत्यधिक सौभाग्यशाली है। दुकान, ऑफिस व फैक्टरी में व्यापारी को बढाऩे के लिए पारद शिवलिंग का पूजन एक अचूक उपाय है। शिवलिंग के मात्र दर्शन ही सौभाग्यशाली होता है। इसके लिए किसी प्राणप्रतिष्ठा की आवश्कता नहीं हैं। पर इसके ज्यादा लाभ उठाने के लिए पूजन विधिक्त की जानी चाहिए।

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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