लार्ड मैकाले ने नहीं लार्ड चार्ल्स मेटकॉफ़ ने रखी थी भारत के बर्बादी नीव | Yogesh Mishra

कार्यवाहक गर्वनर-जनरल लार्ड चार्ल्स मैटकाफ़ 1835 से 1836 ई. भारत के गवर्नर-जनरल रहे थे ! इन्हें भारतीय प्रेस का मुक्तिदाता कहा जाता है, क्योंकि इन्होंने भारत में समाचार पत्रों पर लगे प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया था ! लेकिन एक बात इनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत की सामाजिक संरचना को तोड़ने का श्रेय लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले को नहीं बल्कि लार्ड चार्ल्स मैटकाफ़ को ही जाता है !

इनका जन्म कलकत्ते में सेना के एक मेजर के घर सन् 1785 ईसवीं में हुआ था ! प्रारंभ से ही इनका अनेक भाषाओं की ओर रुझान रहा ! 15 वर्ष की उम्र में ईस्ट इण्डिया कंपनी की नौकरी में एक क्लर्क के रूप में प्रविष्ट हुए ! शीघ्र ही गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली की, जिसे योग्य व्यक्तियों को पहचानने की अपूर्व क्षमता थी, निगाह इनके ऊपर पड़ी और आपने महाराजा सिंधिया के दरबार में स्थित रेजीडेंट के सहायक के पद से अपना कार्य प्रारंभ कर, अनेक पदों पर कार्य किया !

सन् 1808 में इन्होने अंग्रेजी राजदूत की हैसियत से सिक्ख महाराजा रणजीत सिंह को अपनी विस्तार नीति को सीमित करने पर बाध्य कर दिया तथा सन् 1809 ई० की अमृतसर की मैत्रीपूर्ण संधि का महाराज रणजीत सिंह ने यावज्जीवन पालन किया ! गर्वनर जनरल लार्ड हेंसटिंग्ज ने इनके माध्यम से ही विद्रोही खूखाँर पठान सरदार अमीर खान तथा अंग्रेजों के बीच संधि कराई ! भरतपुर के सुदृढ़ किले को भी नष्ट करने में आपका योगदान था ! सन् 1827 में इन्हे नाइट पदवी से विभूषित किया गया !

जब आगरे का नया प्रांत बना तो आपको ही उसका प्रथम गवर्नर मनोनीत किया गया ! थोड़े ही दिनों में इनको अस्थायी गवर्नर जनरल बनाया गया ! इस कार्यकाल का सबसे महत्वपूर्ण कार्य भारतीय प्रेस को स्वतंत्र बनाना था ! सन् 1838 ईसवीं में ये स्वदेश लौट गए ! तदुपरांत इन्होने जमायका के गवर्नर का तथा कनाडा के गर्वनर-जनरल का पदभार संभाला ! अंत में 1846 में कैंसर के भीषण रोग से इनकी मृत्यु हो गई !

इन्होंने भारतीय संसाधनों को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक समझा कि यदि इंगलैंड को संपन्न बनाना है तो अंग्रेजों का भारत में स्थाई रूप से शासक बने रहना आवश्यक है ! जिससे अंग्रेज भारत का शोषण करके अपने देश की संपन्नता को निरंतर कायम रख सकें ! भारत में अंग्रेजों का शासन स्थाई रूप से कैसे हो इस पर गहन अध्ययन करते हुये लॉर्ड चार्ल्स मेटकॉफ़ ने संपूर्ण भारत का कई बार भ्रमण किया और ब्रिटिश सरकार अपने 24,000 पन्ने के शोध पत्र में यह लिखा कि भारत की शासन व्यवस्था राजाओं पर आश्रित नहीं है, बल्कि यहां का प्रत्येक गांव अपने आप में एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, स्वतंत्र और समस्त संसाधनों से परिपूर्ण इकाई है ! जिसका नेतृत्व ब्राह्मण करते हैं ! जिसे अपनी आवश्यकता के लिए किसी अन्य पर आश्रित होने की कोई जरुरत नहीं है !

अतः यदि भारत पर अंग्रेज सरकार अपना निरंतर नियंत्रण बनाये रखना चाहती है तो सर्वप्रथम भारतीयों को ब्राह्मणों के खिलाफ़ भड़काना होगा और भारत की ग्रामीण संरचना को तोड़ना होगा ! इसके लिये भारत में एक ऐसी केंद्रीय शासन व्यवस्था लागू करनी होगी, जिसमें नागरिकों के रोजमर्रा के समस्त संसाधन केंद्रीय शासन के आधीन हों और भारत का प्रत्येक ग्राम अपने संसाधनों और आवश्यकताओं के लिए केंद्रीय शासन पर आश्रित हो जाये ! जिससे प्रत्येक गाँव को अपने अनुसार नियंत्रित किया जा सके !

जब तक भारत के गांव ब्राह्मणों के कारण समस्त संसाधनों से सम्पन्न बने रहेंगे, तब तक भारत के ऊपर स्थाई रूप से अंग्रेजों का शासन लंबे समय तक नहीं चलया जा सकेगा ! इसके लिये भारत की शिक्षा व्यवस्था, चिकित्सा, उत्पादन, व्यापार, व्यवसाय, कृषि, भूलेखा, संतान और स्वामित्व आदि पर केंद्रीय सत्ता का सीधा नियंत्रण होना चाहिये !

यदि केंद्रीय सत्ता पर हर गांव आश्रित नहीं रहेंगे तो अंग्रेज कितने भी लंबे समय तक भारत पर शासन कर लें लेकिन ये ब्राह्मण भारत की ग्रामीण संरचना को कभी नष्ट नहीं होने देंगे और न ही भारतीय जन मानस पर कोई फर्क पड़ेगा और इन ब्राह्मणों के गुरुकुलों के रहते अंग्रेज भारतीय सभ्यता और संस्कृति को कभी भी प्रभावित नहीं कर सकेंगे !

इसलिए भारत में यदि ईसाइयत का स्थाई साम्राज्य स्थापित करना है, तो यह परम आवश्यक है कि सर्व प्रथम ब्राह्मणों के गुरुकुलों को नष्ट किया जाये और इसाई शिक्षा व्यवस्था लागू की जाये ! भारतीय स्व रोजगार को ख़त्म करते हुये इसाई शिक्षा व्यवस्था आधारित रोजगार आरम्भ किया जाये और भारतीय ग्रामीण संरचना को निश्चित रूप से केंद्र सत्ता उन्मुख आश्रित होना चाहिए ! भारतीय ग्रामीणों पर इतना अधिक कर लगाया जाना चाहिए कि उनकी आत्मा निर्भरता धन के अभाव में समाप्त हो सके और हर छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिये यह ग्रामीण इकाइयां केंद्र सत्ता पर आश्रित हो सकें !

बाद में ब्रिटेन की पार्लियामेंट में इस पर गहन चर्चा की गई और इस योजना को लागू करने का श्रेय लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले को दिया गया ! इस तरह यह कहा जा सकता है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था और अन्य सामाजिक संरचना को नष्ट करने के आरम्भ का श्रेय लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले को नहीं बल्कि लॉर्ड सर चार्ल्स मैटकाफ को जाता है !

1830 में भारत के तत्कालीन कार्यवाहक गवर्नर-जनरल सर चार्ल्स मेटकॉफ़ ने अपने शोध पत्र में लिखा था कि- “ग्रामीण समुदाय गणतांत्रिक हैं और उनके पास वह सब कुछ है, जिसकी उन्हें ज़रूरत है और ये गांव किसी भी विदेशी संबंध से मुक्त हैं ! कई राजे-महाराजे आए और गए, क्रांतियाँ होती रहीं, लेकिन ब्राह्मणों के आधीन ग्रामीण समुदाय इस सब से अछूता रहा ! ग्रामीण समुदायों की शक्तियाँ इतनी थी, मानो सब के सब अपने आप में एक अलग राज्य हों,

मेरे विचार से तमाम आक्रमणों के बीच भी भारतीय लोगों के बच पाने का मुख्य कारण भी यही रहा ! जिस तरह की आज़ादी और स्वतंत्रता में यहाँ के लोग प्रसन्नता से जी रहे हैं, उसमें प्रमुख योगदान ब्राह्मणों द्वारा स्थापित इस व्यवस्था का ही है ! मेरी इच्छा है कि अंग्रेजों को अपना शासन भारत में लम्बे समय तक चलाना है तो इन गांवों की संप्रभुता को नष्ट करना होगा जिसमें गुरुकुलों को चलने वाले ब्राह्मण सबसे बड़े अवरोधक होंगे ! यह ब्राह्मण ही भविष्य में ब्रिटिश सत्ता के लिये खतरा होंगे ! अत: इनसे सावधान रहा जाये !” और ऐसा ही हुआ !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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