सामान्यतया व्यक्ति यथा स्थिती वादी होता है और उसकी यह सोच होती है कि उसने अपने पिछले जीवन में जिस अनुभव के आधार पर अपना जीवन यापन किया है ! आगे का जीवन भी उसी पद्धति से निर्वाह होता रहेगा !
इसका सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव यह पड़ता है कि व्यक्ति परिवर्तन को स्वीकार करने की इच्छा छोड़ देता है और जिस स्थिति में जैसे वह जीता चला आ रहा है ! उसी स्थिति में वह आगे के जीवन को भी जीना चाहता है !
लेकिन तकनीक और विज्ञान के इस युग में ऐसा संभव नहीं है ! पहले व्यक्ति वस्तु के बदले वस्तुओं का आदान प्रदान करता था ! फिर मुद्रा की खोज होने के साथ ही हर वस्तु का मूल्यांकन किया जाने लगा और वस्तु का विनमय मुद्रा के माध्यम से होने लगा !
जिसके परिणाम स्वरूप लाभ-हानि की अवधारणा विकसित हुई और हर व्यक्ति अपने को लाभ में ही रखना चाहता है ! अतः सामान्य वस्तु विनमय को एक संगठित व्यवसाय का स्वरूप मिला ! उसी का परिणाम है कि आज बड़े बड़े उद्योग घराने हमारे समाज में विकसित हुये हैं !
किंतु मुद्रा का वह सामान्य स्वरूप जो कभी ईट पत्थर के आदान-प्रदान से शुरू हुआ था ! वह मूल्यवान धातु में बदला और धातु के बाद फिर कागज के नोटों का दौर आया !
अब कागज के नोट भी विलुप्त हो रहे हैं और व्यक्ति डिजिटल लेन-देन में अपना कार्य कर रहा है !
किंतु यह सब पुराने और बुजुर्ग व्यक्तियों को पसंद नहीं आता है क्योंकि आधुनिक तकनीक को समझने मैं उनकी कोई रुचि नहीं है !
इसलिये परिवर्तन के इस नये दौर में इन बुजुर्ग व्यक्तियों को यदि जबरदस्ती बलपूर्वक आधुनिक तकनीकी की तरफ नहीं लाया गया तो यह लोग अभी भी पुराने कागज के नोटों से ही अपना काम चला लेना चाहते हैं !
यही विचारधारा युद्ध का कारण है क्योंकि जो समाज अपने अंदर आधुनिक तकनीकी के अनुरूप परिवर्तन नहीं करता है ! वह विज्ञान की दृष्टि में पिछड़ा रह जाता है और तब वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अधिक विकसित राष्ट्र, समाज या व्यक्ति उस पिछड़े हुये व्यक्ति, समाज या राष्ट्र पर अपना कब्जा कर लेना चाहता हैं !
यह दृष्टिकोण ही युद्धों को जन्म देता है और इसी तरह के अनिवार्य युद्ध व्यक्ति को अपने अंदर परिवर्तन करने के लिये बाध्य कर देते हैं ! इसलिये यदि युद्धों को त्यागना है तो आधुनिक तकनीक और विज्ञान के साथ अपने आप को जोड़कर विकास की परंपरा का हिस्सा बनना पड़ेगा !
जिन देशों के नागरिकों ने आधुनिक तकनीक और विज्ञान को अपनाया और उसे विकसित किया है ! आज कोई भी देश उन राष्ट्रों पर युद्ध नहीं थोपता है ! चाहे आकर और जनसंख्या में वह राष्ट्र छोटे ही क्यों न हों ! अन्यथा युद्ध का क्रम जो मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही शुरू हुआ था और मनुष्य के अंत का कारण भी यही युद्ध ही बनेगा !