अपने पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार जन्मकालिक विशिष्ट ग्रह स्थितियां में व्यक्ति का जन्म होता है | जिस विशिष्ठ ग्रह स्थिती के अनुसार गणना द्वारा ज्योतिष के जानकर आपके भाग्य के लाभों का निर्धारण करते हैं | किन्तु ऐसा बहुत कम देखने में आता है कि व्यक्ति के भाग्य में जो लिखा है वह उसे पूरा का पूरा मिल जाए | भाग्य अथवा कुंडली कहती है कि संतान होगी, फिर भी कुछ लोग संतानहीन ही रह जाते हैं, कुंडली कहती है २२ साल में विवाह होगा किन्तु ३० साल में भी विवाह नहीं हो पाता है, भाग्य कहता है कि सरकारी नौकरी या नौकरी के प्रबल योग २५ साल में हैं किन्तु व्यक्ति ३५ साल में भी बेरोजगार होता है, कुंडली कहती है व्यक्ति के भाग्य में राजयोग है पर वह चपरासी की स्थिति में जीवन जीने के लिये विवश है | ऐसा अक्सर देखने में आता है |
इसका सीधा मतलब है कि जो व्यक्ति के भाग्य में लिखा है वह उसे पूरा कम ही मिल पाता है अर्थात भाग्य अंश की प्राप्ति में कमी हो जाती है | इसके साथ ही यह भी देखा जाता है कि प्राय: व्यक्ति को भाग्य से अधिक भी नहीं मिल पाता है | कहावत भी है समय से पहले भाग्य से ज्यादा ,किसी को कुछ भी नहीं मिलता है, अर्थात भाग्य से ज्यादा मिलेगा ही नहीं, पर कम जरुर मिल सकता है | ऐसा क्यों होता है ?
यदि इसके कारणों का विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि इसका कारण “नकारात्मक चिन्तन” जो मिलने वाले भाग्य में अवरोधक बन कर उसमें कमी कर देता है | उदाहरण के लिये आज आपको किसी व्यक्ति से एक लाख रुपये मिलने हैं, उसमे से आपका १० हजार रुपये का लाभ है |
आलस्यवश आप उसे टाल देते हैं कि बाद में ले लेंगे | आज आपके भाग्य में वह लाभ था किन्तु नकारात्मक ऊर्जा से उत्पन्न आलस्य ने आपको आज उस लाभ को प्राप्त करने से रोक दिया और फिर अवसर बीत जाने के बाद वह धन आपको प्राप्त नहीं हुआ | यह एक छोटे से नकारात्मक निर्णय ने आपके भाग्य में अवरोध उत्पन्न कर दिया | यही है वह नकारात्मकता जो आपके भाग्य के अंश में कमी कर देता है |
आज किसी का इंटरव्यू है ,उसके भाग्य में नौकरी है, जो कागज इंटरव्यू में ले जाने हैं वह लापरवाही वश रख देने से मौके पर नहीं मिल रहे हैं, भाग्य में लिखी नौकरी हाथ से निकल गयी, यह नकारात्मक उर्जा है जो आपके उन्नति में अवरोधक बन गयी है |
भाग्य में संतान लिखी थी, पर नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में आकर हम अपनी मौज मस्ती के लिये गलत संसाधनों का प्रयोग कर उस अवसर को टाल देते हैं जिससे बाद में कुछ ऐसी कमी उत्पन्न हो गयी कि संतान हो ही नहीं रही है | फिर हम जीवन भर सन्तान प्राप्ति के लिये परेशान होकर धन और समय बर्बाद करते रहते हैं |
इस तरह अपने ही कारण से भाग्य में होने वाली कमी को ही हम पूजा-पाठ, साधना-अनुष्ठान, द्वारा से ठीक करते हैं न कि भाग्य में जो नहीं है उसे प्राप्त कर लेते हैं |
99.9% लोग भाग्य नहीं बदल सकते ,यद्यपि भाग्य बदलना असंभव नहीं है, किन्तु इसके लिए साधना के बहुत उच्च स्तर पर जाना होता है जो संस्कारवश अधिकतर लोगों के लिए संभव नहीं है और जो लोग साधना द्वारा भाग्य को बदलने की क्षमता प्राप्त कर लेते हैं उनके लिए भाग्य का महत्व ही ख़त्म हो जाता है | प्रकृति उन साधकों के इशारे पर चलने लगती है |
पृथ्वी के वातावरण में अर्थात सतह पर कुछ नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होता हैं, जो कहीं अधिक कहीं कम होता है | ज्योतिष की समस्त विवेचना इनके सामान्य प्रभाव के आधार पर होती है जबकि जहाँ नकारात्मक प्रभाव अधिक होते हैं, वहां ग्रहों के सामान्य प्रभाव में परिवर्तन आ जाता है | जिसे कुलदेवी / देवता दोष, ईष्ट नाराजगी, वास्तु दोष, गलत जीवनचर्या दोष, किये-कराये (जादू टोना) का दोष, पित्र दोष, आदि आदि कहा जाता है |
इन सभी दोषों से मुक्ति के लिये सही इष्टदेव की सही ढंग से दैनिक पूजा-आराधना अवश्य करनी चाहिये | भले १० मिनट ही करें पर पूरी एकाग्रता से करें |
जिससे धनात्मक और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो, नकारात्मकता दूर रहे, तभी भाग्य का लिखा पूरा मिल पायेगा | इसके लिये यदि आवश्यक होतो किसी गुरु या योग्य व्यक्ति से मार्गदर्शन लेने में संकोच नहीं करना चाहिये |