( अध्ययन हीन व्यक्ति इस लेख को न पढ़ें)
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा बलपूर्वक राम को मर्यादा पुरुषोत्तम घोषित किया गया था ! क्योंकि गोस्वामी तुलसीदास एक राम भक्त कथावाचक कवि थे ! यही इनका पैतृक व्यवसाय था !
और रामकथा ही उनके जीविकोपार्जन का साधन भी था ! वह ब्राह्मण कुल से थे और राम कथा उनके यहां पीढ़ियों से की जाती थी ! जिस परिवार में उनका विवाह हुआ था, वहां भी रामकथा का कथा वाचन ही आय का मुख्य साधन था !
इस तरह गोस्वामी तुलसीदास की यह सार्वजनिक मजबूरी थी कि वह अपने जीवकोपार्जन के लिये राम के चरित्र को बढ़ा चढ़ा कर मर्यादा पुरुषोत्तम रूप में प्रगट करें !
इसीलिए कई स्थान पर रामचरितमानस में बाल्मीकि रामायण के कई महत्वपूर्ण तथ्यों को छोड़ दिया गया है !
शायद यही वजह थी कि गोस्वामी तुलसीदास को जन विरोध के कारण अयोध्या छोड़ कर काशी आकर बसना पड़ा और अपने जीवन निर्वाह के लिए काशी नरेश का आश्रय स्वीकार करना पड़ा !
इसलिए रामचरितमानस को प्रमाण नहीं माना जा सकता ! फिर भी भगवान श्री राम के जीवन की व्याख्या करते हुए दो प्रमाणिक ग्रंथ प्रमाण के तौर पर सर्व स्वीकार्य है !
एक उनके ही समकालीन लेखक महर्षि बाल्मीकि द्वारा लिखी गयी रामायण और दूसरा महान विचारक एवं लेखक श्री वेदव्यास जी द्वारा लिखा गया ग्रन्थ महाभारत !
जिसमें उन्होंने अपने महाभारत नामक अद्भुत ग्रंथ में 700 श्लोक भगवान श्रीराम को समर्पित किए हैं !
इन्हीं दोनों के आधार को लेकर मैं अपने इस लेख को पूरा कर रहा हूं !
रावण की हत्या के उपरांत जब राम वापस अयोध्या आए और उन्होंने राजपाट की जिम्मेदारी संभाल ली ! तब एक चर्चा में सीता ने राम को धन्यवाद देते हुए कहा कि आपने मेरे लिए इतने सशक्त व्यक्ति से युद्ध किया !
तब राम ने सीता को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह युद्ध मैंने अपने कुल की मर्यादा के रक्षा के लिए लड़ा था, न कि तुम्हारे लिए !
ठीक इसी तरह महाभारत में भी प्रसंग आता है कि सीता ने जब राम को युद्ध विजय के लिए धन्यवाद दिया, तब राम ने कहा कि युद्ध मैंने अपने कुल की मर्यादा के लिए लड़ा था ! तुम्हारी स्थिति तो ठीक वैसी ही है “जैसे एक घी से भरे हुए हांडी को यदि कुत्ता चाट जाए तो वह घी व्यर्थ हो जाता है !”
अर्थात गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा राम को जिस तरह मर्यादा पुरुषोत्तम रूप में प्रकट किया गया, यह उनका यथार्थ रूप नहीं था बल्कि एक कवि की कल्पना है ! राम कुशल राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, रणनीतिकार, कुल की मर्यादा का ध्यान रखने वाले एक सफल राजा थे !
लेकिन अपनी पत्नी, अपने बच्चे, अपने भाई लक्ष्मण आदि के प्रति जो उनका व्यवहार था ! जिसका वर्णन जगह-जगह बाल्मीकि रामायण और महाभारत में मिलता है ! उसके आधार पर राम को मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं कहा जा सकता है !!