ज्ञान नगरी कश्मीर का आध्यात्मिक इतिहास : Yogesh Mishra

काशी और कश्मीर दोनों ही शैव नगरी हैं ! एक तरफ काशी जो भारत की सामान्य शिक्षा का केंद्र माना जाता था ! वहीँ दूसरी तरफ काशी से शिक्षा लेने के उपरांत छात्र उच्च शिक्षा के लिये कश्मीर जाया करते थे ! आज भी काशी में शिक्षा पूर्ण होने के उपरांत कश्मीर की शारदा पीठ की दिशा में कुछ कदम चलने की परंपरा है !

शारदा पीठ से ही आदि शंकर, शंकराचार्य बनकर लौटे थे ! एक स्तुति में इसका वर्णन भी किया गया है – “नमस्तुते माँ शारदा, कश्मीरपुरवासिनी !” विश्व का सबसे पुराना पंचांग (कैलेंडर) सप्तऋषि पंचांग है ! जो आज भी कश्मीर में कुछ बचे हुये हिन्दू प्रयोग करते हैं ! जिसका वर्तमान वर्ष 5097 वां चल रहा है !

अगर कश्मीर के शास्त्रों की बात करें तो भरत मुनि के “नाट्यशास्त्र” को वेदों के समकक्ष ही माना जाता है और उसे पांचवे वेद की उपाधि दी जाती है ! नाट्यशास्त्र को अभिनव गुप्त के लिखित ग्रन्थ जो इस सन्दर्भ में अत्यन्त महत्वपूर्ण है “अभिनव भारती” को समझे बिना आज के युग को समझना लगभग असंभव है ! जो विश्व के 80 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है ! लेकिन धर्मनिरपेक्ष शिक्षा व्यवस्था के चलते भारत में नहीं पढ़ाया जाता है !

भारतीय संगीत अर्थात हिंदुस्तानी और कर्णाटक दोनों के पिता शारंगदेव के ज्ञान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने उत्तर दिया था – “अस्ति स्वस्तिगृहम कुलवंशम, ‘श्रीमद’कश्मीर संभवम !”

बौद्ध पंथ की द्वितीय सभा भी कश्मीर में हुई थी ! जहाँ से ‘महायान बौद्ध’ परंपरा ने जन्म लिया था ! जो बाद में चीन, जापान, कोरिया तक गया था और इसका प्रभाव आज भी कायम है !

क्या आप जानते हैं कि महान चक्रवर्ती सम्राट ललितादित्य ने 7-8 वीं सदी में कश्मीर पर राज किया था ! जब इस्लाम विश्वभर में फ़ैल रहा था ! तब उनका साम्राज्य सम्राट अशोक से भी बड़ा था ! उत्तर में कैस्पियन सागर से लेकर दक्षिण में कावेरी और पूर्व में असम से लेकर पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान सीमा तक उनका विस्तृत साम्राज्य था !

“राजतरंगिनि” नामक ग्रंथानुसार कश्मीर में इस्लाम 1339 में आया था ! जब शाहमीर के कुछ मुस्लिमों ने राजा उदययंदेव की शरण ली ! धर्मानुसार उन्होंने शरणार्थी बनाया गया ! उन्हें भूमि, संपत्ति आदि दी गयी ! यह राजा ‘स्वाथ’ नामक जगह से थे जो कश्मीर का हिस्सा था और आज वहां से तहरीक_ए_तालिबान का संचालन होता है !

यह वही स्थान है जहाँ ऋषि पाणिनि का जन्म हुआ था ! जो भाषा विज्ञान, व्याकरण के जनक थे ! कुछ समय उपरांत धोखे से राजा उदययंदेव को मरवाकर शाहमीर ने उनकी गद्दी हासिल कर ली और जिसका विधिवद वैदिक मंत्रोच्चार के साथ राज तिलक हुआ था !

1450 तक इस वंश ने राज किया और विधिवद वैदिक मंत्रोच्चार के साथ राजतिलक होते रहे और संस्कृत राजदरबार की भाषा बनी रही ! लेकिन 1450 के बाद कश्मीर की तकदीर बदली ! जिस समय जैन उल्ला बिन (बड शाह) ने भी “राजतरंगिनि” नामक इतिहास ग्रन्थ लिखवाया था ! जिसमें लालच और तलवार के जोर पर धर्मान्तरण, मंदिर तोड़ने, मारकाट के ढेरों उदाहरण हैं ! इसके बाद उसने सूफी संत बुलबुल शाह के आदेश पर राजतिलक और संस्कृत पर पाबंदी लगा दी और इसके साथ ही सूफी विचारधारा भी कश्मीर से मिटने लगी !

बड़ शाह को महान शासक का दर्जा मात्र इसलिये मिला कि वह अपने पिता सिकंदर शाह से कम क्रूर था ! सिकंदर शाह ने हजारों मंदिर तुड़वाये और धर्मान्तरण करवाये ! मुल्तान जो कभी मार्तण्ड सूर्य मंदिर के लिये प्रसिद्ध था और जिसकी भव्यता अनंत थी ! उसको मुगलों के तोड़ने का असफल प्रयास 6 माह तक चलता रहा फिर भी ठोस पत्थर टूटा नहीं तो लाखों एकड़ जंगल की लकड़ियाँ मंदिर में रखकर जलाई गयीं जो महीनों जलती रहीं ! पत्थर चटका फिर भी नहीं टूटा ! परंतु लगातार प्रयासों से उसे आज खंडहर बना ही दिया गया !

तेहरान विश्वविद्यालय के लेखागार में रखीं दो पुस्तकों ( तौफुल_तब_एहबाब और बेहरिस्तान_ए_शाही ) का भाषान्तरण काशीनाथ पंडित ने किया था ! जो कश्मीर के बर्बर इस्लामिक इतिहास के गवाह हैं ! जिनमें एक प्रसंग है ! शमशुद्दीन अराकी जब लश्कर के साथ धर्मान्तरण करवाने निकलता था तो आश्चर्यचकित हो जाता था !

धर्मान्तरण करवाता और जब वह पुनः गांव में आता तो सभी वापस सनातन धर्मी मिलते थे ! किसी ने बताया इनकी महिलायें ही इनका आधार हैं यह धर्मग्रंथ अपने पोशाक में छुपा लेती हैं और इनके धर्म में सारे पाप माफ़ हैं सिवाय एक के गौमांस भक्षण ! जिसकी क्षमा भगवान भी नहीं देते हैं ! तब शमशुद्दीन ने गांव के पुरुषों को बुलाया करता, उनसे गाय लाने को कहता, उन्ही से कटवाकर उनकी महिलाओं से गौमांस पकवाया और सब को खिलाया ! जिसने नहीं खाया उसका सर सबके सामने काट दिया गया ! इस तरह कश्मीर में वृहद धर्मांतरण हुआ !

इन्हीं आक्रमणों के चलते ‘गणेश दत्त कौल’ जो शारदा पीठ के महंत थे ! जब मंदिर नहीं बचा पाये और सभी धर्मरक्षक मारे गये तो उन्होंने मंदिर की शिखा पर चढ़कर आत्महत्या कर ली ! जिनकी 14वीं पीढ़ी के वंशज प्रोफेसर फारूक नाज़की इस बात की पुष्टि करते हैं और शारदापीठ से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं !

आज उस स्थान का नाम ‘बकत ए सुलेमान’ है ! “विचारनाग” वह स्थान जहाँ सप्तऋषि पंचाग और अन्य ग्रंथों के लिये विद्वान् इकट्ठे होकर शास्त्रार्थ करते थे ! आज उसका नाम ‘फिरदौस’ है और गौकदल का नाम मदीना चौक है !

भारत के संविधान के अनुसार 99% मुस्लमान आज राजनैतिक कारणों से कश्मीर में अल्पसंख्यक हैं ! कश्मीर के 01% हिन्दू बहुसंख्यक हैं 1339 में कश्मीरी हिंदुओं का पहला पलायन हुआ था जो 1990 तक चलता रहा ! अब तक कम से कम 20 बार हिन्दुओं का पलायन कश्मीर की घाटी से हो चुका है ! जो इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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