जैसा की मैंने अपने पूर्व के अनेकों लिखो में लिखा है कि भारत अनादि काल से शैव संस्कृति का अनुयायी रहा है ! भारत की उपजाऊ जमीन और प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करने के लिए कृषि प्रधान वैष्णव संस्कृति के लोगों ने भारत पर आज से 10,000 वर्ष पूर्व छल और बल से भारत पर आक्रमण करके भारत के अधिकांश क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया था !
भारत में जिन शैव परंपरा के लोगों ने इन वैष्णव आक्रांताओं का विरोध किया था, उन्हें असुर और राक्षस आदि कहकर वैष्णव लोगों ने उनका विरोध किया और कालांतर में उन्हें वैष्णव लेखकों ने मानव सभ्यता का खलनायक घोषित कर दिया !
जब छल और बल के द्वारा वैष्णव शासकों ने शैव शासकों से 5500 सालों तक निरंतर युद्ध करके अपना वैष्णव साम्राज्य स्थापित कर लिया, तब इसी दौरान वैष्णव विचारकों एवं आचार्यों ने पूरे देश में गुरुकुलों की परंपरा शुरू की और आम जनमानस के मन मस्तिष्क से शैव जीवन शैली का नामोनिशान मिटा दिया और वैष्णव शासकों को भगवान के तौर पर पूजे जाने की परंपरा शुरू की ! जो आज तक चल रही है !
अब यक्ष प्रश्न यह है कि क्या शैव जीवन शैली के समर्थक वैष्णव राजाओं की पूजा करने के लिए बाध्य हैं ?
और यदि हां ! तो यह तो वैसे ही बात हुई जैसे अंग्रेजों के चले जाने के बाद भी आज पाठ्यक्रम में भगत सिंह नेताजी सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, रानी लक्ष्मीबाई जैसे महापुरुषों को आतंकवादी पढ़ने के लिए आज स्वतंत्र भारत के बच्चे बाध्य हैं !
या फिर भारत पर आक्रमण करने वाले मोहम्मद गजनी, तैमूर, नादिर शाह, कुतुबुद्दीन ऐबक, अकबर, बाबर जैसे क्रूर शासकों को जबरजस्ती भारत के महान शासक के रूप में भारतीय हिंदू बच्चे पाठ्यक्रम के नाम पर पढ़ने के लिए बाध्य किए जा रहे हैं !
यह एक गंभीर विचारणीय प्रश्न है कि यदि किसी एक समूह के लिए कोई व्यक्ति महान और आदर्श है तो क्या दूसरा समूह भी उस व्यक्ति को आदर्श और महान मानने के लिए बाध्य है !
या दूसरे समूह के व्यक्ति के पास यह स्वतंत्रता है कि वह पहले समूह के आदर्श व्यक्ति को महान माने या न माने !
भारत का संविधान पूजा, आराधना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भारत के हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि वह अपने विचारों के अनुरूप किसी भी व्यक्ति या पूजा पद्धति को अपना सकता है !
किन्तु भारत के अंदर तथाकथित हिंदू लोग वैष्णव राजाओं का सम्मान करवाने के लिए अनावश्यक रूप से दूसरे समुदाय के लोगों को बाध्य कर रहे हैं ! इसके कई उदाहरण आए दिन समाज में दिखाई देते हैं !
यह विचारधारा समाज को तोड़ ही नहीं रही है बल्कि पूरे देश को एक गृह युद्ध की ओर ढकेल रही है ! काल के प्रवाह में जो शक्तिशाली होगा, वह भविष्य में अपनी विचारधारा को स्थापित कर लेगा क्योंकि यही प्रकृति का नियम है !!