संसार भगवान से नहीं विज्ञान से चलता है : Yogesh Mishra

प्राय: यह एक वैष्णव अवधारणा है कि यह संसार भगवान के बनाए नियमों से चल रहा है और जो व्यक्ति भगवान के बनाए नियमों का उल्लंघन करेगा वह नष्ट हो जाता है ! लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह देखा गया…
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प्राय: यह एक वैष्णव अवधारणा है कि यह संसार भगवान के बनाए नियमों से चल रहा है और जो व्यक्ति भगवान के बनाए नियमों का उल्लंघन करेगा वह नष्ट हो जाता है ! लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह देखा गया…
सभी वैष्णव धर्म शास्त्र कहते हैं कि ईश्वर के भरोसे जीवन नैया सकुशल पार हो जाती है लेकिन व्यवहारिकता की कसौटी पर कसने पर ऐसा पता चलता है कि ईश्वर का भरोसा एक अलग विषय है और संसार का लोक…
भगवान का दर्शन बहुत आसान है, बस व्यक्ति का चित्त कमजोर होना चाहिये ! इसीलिए वैष्णव भक्त लोग लंबे उपवास करके चित्त को कमजोर बना लेते हैं ! जिससे कि वह शास्त्रों के अनुरूप जो भी कल्पना कर चुके हैं…
अंग्रेजों द्वारा भारत से असली श्रीमद्भागवत गीता की पाण्डुलिपि चुरा ले जाने के बाद भारत में व्याप्त जन आक्रोश को दबाने के लिये इस दुनियां में पहली बार नकली श्रीमद्भागवत गीता का प्रकाशन भारतीयों के अल्प धार्मिक ज्ञान को देखते…
चित् वह है जो अपने को सब आवरणों से ढककर भी सदा अनावृत बना रहता है, सब परिवर्तनों के भीतर भी सदा परिवर्तनरहित बना रहता है ! उसमें प्रमाता प्रमेय, वेदक वेद्य का द्वैत भाव नहीं रहता, क्योंकि उसके अतिरिक्त…
‘तत्व’ का शाब्दिक अर्थ है, वास्तविक स्थिति, ययार्थता, वास्तविकता, असलियत ! ‘जगत् का मूल कारण’ भी तत्व कहलाता है, अर्थात तत्व ही है जिससे यथार्थ बना हुआ है ! वैष्णव सांख्य दर्शन के अनुसार 25 तत्व हैं जबकि शैव दर्शन…
हम आये दिन देखते हैं कि सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए पूरी दुनिया में तरह-तरह के षडयंत्र पिछले ढाई हजार वर्षों से किये जा रहे हैं ! विश्व की कई संस्कृतियों को इन षड्यंत्रकार्यों ने ख़त्म कर दिया…
सनातन ऋषि कहते हैं कि प्रकृति की व्यवस्था के तहत पुरुष आधा ही है और स्त्री भी समग्र नहीं है बल्कि वह भी प्रकृति के आधे अंग की ही स्वामिनी है ! यही मैथुनिक सृष्टि का आधार है ! न…
प्राय: हर आध्यात्मिक व्यक्ति यह चाहता है कि उसे एक योग्य गुरु मिले और वह गुरु उस व्यक्ति के अंदर शक्तिपात द्वारा अपनी ऐसी आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवेश कर दे, जो उस गुरु ने बहुत लंबे समय के तपस्या के…
लोग व्यर्थ ही अपना संपूर्ण जीवन पढ़ने-लिखने में नष्ट कर देते हैं ! अब विज्ञान भी इस बात को मानने के लिए तैयार हो रहा है कि इस ब्रह्मांड में व्याप्त समस्त ज्ञान मानव मस्तिष्क के अंदर पहले से ही…