जानिये ज्योतिष विज्ञान का संक्षिप्त इतिहास | Yogesh Mishra

इस तथ्य के अनेकानेक प्रमाण मिलते हैं कि प्राचीन काल में ज्योतिर्विज्ञान विज्ञान सम्मत था ! भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने वाले विदेशी विद्वानों ने इस विद्या से प्रभावित होकर अन्य भाषाओं में अनुवाद कराया ! मुस्लिम ज्योतिषाचार्यों में इब्नबतूता और अलबरूनी का नाम उल्लेखनीय है ! भारत की यात्रा पर आये इन विद्वानों ने अन्य भारतीय विधाओं के साथ ज्योतिष विद्या का भी गहन अध्ययन किया ! अरब देशों ने इसके विस्तार की योजना बनाई ! अलबरूनी सन् 1017 से 1021 तक भारत में रहा !

महमूद गजनवी के साथ वह भारत आया था ! ज्योतिष शास्त्र से प्रभावित होकर उसने भारतीय ज्योतिष के पौलिश सिद्धान्त व ‘ब्रह्म गुप्त’ का विवेचन करते हुए गणित ज्योतिष पर अरबी भाषा में प्रामाणिक ग्रन्थ की रचना की एवं सन् 1037-32 में अरबी भाषा में इण्डिका नामक ग्रन्थ लिखा !

अलबरूनी संस्कृत भाषा और ज्योतिष शास्त्र दोनों ही विषयों का मर्मज्ञ था ! उसके मूल ग्रन्थ ‘इण्डिका’ को विश्व ख्याति मिली ! जर्मनी विद्वान एडवर्ड सी. सांचों इण्डिका में वर्णित सूक्ष्म ज्योतिर्विज्ञान से सूत्रों से विशेष प्रभावित हुआ और उसने इण्डिका का रूपांतर जर्मन भाषा में कराया ! कहते हैं कि इस पुस्तक के बाद जर्मनी विद्वानों का ध्यान भारत की ओर विशेष रूप से आकृष्ट हुआ और कितने ही विद्वान यहां आकर प्राचीन बौद्धिक ग्रन्थों का अध्ययन करते रहे और अपने साथ ढेरों दुर्लभ बौद्धिक साहित्य ले गये ! एडवर्ड सी. सांची की पुस्तक दो विशाल खण्डों में है तथा विश्व ख्याति प्राप्त है ! इस ग्रन्थ में सन् 1031 पूर्व प्रचलित ज्योतिष सिद्धान्त एवं इस विषय के मर्मज्ञ भारतीय विद्वानों का परिचय विस्तार से मिलता है !

अलफजारी, याकूब विनतारिक, अबूअलहसन नामक अरबी विद्वानों की गणना भी ज्योतिष के विशेषज्ञों में की जाती है ! यूनान के विद्वान यवनाचार्य भी दीर्घकाल तक भारत में रहे और ज्योतिर्विज्ञान का अध्ययन करते रहे ! वे संस्कृत, अरबी और यूनानी भाषा के विशेषज्ञ थे ! इनकी कारिकाएं प्रसिद्ध हैं !

ग्रन्थों में वृहयवन जातक और लघुयवन जातक प्रसिद्ध हैं ! बाराहमिहिर जैसे विद्वानों ने अपनी पुस्तक वृहत्संहिता और वृहज्जातक में यवनाचार्य का वर्णन बड़े सम्मान एवं विस्तार से किया है ! ऐसा अनुमान है कि ईसा पूर्व से ही यूनानी अरबी विद्वानों की अभिरुचि भारतीय ज्योतिष विज्ञान में थी और समय-समय पर अध्ययन के लिए—वे लोग भारत आते रहे हैं !

अकबर के नवरत्नों में से अब्दुल रहीम खान खाना न केवल भारतीय संस्कृति के पुजारी और कवि थे बल्कि महान ज्योतिर्विद भी थे ! उनकी रचनाएं खेट कौटुकम और द्वाविशद्योगावली आज भी ज्योतिष शास्त्र के अध्येताओं का मार्गदर्शन करती है !

ईसा पूर्व सातवीं से दूसरी शताब्दी तक बेबीलोन में भी इस विद्या का बहुत विस्तार हुआ ! जहां से यहूदियों और मिस्रवासियों ने इसे अपनाया ! मध्य अमेरिका की प्राचीन एजटिक एवं मय संस्कृतियों में भी ज्योतिष विद्या प्रचलित थी ! पीछे ग्रीक वासियों में भी यह विशेष लोकप्रिय हुई ! मार्सेली फिकनो (सन् 1433−1499) ने ज्योतिर्विज्ञान पर एक पुस्तक लिखी—’लिउर्डीविटा’ ! जिसमें अन्तर्ग्रही प्रभावों का विस्तृत उल्लेख है ! प्रसिद्ध दार्शनिक पैरासैल्सस ने ज्योति−विज्ञान का उपयोग चिकित्सा जगत के लिए लाभप्रद बताया !

उसका कहना था कि मैक्रोकॉस्मिक प्रभाव के अनुसार मनुष्य शरीर (माइक्रोकॉस्मिक) पर प्रभाव पड़ते रहते हैं तथा चिकित्सा शास्त्र से उसका घना सम्बन्ध है ! उन्होंने शरीर के अवयव एवं ग्रह नक्षत्र का सम्बन्ध सूचित करने वाली तालिका बनायी ! फलतः अन्तर्ग्रहीय गतियों का शरीर की क्रियाओं एवं औषधियों पर होने वाले असर के अनेकों प्रयोगों का संकलन ज्योतिर्विज्ञान के रूप में सामने आया ! इसे अंग्रेजी में ‘एस्ट्रोलॉजिकल कारेस्पौण्डेन्स’ कहते हैं जिसके अनुसार विभिन्न रोगों के लिए विभिन्न ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के अनुरूप उपयोग करने की वैज्ञानिक पद्धति विकसित हुई जो चरक और सुश्रुत के वर्णित चिकित्सा शास्त्र से बहुत कुछ मिलता−जुलता है !

हेपोक्रेट्स और गेलेन आदि की यह मान्यता थी कि प्रत्येक चिकित्सक को ज्योतिर्विज्ञान का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है ! पंद्रहवीं शताब्दी में इस दिशा में आशातीत प्रगति हुई और एस्ट्रोमेडिसिन (ग्रह नक्षत्रों से सम्बन्धित चिकित्सा विज्ञान) अस्तित्व में आया ! ‘रेनेसा’ नामक दार्शनिक के समय इसका सुव्यवस्थित उपयोग होने लगा ! इंग्लैण्ड के वनौषधि शास्त्री कैरिचर और जर्मनी के फ्राक नामक विद्वान ने इसका विस्तार किया ! इंग्लैण्ड के ही रॉबर्ट टर्नर ने तो ज्योतिर्विज्ञान से प्रभावित होकर वोटांयोलाजिया नामक विज्ञान की शाखा को जन्म दिया एस्ट्रोलाजिकल हर्वलिस्ट निकोलस कल्पिपर की ख्याति इस क्षेत्र में अभी भी बनी हुई है ! वह 1616 में एक पादरी के घर पैदा हुआ !

कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय से चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की ! बाद में हृदय रोग का मरीज होते हुए भी उसने ज्योतिष को चिकित्सा शास्त्र से जोड़ने का उत्साहवर्धक प्रयास किया ! अपने अनुभवों के आधार पर उसने ‘कल्पिर हर्बल्स’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की ! आज भी यह ग्रन्थ प्रामाणिक माना जाता है उसकी स्मृति में लन्दन में कल्पिपर हाउस नामक भवन में ‘सोसाइटी ऑफ हर्बलिस्ट संस्था काम कर रही है !

अतीत काल में ज्योतिष विज्ञान का न केवल सैद्धान्तिक ज्ञान विश्व भर में लोकप्रिय हुआ वरन् अनेकों स्थानों पर अन्तरिक्षीय गतिविधियों के अध्ययन पर्यवेक्षण के लिए विलक्षण वेधशालाओं का भी निर्माण हुआ है ! जिनकी निर्माण प्रक्रिया और सन्निहित विशेषताएं अभी भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्यमय बनी हुई हैं !

‘दी वर्ल्ड एटलस ऑफ मिस्ट्रीज’ पुस्तक के लेखक हैं—फ्रान्सिस हचिंग ! पुस्तक में रयल सोसाइटी के फेलो तथा लन्दन सोलर फिजिक्स लैबोरेटरी के डायरेक्टर नार्मन लॉकर जो ‘नेचर’ पत्रिका के संस्थापक और 52 वर्षों तक सम्पादक भी रह चुके हैं, के शोध निष्कर्षों का वर्णन है ! नार्मन लाकर ने लम्बे समय तक मिस्र के विश्व प्रसिद्ध पिरामिडों का अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इनकी रचना सूर्य एवं ग्रह नक्षत्रों की वेधशाला के रूप में की गई है उसकी पुष्टि में अनेकों तथ्य मिले हैं !

जो यह बताते हैं कि गणितीय आधार पर यह विनिर्मित हुई हैं ! पिरामिड का वजन 5923400 टन है जो पृथ्वी के वजन का 1 हजार अरबवां भाग है ! इसमें 2 करोड़ 60 लाख पत्थर लगाये गये हैं ! पिरामिडों की ऊंचाई को 100 करोड़ गुना करने पर पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी नापी जा सकती है ! आकार प्रिज्म जैसा है तथा सभी भुजाएं समान हैं ! इसके सभी भुजाओं की परिमित 36520 इंच है जा पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर परिभ्रमण के समय 365.20 दिन से सम्बन्धित है ! पिरामिड का घनत्व 5.7 है ! यही पृथ्वी का भी है ! इसके आधार और ऊंचाई का अनुपात वृत्त और वृत्त की त्रिज्या के अनुपात में हैं !

पीटर टाम्पकिन्स नामक विद्वान ने सीक्रेट्स ऑफ दि ग्रेट पिरामिड नामक पुस्तक में लिखा है कि ये मात्र मृत शरीरों को रखने के लिए बनाई गई इमारतें नहीं है वरन् ज्योतिर्विज्ञान के अनेकों गूढ़ रहस्यों को अपने में समाहित किए हुए हैं ! विलियम पीटर्सन कॉलेज न्यूजर्सी (अमेरिका) के एन्सियण्ट हिस्ट्री के प्रो. डा. लिवियो स्टेकेनी के अनुसार पिरामिडें अपने समय में वेधशाला का प्रयोजन पूरा करती रही हैं ! अभी भी इसके आधार पर खगोल का नक्शा बनाया जा सकता है ! गणित के, गूढ़ प्रश्नों पाइथागोरस के विश्व विख्यात प्रमेय आदि की व्याख्या इसके विभिन्न भुजाओं के आधार पर की जा सकती है ! पृथ्वी और सूर्य का अन्तर, दिन की लम्बाई, एक दिन का 2422 वां भाग समय जो ज्योतिष विज्ञान के लिए आवश्यक है इससे निकाला जा सकता है ! पृथ्वी का गुरुत्व बल, सूर्य की गति एवं स्थिति भी जानी जा सकती हैं !

इसकी प्रयोग विधि पूर्ण रूपेण अभी भी अविज्ञात है यदि यह जाना जा सके तो कितने ही चमत्कारी सूत्र हाथ लग सकते हैं ! इस अनुसंधान के बाद ‘नार्मन लाकर’ ने ब्रिटेन के स्टोनहैन्ज नामक विश्व प्रसिद्ध स्थान पर दृष्टि दौड़ाई और यह पाया कि यह स्थान अन्तर्ग्रही आदान−प्रदान के रहस्यात्मक सूत्रों को अपने में समेटे हुए हैं ! इस सम्बन्ध में उन्होंने विस्तृत उल्लेख अपनी पुस्तक स्टोन हैन्ज एण्ड अदर ब्रिटिश स्टोन मोन्युमेण्ट्स नामक पुस्तक में की है ! उल्लेखनीय है कि इसी प्रकार इंग्लैण्ड के दूसरे खगोलविद् ‘मोर्टिमर व्हीलर’ जो सोसाइटी ऑफ एण्टीक्वेरीज इन लन्दन के प्रेसीडेन्ट हैं ने भी अपने शोध निष्कर्षों के बाद ‘नार्मन लाकर’ के अन्वेषण की पुष्टि की है !

लन्दन के ही आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग प्रभाग के प्रोफेसर डॉ. ‘अलेक्जेण्डर थाम्ब अमेरिटस’ ने 1945 से 1961 तक इन अद्भुत पत्थरों का अध्ययन किया तथा ‘मेगेलिथिंक साइट्स इन ब्रिटेन’ नामक पुस्तक में सन्निहित विशेषताओं का विस्तृत उल्लेख किया उन्होंने अनेकों तथ्य एवं प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध किया है कि स्टोन हैन्ज नामक स्थान पर पाये जाने वाले विशालकाय पत्थरों की भूमितीय रचना में विस्मयकारी सूक्ष्मता से ग्रह नक्षत्रों का वेध करने के लिए स्थापित किया गया है ! उनका कहना है कि इन विशालकाय एवं विचित्र पत्थरों को उस स्थान पर स्थापित करने वाले न केवल सूक्ष्म गणित के ज्ञाता थे वरन् ज्योतिष विज्ञान के प्रकाण्ड विद्वान भी थे ! 1 से.मी. के 1000 वें भाग तक के सूक्ष्म वेध करने की क्षमता इन प्राचीन पत्थरों में विद्यमान है ! ऐसा विश्वास किया जाता है कि ब्रिटेन में पलियस सीजर के पदार्पण से 1500 वर्ष पूर्व ड्रुइड सम्प्रदाय के धर्मावलम्बी स्टोन हैन्ज क्षेत्र को देव स्थान मानते तथा उपासना, आराधना किया करते थे ! वे अन्तरिक्षीय गतिविधियों के अध्ययन पर्यवेक्षण के साथ−साथ उनसे लाभ उठाने के लिए साधनात्मक विधि−व्यवस्था बनाते थे !

‘सेकेट्स ऑफ दी वारमूडा ट्रेंगिल’ के लेखक एलन टेन्स वर्ग ने ब्रिटिश टापू में स्थित उत्तर स्काटलैण्ड, पोर्टुगल से लेकर वारमूडा तक के 2500 कि.मी. क्षेत्रफल वाले भाग को किन्हीं अन्तर्ग्रही शक्तियों को केन्द्र माना है ! वहां 900 विशालकाय पत्थर सूर्य के विभिन्न अंशों पर खड़े हैं ! ऐसा विश्वास किया जाता है कि किसी समय यह स्थान अन्तरिक्षीय विज्ञान की वेधशाला रहा होगा ! इन पत्थरों के माध्यम से प्रति 9 वर्षीय सौर मण्डल चक्र की गतियों का अध्ययन किया जा सकता है !

भारत में भी अनेकों स्थानों पर ऐसी वेधशालाएं स्थापित थी पर विदेशियों ने आक्रमण कर देश की सभी महत्वपूर्ण सांस्कृतिक निधियों को नष्ट किया जिसमें वेधशालाएं भी थी ! अनेकों विद्वानों ने अपनी खोज द्वारा यह बताया है कि दिल्ली की कुतुबमीनार किसी समय विश्व की प्रख्यात वेधशाला थी ! अब जो जय पुर, दिल्ली, वाराणसी उज्जयिनी में ही इनके अवशेष विद्यमान हैं ! ऐसा ही एक छोटा सा प्रयास अब शांति कुंज गायत्री तीर्थ में आज से पांच वर्ष पूर्व आरंभ किया गया एवं वह निरन्तर प्रगति पर है !

अब भले ही एस्ट्रानामो के आधुनिक उपकरणों में ज्योतिर्विज्ञान की जानकारी वाले पक्ष को उच्च स्थिति में पहुंचा दिया हो, फिर भी दृश्य गणित एवं ज्योतिष का स्थान अपने स्थान पर है ! प्रमाण बताते हैं कि अपने महान देश भारत से प्रादुर्भूत होकर ज्योतिर्विज्ञान का ज्ञान विश्व भर में फैला था ! उस महान विद्या के विकास के प्रमाण अभी भी भारत ही नहीं विश्व के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न भाषाओं में लिपिबद्ध हैं तथा अपनी विलक्षणता के लिए अनेकों प्रकार की वेधशालाओं के अवशेष विद्यमान हैं जो किसी समय इसी उपयोगिता-उपादेयता का बोध कराते हैं ! उस महान विज्ञान को पुनर्जीवित करने की दिशा में विज्ञ मनीषियों द्वारा प्रयास किया जाना चाहिए !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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