धर्म के सभी प्रपंच धोखा हैं : Yogesh Mishra

ईश्वर ने कार्य कारण की व्यवस्था के तहत सृष्टि का निर्माण किया है ! जिसे जीव और प्रकृति मिलकर कार्य कारण की व्यवस्था के तहत चलाते हैं ! इस कार्य कारण की व्यवस्था को न तो देवता बदल सकता है और न ही भगवान !

किन्तु हमारे धर्म की अवधारणा पूरी तरह से देवता या भगवान पर आश्रित है ! जिसमें हमें समझाया जाता है कि यदि हम संपूर्ण समर्पण के भाव से भगवान की पूजा आराधना करेंगे, तो भगवान हमारे जीवन के सभी कष्टों को समाप्त कर देगा और वह हमें आनंद प्रदान करेगा ! जो कि मात्र प्रकृति की व्यवस्था के विपरीत ही नहीं बल्कि मनुष्य के साथ स्पष्ट धोखा है !

अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य प्रकृति के सिद्धांतों को समझकर ही अपने जीवन को सुखी बना सकता है ! न कि किसी देवता या भगवान की कृपा से !

अगर व्यक्ति नंगे पैर कांटो से भरे हुए मार्ग पर चलेगा, तो निश्चित ही उसको कांटे चुभेगे और यदि व्यक्ति फूलों से लदे हुये वृक्ष के नीचे बैठा है, तो निश्चित ही हवा के चलने पर उसके ऊपर फूलों की वर्षा होगी ही ! इसमें किसी भी देवता या भगवान की कोई भूमिका नहीं है !

अतः स्पष्ट है कि यदि आप ज्ञान के अभाव में कांटो से भरे हुए मार्ग पर नंगे पैर चल रहे हैं, तो इसमें आपकी अज्ञानता ही आपके कष्ट के निर्माण का कारण है और यदि पुष्पों की वर्षा और सुगंध का आनंद ले रहे हैं तो इसमें भी आप का सही चुनाव ही इस आनंद का कारण है !

किंतु वैष्णव कथा वाचक प्रकृति के इस मूल सिद्धांतों के विपरीत अपने धर्म की दुकान चलाने के लिये आपको हजारों मनगढ़ंत कहानियां बतलाते हैं ! जो वास्तव में हो ही नहीं सकता ! इसीलिए धर्म के मार्ग पर चलने वालों की एक समय धर्म से आस्था उठ जाती है !

जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक धर्म के मार्ग पर चलकर किसी संकट में फंस जाता है, तो उसे अपेक्षा होती है कि भगवान उसकी मदद करेगा, लेकिन वास्तव में कोई भगवान किसी की मदद नहीं करता है !

बल्कि प्रकृति कार्य कारण व्यवस्था के तहत आपकी मानसिक तरंगों की प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर जो आपकी मदद कर सकती थी वह आपने वैष्णव कथावाचकों के प्रभाव में आकर अपनी मानसिक तरंगों को विकसित करने के अवसर को ढोलक, मजीरा पीटने या फूल, माला, चंदन लगाने में बर्बाद कर दिया !

इसीलिए आपके कष्ट के समय अब आपका कोई सहायक नहीं है ! समय एक अवसर है, जिसका लाभ उठाकर आप अपनी मानसिक तरंगों को विकसित करके प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर अपने जीवन को सुखी बना सकते हैं !

किन्तु धर्म के प्रपंच में फंसकर आपने अपने जीवन का बहुत बड़ा समय फूल माला, चंदन, प्रसाद, ढोलक मजीरा आदि में व्यर्थ ही नष्ट कर दिया है और अब आपके हाथ कुछ भी नहीं लगा है इसीलिए इस बात को एक लाइन में कहा जा सकता है कि धर्म के सभी प्रपंच धोखा हैं ! अतः आप जीवन को सुखी बनाने के लिए प्रकृति के कार्य कारण की व्यवस्था को समझिये !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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