कोरोना की महामारी फैली हुयी है ! पूरे भारत में दया और सहयोग के नाम पर सभी राजनैतिक दल खाद्यान्न के पैकेट पर अपने दल के नेता की फोटो लगा कर या नाम छाप पर दया या सहयोग के नाम पर अपना अपना प्रचार करने में लगे हुये हैं ! एक तरफ तो सरकार ने जनता के लिये अपने खजाने खोल दिये और दूसरी तरफ सरकार संपन्न जनता से यह अपील कर रही है कि वह लोग महामारी से निपटने के लिये प्रधानमंत्री राहत योजना के तहत खजाने में अपना सहयोग जमा करें !
भारत की जनता ने भी अपनी अपनी गणित और परिस्थिती के अनुसार खुलकर सहयोग किया ! यह बात अलग है कि जिसका कोई हिसाब सहयोग करने वाले नहीं मांग सकते हैं और उस सहयोग के पैसे से भारत की जनता को कितना लाभ हुआ यह तो पता नहीं ! लेकिन शासन सत्ता के इर्द-गिर्द दलाली करने वाले दलालों की चांदी हो गई !
जनता में बांटे जाने के लिये दिया गया लाखों टन अनाज देश के काला बाजारों में बिक गया और सरकारी महकमा जिसको इस तरह के अपराध को नियंत्रित करने के लिये लाखों रुपये वेतन दिये जाते हैं ! वह इन अपराधियों के साथ मिल गई और कोई कार्यवाही नहीं हुयी !
और उसका परिणाम यह हुआ कि इस भ्रष्टाचार से हार कर देश के प्रधानमंत्री ने लोगों के व्यक्तिगत खातों में पैसे डाल कर आर्थिक मदद करनी शुरू की और खाद्यान्नों का बंटवारा जो सरकारी व्यवस्था के तहत किया जा रहा था ! उसे भ्रष्टाचार देखते हुये तत्काल प्रभाव से रोकना पड़ा लेकिन इन भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध कहीं किसी भी तरह की कोई भी कार्यवाही नहीं की गई !
लेकिन मेरा प्रश्न इस सबसे अलग है ! मेरा कहना यह है कि देश की आजादी के 70 साल बाद जब भारत के साथ ही आजाद हुये दूसरे देशों के नागरिकों ने इतनी प्रगति कर ली कि आज वह अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अपने देश की शासन सत्ता पर निर्भर नहीं हैं और न ही वह कितने गरीब हैं कि उन्हें महीने 2 महीने के भोजन के लिये भी सरकार के मुफ्त अनाज पर आश्रित होना पड़े ! तो भारत में ही यह दरिद्रता क्यों है ?
हमारे देश में नगरिकों को 70 सालों में हम इतना सक्षम क्यों नहीं बनाया गया कि यदि किसी विशेष काल परिस्थिति में कोई बड़ी विपत्ति यदि देश पर आती है तो वह महीने 2 महीने अपने जीवन के संग्रहित धन से अपना जीवन निर्वाह कर सकें !
क्या दया और सहयोग के नाम पर बांटी गई है यह भीख यह नहीं बतलाती है कि हमारे देश की आर्थिक नीतियां नितांत ही अव्यावहारिक और कमजोर हैं ! या दूसरे शब्दों में कहा जाये तो हमारे देश ने आर्थिक रूप से आज तक इतना विकास ही नहीं किया कि हमारे देश के नागरिकों के महीने 2 महीने का खाद्यान्न उन नागरिकों को संग्रहित करने का सामर्थ्य पैदा कर सकें या फिर यह भी भारतीय लोकतंत्र का एक विकृत चेहरा मात्र है !
आखिर भारत में यह विनाशकारी अर्थव्यवस्था किसके इशारे पर चल रही है और हमारे देश के नागरिकों को संपन्न होने से कौन रोकना चाहता है ! इसका खुलासा क्यों नहीं किया जाता है ! यह अवसरवादी भीख के तहत भारत जैसा राष्ट्र कब तक चलता रहेगा !
क्या भारत में दया और कृपा के नाम पर यह सिलसिला अभी कई दशकों तक चलेगा या इसे जानबूझकर चलाया जा रहा है ! इस प्रश्न का सही उत्तर जिस समय भारत का आम आवाम जान जायेगा ! वही से भारत के बौद्धिक परिपक्वता का समय प्रारम्भ होगा !
इसलिये भारत के वास्तविक बुद्धिजीवियों से मेरा अनुरोध है कि वह लोग भारत के इस दरिद्रता के षड्यंत्र का खुलासा करें ! जिससे हिंदुस्तान की योजनाबद्ध गरीबी को जड़ से खत्म किया जा सके क्योंकि दया और सहयोग के नाम पर बांटी जाने वाली है यह “भीख” किसी भी समस्या का स्थाई समाधान नहीं है ! क्योंकि सत्ता के इस तरह के निर्णय सैकड़ों तरह के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक अपराधों को जन्म देते हैं !!