रक्षाबंधन मात्र भाई बहन का त्यौहार नहीं है
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रक्षा बंधन का त्यौहार सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है |आर्य परंपरा के अनुसार रक्षा बंधन ब्राह्मणों का ,विजयदशमी क्षेत्रीयों का , दीपावली वैश्यों का तथा होली शूद्रों का त्यौहार है | मुगलों के आने के पूर्व आर्यावर्त में इस दिन ब्राह्मण अपने जजमानों के रक्षार्थ सनातन वैदिक वैज्ञानिक पद्धति द्वारा मंत्र शक्ति से तैयार किया हुआ रक्षाकवच बनाते व पहनते थे,
जिससे वर्ष भर जजमान के धन, यश, प्रतिष्ठा व शत्रुओं से रक्षा होती थी किन्तु ओरंगजेब जैसे कठोर मुग़ल शासकों के शासनकाल में जब सनातन संस्कृति का पतन हुआ और आर्य परंपरायें टूटने लगी तो ब्राह्मणों के विकल्प में छोटी कन्याओं ने स्थान ग्रहण कर लिया और धीरे –धीरे यह भाई बहनों के त्योहार में परिवर्तित हो गया जबकि भाई बहनों का त्योहार भैया दूज है |
रक्षाबंधन का वर्णन आर्य ग्रंथो में स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। जब दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थ्रना की। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे।
गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश, पातालऔर धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकानाचूर कर देने के कारण यह त्योहार ‘बलेव‘ नाम से भी प्रसिद्ध है।
[कहते हैं कि जब बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मीजी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।इसी प्रकार भविष्योक्त पुराण में वर्णन है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। देवराज इन्द्रघबरा कर देव गुरु बृहस्पति के पास गये। तब देव गुरु बृहस्पति की सलाह पर इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी ने उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर के अपने पति के हाथ पर बांध दिया। वह सावन पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।
विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भागवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिए फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
रक्षा बंधन त्यौहार बहुत पहले से चला आ रहा है | अब इसका स्वरुप बदल गया है, अब इसे केवलभाई-बहन का त्यौहार के रूप में प्रचारित किया जाता है | जबकि कोई भी स्त्री राखी अपने भाई, पिता अथवा अपने पति को भी बाँध सकती है |
रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं परंतु ब्राहमणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित संबंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बांधी जाती है।
रक्षा बंधन के पर्व की वैदिक विधि
वैदिक रक्षा सूत्र (राखी )बनाने की विधि :
इसके लिए ५ वस्तुओं की आवश्यकता होती है
(१) दूर्वा (घास)
(२) अक्षत (चावल)
(३) केसर
(४) चन्दन
(५) सरसों के दाने ।
इन ५ वस्तुओं को रेशम के कपड़े में लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर दें, फिर उसे कलावा में पिरो दें, इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी ।
इन पांच वस्तुओं का महत्त्व –
(१) दूर्वा – जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से फैलता है और हज़ारों की संख्या में उग जाता है, उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमे सदगुणों का विकास तेज़ी से हो । सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बढ़ती जाए ।
दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन का सभी विघ्नों को विघ्नहर्ता गणेश हर लें ।
(२) अक्षत – हमारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत न हो सदा अक्षत रहे ।
(३) केसर – केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, वह तेजस्वी हो । उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो ।
(४) चन्दन – चन्दन की प्रकृति तेज होती है और यह सुगंध देता है । उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो । साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे ।
(५) सरसों के दाने – सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत मिलता है किसमाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें ।
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम भगवान चित्र पर अर्पित करें । फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे ।रक्षा बंधन को केवल भाई बहन का त्यौहार कहना उचित नहीं है, इसको कोई भी स्त्री किसी भी पुरुष को उसकी रक्षा के लिए बांध सकती है |
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं हम पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सुखी रहते हैं ।
राखी बाँधते समय बहन यह मंत्र बोले –
“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: |
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल ||”
शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बाँधते समय –
‘अभिबन्धामि ‘ के स्थान पर ‘रक्षबन्धामि’ कहे |
इस दिन बहन अपने भाई को मिठाई अवश्य खिलाये मिठाई लेते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें की चाकलेट मिठाई नहीं है | कृपया भारतीय त्यौहार को भारतीय मिठाई से मनाएं अगर आप सक्षम न हो तो गुड खिलाएं |