भारत जैसे आध्यात्मिक पृष्ठभूमि वाले देश की तथाकथित आजादी के बाद देश के नागरिकों के हितों को ध्यान में न रखते हुए तत्कालीन देश के राजनीतिक नेताओं ने भारत के संविधान को लागू करने के साथ-साथ भारत के संदर्भ में कई कानूनी भ्रम पैदा किये !
उसमें सबसे बड़ा कानूनी भ्रम यह था कि भारत अब आजाद हो गया है और भारत की शासन व्यवस्था चलाने के लिए भारतीय संविधान का निर्माण भारतीय राजनेताओं द्वारा किया जा रहा है और इस संविधान के लागू होते ही देश का “स्वाभिमान और संप्रभुता” तत्काल प्रभाव से राष्ट्रहित में लागू हो जाएगी !
किंतु सच यह था कि जो लोग देश के संविधान का निर्माण कर रहे थे या जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा देश की सत्ता सौंपी गई थी यह दोनों ही लोग न तो भारतीयों द्वारा निर्वाचित थे और न ही इन भारतीय नेताओं की भारतीय नागरिकों के साथ कोई हमदर्दी थी !
संविधान के निर्माण करने में संविधान निर्मात्री सभा में जिन लोगों का चयन अंग्रेजों द्वारा किया गया था ! वह सभी लोग या तो किसी ऐसे राजघराने से संबंध रखते थे, जो सदियों से अंग्रेजों के गुलाम थे और अंग्रेजो के रहमों करम पर अपने राजसत्ता को जिंदा बनाए हुए थे अर्थात उनमें वह साहसी नहीं था कि वह अंग्रेजों की इच्छा के विरुद्ध जाकर भारत के संविधान में कोई व्यवस्था स्थापित करवा पाते !
दूसरी तरफ जिन तथाकथित विद्वान नेताओं को संविधान निर्मात्री सभा में विद्वान कहकर भेजा गया था ! वह सभी वही लोग थे जो अंग्रेजों की इच्छा पर भारत के अंदर राजनीति कर रहे थे अर्थात संविधान निर्मात्री सभा में उन तथाकथित विद्वान नेताओं का अस्तित्व अंग्रेजों की दया पर निर्भर था !
कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि भारत के संविधान निर्मात्री सभा में जो लोग थे, वह या तो अंग्रेज परस्त थे या अंग्रेजों के मानसिक गुलाम थे ! ऐसी स्थिति में इन लोगों के द्वारा जो संविधान बनकर निकला, वह संविधान कहने को तो भारतीयों के द्वारा निर्मित “भारत का संविधान” था और भारत के हित में था ! लेकिन सच्चाई यह थी कि यह संविधान अंग्रेजों के मानकों के अनुरूप निर्मित था और यह पूरी तरह से भारतीय सभ्यता, संस्कृति, अस्तित्व और स्वाभिमान के विरुद्ध था !
उसी का यह परिणाम है कि आज देश की आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी हम लोग अंग्रेजों की दासता से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं ! जिस देश के अंदर देश के आम आवाम को न्याय प्राप्त करने के लिए एक विदेशी भाषा और कानूनी व्यवस्था पर आश्रित होना हो, उस देश का गरीब इंसान कभी न्याय प्राप्त नहीं कर सकता है !
इसी का परिणाम है कि आज पूरे देश में लगभग 4 करोड मुकदमे विभिन्न न्यायालयों में न्याय प्राप्त करने की लालसा में विचाराधीन हैं ! इन मुकदमों को दाखिल करने वाले लाखों लोग आयु पूरी होने के कारण भगवान को बिना न्याय प्राप्त किये ही प्यारे हो गये और अब उनकी पीढ़ियां इन मुकदमों की सजा भुगत रही हैं !
ठीक इसी तरह इस संविधान में “आरक्षण” और “अल्पसंख्यकों” के हितों को ध्यान में रखते हुए जो व्यवस्था की गई है वह पूरी तरह से राष्ट्र विरोधी है ! क्योंकि जब भारत का बंटवारा ही धर्म के आधार पर हुआ था, तो भारत के अंदर रहने वाले गैर हिंदुओं के लिए भारतीय संविधान में “अल्पसंख्यक” के नाम पर किया गया कोई भी विशेष उपबंध भारतीय हिंदुओं के साथ विश्वासघात था और यही अल्पसंख्यक आज देश के लिये बहुत सी समस्याओं का कारण बन गये हैं !
इसी तरह आरक्षण के नाम पर नाकारा, अयोग्य, संस्कार विहीन लोगों को सत्ता में बड़े-बड़े पदों पर बिठा देने से देश का विनाश हो रहा है ! क्योंकि जिन लोगों में योग्यता, प्रतिभा, क्षमता है वह आरक्षण की इस कानूनी व्यवस्था के कारण राष्ट्र के हित में अपना कोई भी सहयोग या योगदान नहीं दे पा रहे हैं और जो नाकारा अयोग्य लोग हैं उन्हें संविधान के अंतर्गत विशेष उपबन्ध करके आरक्षण के नाम पर शासन सत्ता का विशेष हिस्सा बनाया गया है यह लोग राष्ट्रहित में कोई भी बड़ा निर्णय लेने में अक्षम हैं !
यही वजह है कि भारत के साथ आजाद हुए बहुत से देश आज प्रगति के मार्ग पर भारत से कई गुना आगे हैं और भारत आज भी अपने धर्म और जाति के संघर्ष में उलझा हुआ है !
कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि भारत का वर्तमान संविधान भारत के लिए एक समस्या है और जब तक भारतीय संविधान पर पुनर्विचार भारतीय सभ्यता, संस्कृति, परिवेश, संस्कार के अनुरूप नहीं होगा, तब तक भारत के अंदर देखने वाली हजारों हजार समस्याओं का निदान नहीं हो सकता है !
इसलिए हम सभी भारतीयों का यह कर्तव्य है यदि राष्ट्र को बचाना है तो अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए वर्तमान संविधान के स्थान पर भारतीय मनीषियों और चिंतकों के द्वारा निर्मित भारत की सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप भारतीय संविधान को लागू किया जाये ! जिससे भारत का सम्मान विश्व में अपने चरम पर पहुंच सके ! और भारत अपने को पुनः विश्व गुरु घोषित कर सके !!