‘तत्व’ का शाब्दिक अर्थ है, वास्तविक स्थिति, ययार्थता, वास्तविकता, असलियत ! ‘जगत् का मूल कारण’ भी तत्व कहलाता है, अर्थात तत्व ही है जिससे यथार्थ बना हुआ है !
वैष्णव सांख्य दर्शन के अनुसार 25 तत्व हैं जबकि शैव दर्शन के अनुसार सृष्टि का निर्माण 36 तत्वों से हुआ है !
सांख्य दर्शन में मान्यता प्राप्त 25 तत्व निम्नलिखित हैं ! पुरुष, प्रकृति, महत्व (बुद्धि), अहंकार, चक्षु, कर्ण, नासिका, जिह्वा, त्वक्, वाक्, पाणि, पायु, पाद, उपस्थ, मल, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश !
मूल प्रकृत्ति से शोष तत्वों की उत्पत्ति का क्रम इस प्रकार है ! प्रकृति से महत्व (बुद्धि) से अहंकार, अहंकार से ग्यारह इंद्रियाँ (पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पाँच कर्मेंद्रियाँ और मन) और पाँच तन्मात्र, पाँच तन्मात्रों से पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, आदि) हैं ! प्रलय काल में यह सब तत्व फिर प्रकृति में उत्पत्ति क्रम से ही विलीन हो जाते हैं !
अष्टांग योग में ईश्वर को और मिलाकर कुल 26 तत्व माने गये हैं ! सांख्य के ‘पुरुष’ से योग के ईश्वर में विशेषता यह है कि योग का ईश्वर क्लेश, कर्मविपाक आदि से पृथक् माना गया है !
जबकि शैव दर्शन में ऐसी मान्यता है कि इस पूरी सृष्टि के रचना 36 तत्त्वों से हुई है ! इनको तीन मुख्य भागों द्वारा समझ सकते हैं- (1)शिवतत्व, (2) विद्यातत्व और (3) आत्मतत्व !
शिवतत्व में शिवतत्व और शक्तितत्व का अंतर्भाव है ! परम शिव प्रकाश विमर्शमय हैं ! इसी को प्रकाशरूप को शिव और विमर्शरूप को शक्तितत्व कहते हैं !
पूर्ण अकृत्रिम अहं (मैं) की स्फूर्ति को विमर्श कहते हैं ! यही स्फूर्ति विश्व की सृष्टि, स्थिति और संहार के रूप में प्रकट होती है ! बिना विमर्श या शक्ति के शिव को अपने प्रकाश का ज्ञान नहीं होता ! शिव ही जब अंतःस्थित अर्थ तत्व को बाहर करने के लिये उन्मुख होते हैं तो वह ही शक्ति कहलाते हैं ! यही शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप है !
विद्यातत्व में तीन तत्वों का अंतर्भाव है ! सदाशिव, ईश्वर और सद्विद्या ! सदाशिव शक्ति के द्वारा शिव की चेतना अहं और इदं में विभक्त हो जाती है ! परंतु पहले अहमंश स्फुट रहता है और इदमंश अस्फुट रहता है !
अहंता से आच्छादित अस्फुट इदमंश की अवस्था को सद्विद्या या शुद्धविद्यातत्व कहते हैं ! इसमें क्रिया का प्राधान्य रहता है ! शिव का परामर्श है ‘अहं’ ! सदाशिव तत्व का परामर्श है ‘अहंमिदम्’ ! ईश्वरतत्व का परामर्श है ‘इदमहं’ !
शुद्धविद्यातत्व का परामर्श है ‘अहं इदं च’ ! यहां तक ‘अहं’ और ‘इदं’ में अभेद रहता है !
आत्म तत्व में 31 तत्वों का अंतर्भाव है ! इसके अतिरिक्त माया, कला, विद्या, राग, काल, नियति, पुरुष, प्रकृति, बुद्धि, अहंकार, मन, श्रोत्र; त्वक, चक्षु, जिह्वा, घ्राण (पंचज्ञानेंद्रिय), शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध (पंच तन्मात्राएं), आकाश, वायु, तेज (अग्नि), आप (जल), भूमि (पंचभूत) !
माया ही अहं और इदं को पृथक कर देती है ! यहीं से भेद-बुद्धि प्रारंभ होती है ! अहमंश पुरुष हो जाता है और इदमंश प्रकृति ! माया की पांच उपाधियां हैं, कला, विद्या, राग, काल और नियति !
‘कंचुक’ (आवरण) कहते हैं, क्योंकि ये पुरुष के स्वरूप को ढक देते है ! इनके द्वारा पुरुष की शक्तियां संकुचित या परिमित हो जाती हैं ! इन्हीं के कारण जीव परिमित प्रमाता कहलाता है !
शांकर वेदांत और त्रिक्दर्शन की माया एक नहीं है ! वेदांत में माया आगंतुक के रूप में है जिससे ईश्वरचैतन्य उपहित हो जाता है ! इस दर्शन में माया शिव की स्वातंर्त्यशक्ति का ही विजृंभण मात्र है, जिसके द्वारा वह अपने वैभव को अभिव्यक्त करता है !
इस प्रकार 36 तत्व शिव जीवन दर्शन का आधार हैं ! जो शिव में सत्य को प्रगट करते हैं !!