संन्यास का तात्पर्य पलायन नहीं है | सहज सन्यासी एक स्वतंत्र रूप से विकसित मनुष्य है जो किसी भी सामाजिक या धार्मिक बंधनों में बंध कर अपने व्यक्तित्व का विनाश नहीं करता है | आज हमारे समाज में “धर्म और समाज की मान्यताएं” इतनी हावी हो गई है कि वह मनुष्य का मूल्य व्यक्तित्व ही नष्ट कर दे रहीं हैं |
सन्यास का तात्पर्य धर्म और समाज की मान्यताओं से ऊपर उठकर ईश्वर द्वारा प्रदत्त अपने मूल व्यक्तित्व को विकसित करना है | यहां न कोई अपना है, न कोई पराया है, न कोई कार्य संभव है और न ही कोई कार्य असंभव है | जो भी कुछ है वह सब कुछ ईश्वर की इच्छा के निमित्त है |
प्रकृति हमें जिस दिशा की ओर ले जाना चाहती है | हम सहज ही उसके साथ उस दिशा की ओर चल देते हैं | उसमें किसी भी लाभ या हानि की गणित नहीं लगाते हैं क्योंकि ईश्वर द्वारा प्रदत्त संभावनाओं को तलाशने में कोई गणित कार्य नहीं करती है | ईश्वर किस से क्या कराना चाहता है यह वही जानता है | इसलिए यदि ईश्वर आपको अपने निर्देश पर कही ले जाना चाहता है, तो आप समाज या धर्म की हठधर्मिता के कारण रुकिए मत | बल्कि उस ईश्वर के निर्देश का पालन करते हुये निरंतर आगे बढ़ते रहिये | निश्चित तौर से ईश्वर आपसे कोई एक बहुत बड़ा कार्य करवाना चाहता है |
आज समाज बदल चुका है | जिस समाज की हम चिंता कर रहे हैं वह वास्तव में मात्र कुछ व्यक्तियों की भीड़ है | जो आपसे अपने किसी न किसी स्वार्थ के कारण जुड़ी हुई है | यदि आप उनके आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं तो वह आपका सम्मान करेंगे और यदि आप उनकी आवश्यकताओं को पूर्ति करने में सक्षम नहीं हैं तो वह आपकी तरफ ध्यान भी नहीं देंगे |
यही स्थिति कमोबेश धर्म की है | बड़े-बड़े धर्माचार्य आज समाज के अंदर लोगों को लुभाने के लिए धार्मिक कार्य कर रहे हैं और उनकी सदैव निगाह रहती है कि समाज के संपन्न वर्ग को कैसे हम अपनी और आकर्षित करें | जिससे हमें आर्थिक लाभ प्राप्त हो |
समाज के विकसित वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए वह ईश्वर के नाम पर झूठ का प्रपंच रचते हैं | जिसमें फंसकर मनुष्य अपना संपूर्ण व्यक्तित्व ही नष्ट कर देते हैं | इसलिए यदि ईश्वर प्रदत्त अपने मौलिक व्यक्तित्व को विकसित करना है, तो सर्वप्रथम धर्म और समाज की मान्यताओं को त्याग कर विवेकशील तरीके से “सहज सन्यासी” बनिये |
“सहज सन्यासी” बनने के लिए कोई जरूरी नहीं है कि आप अपना परिवार त्याग कीजिये या नौकरी छोड़ दीजिए | “सहज सन्यासी” बनने के लिए अपने जीवकोपार्जन के कार्य को कभी भी बन्द मत कीजिये और न कभी अपने कर्तव्य से भागिये |
और यह कोई आवश्यक नहीं निरंतर भगवान की आराधना के लिये माला जप आदि करते रहिये | “सहज सन्यासी” होने का तात्पर्य बस सिर्फ इतना है कि ईश्वर आपको जिस रुप में जो कुछ दे रहा है उसे उसी रुप में स्वीकार कीजिये | अपना संपूर्ण जीवन ईश्वर की इच्छा के निमित्त कर दीजिए और अपने कर्तव्यों का पालन करते रहिये | कर्तव्य या समाज से पलायन करने वाला कभी भी सन्यासी नहीं हो सकता है |