प्राय: यह एक वैष्णव अवधारणा है कि यह संसार भगवान के बनाए नियमों से चल रहा है और जो व्यक्ति भगवान के बनाए नियमों का उल्लंघन करेगा वह नष्ट हो जाता है !
लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह देखा गया है कि वैष्णव कथावाचकों का तथाकथित भगवान भी इस दुनिया में विज्ञान के सहारे ही जीवन यापन कर सका और जब जब वैष्णव कथावाचकों के भगवानों ने विज्ञान का सहारा छोड़ा है ! तब तब वह या तो परेशान हो गये हैं या फिर नष्ट हो गये हैं !
फिर चाहे वह समुद्र मंथन का दौर हो या फिर भगवान राम को लंका विजय के लिये राम सेतु का निर्माण करना हो ! भगवान राम ने जब तक विज्ञान का सहारा लिया वह त्रिलोक विजयी रहे और जब भावुकता में उन्होंने विज्ञान का सहारा छोड़ दिया तो उन्हें सरजू नदी में कूदकर आत्महत्या करनी पड़ी !
इसी तरह कृष्ण ने भी अपने जीवन में जब तक विज्ञान का सहारा लिया, तब तक वह महाप्रतापी योद्धा रहे और जब नालायक औलादों के कारण तथा आयु बढ़ने पर वह विज्ञान की मदद लेने में असमर्थ हो गये तो लावारिस अवस्था में उनकी लाश एक पेड़ के नीचे प्राप्त हुई मिली थी !
सनातन धर्मी ऋषि-मुनियों ने भी जब तक विज्ञान का सहारा लिया तब तक सनातन धर्म निरंतर विकास की ओर बढ़ता रहा और जैसे ही काल के प्रभाव में सनातन धर्मी विज्ञान विमुख होकर भाग्य भरोसे और अवतारवादी हो गए वैसे ही सनातन धर्म का पतन शुरू हो गया और वह सनातन धर्म जो कभी पूरी दुनिया में फैला था ! आज वह मात्र भारत के कुछ हिस्से में ही सीमित रह गया है !
अर्थात मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि संसार में सफलता के लिए किसी ईश्वर या भगवान की आवश्यकता नहीं है बल्कि विज्ञान के व्यवहारिक ज्ञान की आवश्यकता है !
आज भारत की असफलता का यही रहस्य है कि भारत के आम आवाम ने वैष्णव कथा वाचकों के प्रभाव में धर्म के वैज्ञानिक स्वरूप को त्याग कर अवतारवाद की अव्यवहारिक अवधारणा को अपना लिया और सनातन समाज ईश्वर और भाग्यवादी हो गया !
इसीलिए आज सनातन धर्म का पतन नित्य होता जा रहा है तथा दुनियां में जिन लोगों ने विज्ञान का सहारा लिया है ! वह निरंतर संसार में प्रभावशाली होते चले जा रहे हैं और सनातनधर्मी उनके आगे निर्वाह की भीख मांग रहे हैं !
इसका मतलब यह है कि संसार भगवान से नहीं विज्ञान से चलता है !!