जानिए कैसे हो रही है उच्च शिक्षा की ओट में व्याप्त लूट : Yogesh Mishra

किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है ! अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी है तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी नहीं होगी तो वहां की प्रतिभा या तो दब जायेगी या देश छोड़ कर पलायन कर जायेगी !

आजकल शहरों में तो क्या, गांवों में भी शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है ! यदि आंकड़ों को देखा जाए तो सरकारी स्कूलों में केवल निर्धन वर्ग के लोगों के बच्चे ही पढऩे के लिये आते हैं, क्योंकि निजी शिक्षा संस्थाओं के फीस के रूप में इतनी बड़ी रकमें वसूली जाती है, जिन्हें दे पाना हर परिवार की क्षमता के बाहर है !

आज अच्छी और उच्च शिक्षा का भी व्यवसायीकरण हो रहा है ! निजी शिक्षण संस्थानों के संचालक मनमर्जी की फीस वसूल कर रहे हैं या यूँ कहें शिक्षा का बाज़ार लगाकर लूट खसोट मचा रहा है ! दूसरी तरफ जितनी स्कूल की फीस बढ़ती जा रही है, उतना ही शिक्षा का स्तर भी गिरता जा रहा है ! एक सत्य यह भी है कि इस सबके लिये कही न कही जिम्मेदार भी हम ही लोग हैं !

वैसे तो केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा मार्च 2018 में उच्च शिक्षा के 62 संस्थानों को स्वायत्त, यानी अपने आप में संस्थान चलाने का अधिकार दे दिया गया है ! इसमें जेएनयू, बीएचयू, अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय तथा यूनिवर्सिटी आफ हैदराबाद जैसे केन्द्रीय विश्व विद्यालयों और प्रांतीय सरकारों के कार्य क्षेत्र के 21 विश्व विद्यालयों को स्वायत्त घोषित किया गया है ! यह अधिकार इन संस्थानों की शैक्षिक गुणवत्ता को बढ़ावा देने हेतु इन्हें सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त रखने के नाम पर दिया गया है !

अब अपने यहाँ छात्रों का प्रवेश देने, अपना पाठ्यक्रम तय करने, स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रम चलाने, शैक्षणिक फीस निर्धारित करने, शिक्षाविदों, विशेषज्ञों को प्रोत्साहन आधारित पारिश्रमिक पर नियुक्त करने का अधिकार इन शिक्षण संस्थानों को दे दिया गया है ! इसके अलावा इन संसाधनों को विदेशी छात्रों के प्रवेश के नियम बनाने, विदेशी शिक्षक नियुक्त करने, अन्य देशों के विश्व विद्यालयों के साथ समझौता करने, दूरस्थ शिक्षा के पाठ्यक्रम चलाने का भी अधिकार दे दिया गया है !

लेकिन यह स्वायत्त एक तरह से लूट खसोट का लाइसेंस है ! प्रवेश परीक्षा शुल्क के नाम पर धन संग्रह फिर कन्सलिंग के नाम पर धन संग्रह तो छोडिये सीट सुरक्षित करवाने के नाम पर नान रिफंडेबल करोड़ों रुपये का संग्रह और तो और छात्रावास की सुविधा तथा भोजन आदि के नाम पर गुणवत्ता विहीन सेवायें देकर करोड़ों रूपये की बलात लूट का लाइसेंस भी इसी स्वायत्त व्यवस्था का हिस्सा है !

इन उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिये आज छात्रों का अनेक तरह से शोषण हो रहा है ! माता-पिता एक लालसा और अभिलाषा में अपने जमीन जायजाद तक को बेच कर बच्चों को उच्च शिक्षा देना चाहते हैं !

वह उच्च दर पर छात्र ऋण पर ब्याज भी दे रहे हैं अर्थात बच्चे के कमाने योग्य बने से पूर्व ही वह कर्ज के बोझ से दब जा रहा है किंतु इतना सब करने के बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि जिस विश्वविद्यालय में या शिक्षण संस्थानों में वह उच्च शिक्षा लेगा, वहां की शिक्षा की गुणवत्ता उस बच्चे के भविष्य को सुरक्षित कर ही देंगी !

अनुभव में यह आया है कि 97% बच्चे जो कर्ज लेकर पढ़ते हैं ! वह पढ़ाई के उपरांत अपना कर्ज स्वयं नहीं उतार पाते हैं और उनके माता-पिता अपने बच्चे का कर्ज उतारने के लिए अपनी पैतृक जमीन जायदाद तक बेच देते हैं ! शिक्षा के नाम पर यह आर्थिक शोषण बहुत ही भयावह है ! क्योंकि यह आने वाली पीढ़ी के आत्मविश्वास को कमजोर ही करता है बल्कि उन्हें बेईमान भी बना देता है !

इस स्थिति में उच्च शिक्षण संस्थानों को इस तरह खुले आम निरंकुश छोड़ देना घातक है ! क्योंकि वह लोक लुभावने विज्ञापनओं के द्वारा छात्रों को आकर्षित कर उनसे मोटा धन लेकर उन्हें स्तरीय उच्च शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं ! यह भी शिक्षा जगत का आम जन मानस के साथ बहुत बड़ा धोखा है ! किंतु जैसा कि हमारे देश में न्याय की समुचित व्यवस्था एक निश्चित समय के अंदर नहीं है ! परिणामत: इस तरह के शिक्षण संस्थानों में लूट का धन्धा खूब फल फूल रहा है और इनमें शिक्षा लेने वाले छात्र बेरोजगार होकर ‘कभी नौकरी मिल जायेगी’ इस लालसा में सड़कों पर ठोकर खाते घूम रहे हैं !

यह उच्च शिक्षा जगत का कठोर सत्य है ! यहां पर छात्र ही नहीं उसके माता पिता भी ठगे जाते हैं और उच्च शिक्षा के उपरांत रोजगार की कोई निश्चित गारंटी न होने के कारण यह उच्च शिक्षा छात्रों के साथ किया जाने वाला सबसे बड़ा घोटाला है ! ‘मनरेगा स्कीम’ के तहत गांव के अशिक्षित व्यक्ति को 100 दिन के रोजगार की गारंटी है तो लाखों रुपए खर्च करने के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवानों को रोजगार की गारंटी क्यों नहीं है !!

इसके अलावा एक विषय और भी विचारनीय है कि जब वाहन के लिये हमें लोन 9% पर लोन मिल जाता है ! भवन के लिये या मकान बनाने के लिये हमें लोन 11% पर लोन मिल जाता है ! तो उच्च शिक्षा जैसी आवश्यक ज्ञान के लिये हमें 13 % पर लोन क्यों लेना पड़ता है !

जबकि सरकार स्वयं शिक्षा को प्रोत्साहित करने का दावा करती है ! मेरा मत है कि उच्च शिक्षा विश्व के अन्य देशों की तरह पहले तो निशुल्क होनी चाहिये और यदि आवश्यक हो तो उच्च शिक्षा पर दिये जाने वाले लोन पर ब्याज 5% से अधिक किसी भी हाल में नहीं होना चाहिये !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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