सनातन जीवन शैली में व्यक्ति भगवान को प्रसाद लगा कर ही उसी प्रसाद का भोजन करता था ! इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि व्यक्ति शुद्धता के साथ भोजन बनता था और वही खाता था जो भगवान को खिलाया जा सके ! अर्थात मांसाहार, शराब, विदेशी भोजन आदि से व्यक्ति स्वत:अलग हो जाता था !
क्योंकि मनुष्य जो कभी प्राचीन काल में विशुद्ध मांसाहारी था ! उनमें से बहुत से ज्ञान बढ़ने के साथ साथ विशुद्ध शाकाहारी हो गये ! अतः फल और सब्जियाँ मनुष्य का प्राकृतिक आहार हो गया है ! जितना कम पकाया जाये या बिल्कुल न पकाया जाये उतना अच्छा ! यदि टमाटर, गोभी, कटहल आदि देर से पचाने वाले फल सब्जी को त्याग दें तो अच्छा है ! जो वैदिक यज्ञ के अनुसार स्वीकार फल और सब्जियाँ हैं वह सभी “हविष्यान्न” के अन्तर्गत आती हैं ! बशर्ते गाय के दूध-घी के अलावा भैंस का दूध-दही-घी और कोई भी आयोडीन नमक,रिफायंड तेल, मैदा, मिर्च-मसाला भी त्याग दिया जाये तो और भी अच्छा है !
जब ऐसा सात्विक भोजन जप-तप सहित किया जाये तो यज्ञ के तुल्य फल देता है और ग्रह शान्ति में सहायक बनता है ! बशर्ते शुद्धता से पकायें और दूषित संस्कारों वाले व्यक्ति को चूल्हा न छूने दें ! अरवा चावल! मसूर के सिवा अन्य दालें! गेंहूँ या जौ का आटा ! आदि भी हविष्यान्न के अंतर्गत आता है !
बिना बाहरी जल दिये धीमी आँच पर सब्जी इस तरह पकाई जाये कि भाप कम से कम बाहर जाये तो स्वाद नष्ट नहीं होता ! यदि ऐसे खेत की सब्जी और चावल आपको उपलब्ध हो सके जिसमें कभी भी कृत्रिम खाद नहीं पड़ा हो तो ऐसा स्वाद और सुगन्ध मिलेगा जो किसी मसाले में सम्भव नहीं है ! साथ ही भरपूर पौष्टिकता और प्राकृतिक गुणों से पूरित ! जो रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाएगी और औषधि का कार्य करेगी ! यही कारण है कि प्राचीन ग्रन्थों में अन्न एवं सब्जी को भी “औषधि” माना जाता था !
लगातार हविष्यान्न के आहार का फल यह है कि मुझे आज तक कोई दवा नहीं लेनी पड़ती है और कभी भी कोई रोग नहीं हुआ ! हविष्यान्न सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद वर्जित है ! यदि स्पष्ट मध्याह्न के बाद और सूर्यास्त से पहले ऐसा भोजन प्रतिदिन केवल एक बार ही किया जाये तो यह “एक भुक्त व्रत” कहलाता है जो सर्वोत्तम व्रत है ! जिससे गलत विचार नहीं आते हैं अत: वर्तमान और पिछले जन्मों के पाप कट जाते हैं ! वैदिक संस्कारों में हविष्यान्न अनिवार्य है ! जैसे कि उपनयन ! विवाह ! श्राद्ध आदि !
गीता में वैष्णव को अग्निदेव को समस्त भोजन अर्पित करने का आदेश दिया गया है ! जिसका अर्थ हविष्यान्न ही है ! क्योंकि वैदिक धर्म में देवों को केवल हविष्यान्न ही अर्पित किया जा सकता है ! कलियुग में कई लोगों ने यज्ञ में हिंसा भी आरम्भ कर दी और मांस खाने लगे ! वैश्वानर अग्निदेव को समस्त भोजन अर्पित करने का यह भी अर्थ है कि स्वयं खाने का भ्रम न पालें क्योंकि आत्मा दर्शक है जो भोक्ता होने का भ्रम तो पाल सकता है परन्तु खा नहीं सकता ! ऐसा भोजन आत्मज्ञान में सहायक है ! यही कारण है कि वैश्वानर अग्निदेव को समस्त भोजन अर्पित करने के स्थान पर जो स्वयं खाता है वह पापी पाप ही खाता है ! (-गीता)!
बहुत से लोग जैविक कृषि के पक्ष में होते जा रहे हैं ! अमेरिका के बड़े-बड़े होटलों और सेठों ने अफ्रीका और लातीनी अमेरिका में बड़े-बड़े फार्म खरीदे हैं ! जहाँ वह बिना रासायनिक खादों के खेती की जाती है ! क्योंकि ऐसे खेतों की फसलों का स्वाद वह जान चुके हैं !
कृत्रिम खादों का दीर्घकालीन प्रभाव डी.एन.ए पर कैसा पड़ता है ! इस पर अभी वैज्ञानिकों ने कोई आंकड़ें सार्वजनिक नहीं किये हैं ! जिस प्राकृतिक वातावरण में मानवीय डी.एन.ए उद्भूत हुआ था ! उससे हम दूर होते जा रहे हैं तो परिणामत: हमारा एक्सटिंक्शन नजदीक आता जा रहा है ! जिससे हम शीघ्र ही स्वत:नष्ट हो जायेंगे ! यदि इस सत्य का 100% पालन सम्भव नहीं है ! तो अधिकाधिक सम्भव पालन करना चाहिये ! टालना नहीं चाहिये !